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    घरेलू बैंकों के दामन पर भी लगे दाग, कालेधन को लगा रहे हैं ठिकाने

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    Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

    कालाधन खपाने के लिए अभी तक बेवजह ही स्विस बैंकों को बदनाम किया जा रहा था। काले धन को ठिकाने लगाने में घरेलू बैंकों का रिकॉर्ड भी बेदाग नहीं रहा। रिजर् ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कालाधन खपाने के लिए अभी तक बेवजह ही स्विस बैंकों को बदनाम किया जा रहा था। काले धन को ठिकाने लगाने में घरेलू बैंकों का रिकॉर्ड भी बेदाग नहीं रहा। रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की तमाम निगरानी और कड़े कानून को धता बताकर देश के सरकारी व निजी बैंकों के जरिये मनीलांडिंग (गैर-कानूनी तरीके से पैसे का लेनदेन) का काम धड़ल्ले से हो रहा है।

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    विभिन्न जांच एजेंसियों ने वर्ष 2013 के दौरान अभी तक इन बैंकों में 143 मनीलांडिंग के मामले दर्ज किए हैं। इसमें कई ऐसे मामले हैं जिनमें बैंकों के शीर्ष अफसरों की भूमिका भी संदिग्ध है। मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय बैंक भी अब ज्यादा सख्ती दिखाने को तैयार है। यही वजह है कि मई 2013 में एक निजी पोर्टल ने जिन बैंकों में मनीलांडिंग का काम होने का खुलासा किया था, उससे संबंधित सारे मामले फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (एफआइयू) को सौंप दिए गए हैं।

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    सूत्रों के मुताबिक, 32 बैंकों की विभिन्न शाखाओं में कालेधन को सफेद बनाने से संबंधित गतिविधियों की सूचनाएं एफआइयू की दी गई हैं। वैसे रिजर्व बैंक ने इस मामले की अपने स्तर पर जांच की थी।

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    आरबीआइ इन सभी बैंकों पर जुर्माना लगा चुका है, लेकिन मामले को जड़ से समाप्त करने के लिए और गहराई से जांच करवाने की जरूरत महसूस की गई है। इस विषय पर गठित वित्त मंत्रालय की एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने भी रिजर्व बैंक से कहा था कि वह पूरे मामले की जांच सीबीआइ या एफआइयू से करवाए।

    ऐसा नहीं है कि भारतीय बैंकों में मनीलांडिंग के गोरखधंधे पहली बार उजागर हुए हैं। सिर्फ पिछले चार वर्षो का रिकॉर्ड देखें तो सरकारी व निजी बैंकों के खिलाफ मनीलांडिंग के 957 मामले दर्ज किए गए हैं। यह स्थिति तब है जब वर्ष 2010 के बाद आरबीआइ ने बैंकों में चलने वाले इस तरह के संदिग्ध काम पर लगाम के लिए नियम काफी कठोर बना दिए हैं। पिछले वर्ष जांच एजेंसियों ने बैंकों के खिलाफ मनीलांडिंग कानून के तहत 212 मामले दर्ज किए थे। इस वर्ष ऐसे मामलों की संख्या 143 तक पहुंच चुकी है।

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