Trump Tariffs: दबाव बनाने के लिए ट्रंप ने 14 देशों को भेजी चिट्ठी, भारत के साथ डील की घोषणा कभी भी संभव
Trump Tariffs ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ की डेडलाइन बढ़ाने के साथ 14 देशों को नोटिस भेजा है। विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप दूसरे देशों पर भी बातचीत का दबाव डालना चाहते हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि टैरिफ लगाते वक्त ट्रंप ने कहा था कि 90 दिनों में 90 डील होंगी जबकि अभी तक सिर्फ दो देशों के साथ पूरी डील (India US Deal) हुई है।

नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ (reciprocal tariffs) स्थगित करने की डेडलाइन 8 जुलाई से बढ़ाकर 31 जुलाई कर दी है। इन तीन हफ्तों में जो देश अमेरिका के साथ टैरिफ पर डील नहीं करेंगे, उनके निर्यात पर 1 अगस्त से Trump प्रशासन बढ़ी हुई दरें लगाएगा। डेडलाइन बढ़ाने के साथ ट्रंप डील के लिए दबाव भी डाल रहे हैं। इसका संकेत देते हुए उन्होंने सोमवार को 14 देशों को चिट्ठी भेजी और कहा कि अगर वे डील करने में नाकाम रहते हैं तो उन पर टैरिफ (Trump Tariffs) की नई दरें लागू होंगी। कुछ और देशों को इस हफ्ते चिट्ठी भेजे जाने की संभावना है।
अभी भारत के साथ ट्रंप प्रशासन की बात चल रही है और 14 देशों की सूची में भारत नहीं है। निर्यातकों के संगठन फियो (फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस - FIEO) के डायरेक्टर जनरल अजय सहाय ने कहा कि तारीख आगे बढ़ने से हमारे वार्ताकारों को बाकी बचे विवादित मुद्दों को सुलझाने में मदद मिलेगी। सहाय के अनुसार 14 देशों पर जो टैरिफ लगाए गए हैं, उससे भारत को द्विपक्षीय व्यापार समझौते में टैरिफ की तुलना करने में मदद मिलेगी। अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड एक्सपर्ट विश्वजीत धर के मुताबिक डेडलाइन आगे बढ़ना भारत के लिए राहत की बात है। अमेरिका का यह जवाब इसलिए है क्योंकि भारत ने कुछ मुद्दों पर अपना रुख सख्त बना रखा है।
मुंबई स्थित निर्यातक टेक्नोक्राफ्ट इंडस्ट्रीज के संस्थापक शरद कुमार सराफ ने कहा कि डेडलाइन आगे बढ़ने का समय बहुत कम है। भारतीय निर्यातकों को नए बाजार तलाशने चाहिए। एक अन्य निर्यातक ने कहा कि अंतरिम डील (India US Deal) के लिए भारतीय वार्ताकारों की टीम को 12-13 और वर्किंग डे मिल जाएंगे।
भारत के साथ नई डील (India US Deal) जल्दी घोषित होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। ट्रंप ने भी कहा है कि भारत के साथ डील जल्दी होने वाली है। सूत्रों के अनुसार भारत ने अपना फाइनल ऑफर दे दिया है। अब उस पर वाशिंगटन को विचार करना है। डील पर घोषणा कभी भी हो सकती है। हालांकि थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि भारत को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना चाहिए और किसी असंतुलित डील से बचना चाहिए। ट्रंप का मॉडल फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का नहीं, यह यात्रा (YATRA) है- यिल्डिंग टू अमेरिकन टैरिफ रिटैलियेशन एग्रीमेंट।
क्या है Trump Tariff
ट्रंप ने 2 अप्रैल को ‘लिबरेशन डे’ (मुक्ति दिवस) घोषित करते हुए 57 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। हालांकि एक हफ्ते बाद ही इस पर अमल स्थगित कर दिया और तमाम देशों को 90 दिनों के भीतर अमेरिका के साथ डील करने को कहा। उस समय ट्रंप ने कहा था कि 90 दिनों में 90 डील होंगी। हालांकि अभी तक सिर्फ इंग्लैंड और वियतनाम के साथ डील को अंजाम दिया गया है। चीन के साथ अस्थायी डील हुई है।
‘फाइनल नोटिस’ के जरिए दबाव की नीति
व्हाइट हाउस ने 14 देशों को चेतावनी वाली इन चिट्ठियों को फाइनल नोटिस नाम दिया है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि इससे यूरोपीय यूनियन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश बातचीत की मेज पर आएंगे। यह पूछे जाने पर की क्या यह डेडलाइन आखिरी है, ट्रंप ने जवाब दिया कि मैं इस आखिरी कहूंगा लेकिन 100% नहीं। अगर कोई देश हमारे पास ऑफर लेकर आता है और कहता है कि हम कुछ और तरीके से बात करना चाहते हैं तो हम उसके लिए भी तैयार हैं।
अमेरिका के पूर्व ट्रेड वार्ताकार और एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसिडेंट वेन कटलर ने कहा, “जापान, दक्षिण कोरिया जैसे प्रमुख व्यापारिक साझीदारों पर टैरिफ की घोषणा निराशाजनक है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि खेल खत्म हो गया। बातचीत करने और समाधान निकालने के लिए अभी समय बचा हुआ है।”
ट्रंप ने यह चेतावनी भी दी है कि अगर किसी देश ने जवाबी टैरिफ लगाया तो उस पर और अधिक टैरिफ लगाया जाएगा। उदाहरण के लिए जापान के प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में उन्होंने लिखा है कि अगर आप जवाबी टैरिफ लगाएंगे तो हमारा टैरिफ उस पर 25% अतिरिक्त होगा।
क्या होगा टैरिफ का नया स्वरूप
डील न होने की स्थिति में अमेरिका 1 अगस्त से विभिन्न देशों पर अलग-अलग टैरिफ लगाएगा। यह मौजूदा मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) रेट से अलग होगा। फार्मा, सेमीकंडक्टर, स्टील, अल्युमिनियम, ऑटो और ऑटो पार्ट्स जैसे सेक्टर को इससे बाहर रखा गया है। उदाहरण के लिए जापान से फार्मा, सेमीकंडक्टर, किताबें, स्मार्टफोन, ऊर्जा, कॉपर इत्यादि के आयात पर 31 जुलाई तक और इसके बाद भी 0 टैरिफ रहेगा। इसी तरह स्टील और एल्यूमीनियम पर मौजूदा 50% टैरिफ नहीं बदलेगा। ऑटो और ऑटो पार्ट्स पर 31 जुलाई तक लागू 25% टैरिफ आगे भी बना रहेगा। लेकिन इनके अलावा बाकी प्रोडक्ट के आयात पर अमेरिका अभी 10% टैरिफ लगा रहा है, वह 1 अगस्त से 25% हो जाएगा।
इस तरह टैरिफ बढ़ने से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे और वैश्विक स्तर पर सप्लाई चेन बाधित होने की भी आशंका है। टैरिफ बढ़ने के कारण मई में चीन से अमेरिका का आयात 35% कम हो गया था उसके बाद जून में भी चीन से अमेरिका के आयात में 28.3% गिरावट आई है। यह गिरावट फर्नीचर से लेकर खिलौने, टेक्सटाइल और फुटवियर सभी सेगमेंट में है। हालांकि वियतनाम, इंडोनेशिया और थाइलैंड से अमेरिका का आयात बढ़ा है।
WTO की परिभाषा में नहीं आते ये एग्रीमेंट
ट्रंप भले ही इन सौदों को ट्रेड एग्रीमेंट कह रहे हों, लेकिन डब्लूटीओ के मानकों के अनुसार यह फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) की परिभाषा में नहीं आते। WTO नियमों के तहत एफटीए में दोनों देश ज्यादा से ज्यादा वस्तुओं के ट्रेड पर टैरिफ कम करते हैं।
ट्रंप ने जो नया मॉडल अपना आया है उसमें सिर्फ पार्टनर देश अपना टैरिफ कम करेगा, जबकि अमेरिका आयात शुल्क में कोई कटौती नहीं करेगा। दरअसल ट्रंप के पास मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) टैरिफ घटाने की अथॉरिटी नहीं है। इसलिए वे अप्रैल में घोषित लिबरेशन डे टैरिफ हटाने या कम करने का ऑफर दे रहे हैं। ट्रंप ने आपातकालीन अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए ये टैरिफ लगाए थे। अमेरिकी फेडरल कोर्ट इसे अवैध बता चुका है, जिस पर ट्रंप प्रशासन ने अपील की है।
जहां तक भारत की बात है तो यहां से आयात पर अमेरिका ने सामान्य टैरिफ के अलावा 26% अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की थी। दोनों देशों के बीच डील होने पर भी भारत के निर्यात पर अमेरिका में 10% अतिरिक्त टैरिफ तो लागू रहेगा ही।
क्या अभी की गई डील अंतिम होगी?
ट्रंप जिस तरह अपने फैसले लगातार बदलते हैं, उससे यह संदेह भी उपजता है कि एक बार समझौता होने के बाद वह दोबारा उसमें संशोधन के लिए दबाव डाल सकते हैं। दो दिन पहले ही उन्होंने ब्रिक्स देशों को धमकी दी कि अगर वे ‘अमेरिका विरोधी’ नीतियां अपनाते हैं तो उन पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा।
ब्राजील के रियो डि जनेरियो में हुए ब्रिक्स (BRICS) शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने अमेरिका की तरफ से लगाए गए एकतरफा टैरिफ की आलोचना की और अमेरिकी डॉलर के विकल्प के तौर पर साझा करेंसी की संभावनाओं पर भी विचार किया।
जापान, दक्षिण कोरिया ऑस्ट्रेलिया के साथ अमेरिका के पुराने समझौते हैं। फिर भी अमेरिका इनके साथ व्यापार घाटे में है। अब ट्रंप चाहते हैं कि यs देश न सिर्फ अमेरिकी वस्तुओं के लिए आयात शुल्क घटाएं बल्कि अमेरिकी कृषि उत्पाद, तेल, गैस और एयरक्राफ्ट इत्यादि की खरीद की गारंटी भी दें। ऑस्ट्रेलिया के साथ अमेरिका का ट्रेड सरप्लस है, इसके बावजूद ट्रंप अतिरिक्त कमिटमेंट चाहते हैं।
व्यापार घाटे पर ट्रंप की धारणा गलत
ट्रंप के इस टैरिफ के पीछे यह धारणा है कि अमेरिका का विशाल व्यापार घाटा दूसरे देशों के टैरिफ और अनुचित व्यापार बाधाओं के कारण है। उनका तर्क है कि अमेरिका में आयात शुल्क बढ़ने से घरेलू इंडस्ट्री को लाभ होगा और रोजगार भी पैदा होंगे।
लेकिन GTRI के विश्लेषक इस तर्क को सही नहीं मानते। उनके मुताबिक इसकी असली वजह है ग्लोबल रिजर्व करेंसी के तौर पर अमेरिकी डॉलर का स्टेटस। इस कारण अमेरिका को लगातार डॉलर प्रिंट करने पड़ते हैं और उसका घाटा बढ़ता जा रहा है। बिना कमाई के हासिल किए गए इस डॉलर से अमेरिका जरूरत से ज्यादा खर्च तो कर सकता है, लेकिन इससे अंततः उसके घाटे में वृद्धि होती है। अधिक वेतन, आउटसोर्सिंग और कई सेक्टर में गैर प्रतिस्पर्धी मैन्युफैक्चरिंग से समस्या और बढ़ी है।
नई टैरिफ लिस्ट पर विभिन्न देशों की प्रतिक्रिया
जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा (Shigeru Ishiba) ने कहा कि टैरिफ पर बातचीत में कुछ प्रगति हुई है। दक्षिण कोरिया ने कहा है कि वह व्यापार वार्ता तेजी से आगे बढ़ाना चाहता है। इंडोनेशिया ने कहा है कि उसके शीर्ष वार्ताकार जल्दी ही अमेरिकी प्रतिनिधियों के साथ वाशिंगटन में मुलाकात करेंगे। बांग्लादेश की एक टीम वाशिंगटन में बुधवार को अमेरिकी अधिकारियों के साथ बात करेगी। बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट का सबसे बड़ा निर्यात बाजार अमेरिका ही है। बांग्लादेश को 80% निर्यात आय इसी इंडस्ट्री से होती है। इसमें करीब 40 लाख लोग काम करते हैं।
मलेलिया के प्लांटेशन और कमोडिटी मंत्री जोहरी अब्दुल गनी ने कहा है कि पाम ऑयल पर अतिरिक्त टैरिफ का बोझ अमेरिकी आयातकों को वहन करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि 25% टैरिफ अभी जारी 10% टैरिफ के अतिरिक्त होगा।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने कहा कि 30% अमेरिकी टैरिफ अनुचित है, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका में अमेरिका के 77% वस्तुओं पर कोई टैरिफ नहीं लगता है। थाईलैंड ने उम्मीद जताई है कि वह दूसरे देशों की तुलना में प्रतिस्पर्धी टैरिफ पर समझौते में कामयाब होगा।
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