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    Petrol Diesel Price: क्रूड का और गिरेगा भाव, पेट्रोल-डीजल कब होगा सस्ता?

    Updated: Thu, 14 Nov 2024 07:48 PM (IST)

    चीन में कच्चे तेल की मांग लगातार छह महीनों से घट रही है और आगे भी यही स्थिति बनी रहने की उम्मीद है। वैश्विक मांग में जो थोड़ी बहुत तेजी है उसमें भारत की भूमिका अहम है। ऐसे में अगले साल भी क्रूड ऑयल की कीमतों में कोई बहुत भारी उछाल आने की आशंका नहीं है। इसका फायदा भारत में सस्ते पेट्रोल और डीजल के रूप में मिल सकता है।

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    चीन में कच्चे तेल की मांग लगातार छह महीनों से घट रही है।

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कच्चे तेल के वैश्विक बाजार का पूरा परिदृश्य बदल चुका है। ओपेक देशों की तरफ से तेल उत्पादन में कटौती करने का भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों पर कोई असर होता नहीं दिख रहा है। ऐसे में इंटरनेशलन एनर्जी एजेंसी (आईईए) की गुरुवार को जारी एक रिपोर्ट संकेत देती है कि अगले वर्ष 2025 में क्रूड की कीमतें यथावत ही रह सकती हैं।

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    इसकी एक बड़ी वजह यह है कि चीन में कच्चे तेल की मांग लगातार छह महीनों से घट रही है और आगे भी यही स्थिति बनी रहने की उम्मीद है। वैश्विक मांग में जो थोड़ी बहुत तेजी है, उसमें भारत की भूमिका अहम है। हालात यह है कि तेल उत्पादन करने वाले प्रमुख देशों का संगठन ओपेक अगर अपनी पूर्व घोषणा के मुताबिक तेल उत्पादन में रोजाना 10 लाख बैरल की कटौती करता भी है तो आपूर्ति मांग के मुकाबले 10 लाख बैरल ज्यादा बनी रहेगी।

    आईईए की रिपोर्ट बताती है कि अगले वर्ष दुनिया में क्रूड की मांग वर्ष 2024 के मुकाबले 10 लाख बैरल प्रति दिन ज्यादा रहेगी। जबकि वर्ष 2024 में वर्ष 2023 के मुकाबले मांग 20 लाख बैरल प्रति दिन ज्यादा रही थी। यह मांग वर्ष 2000 से वर्ष 2019 में दर्ज 12 लाख प्रति दिन की वृद्धि से भी कम रहेगी।

    वैसे आईईए की रिपोर्ट के इतर देखा जाए तो अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषित नीति है कि वह अमेरिका में तेल और गैस का उत्पादन बढ़ाएंगे। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में और ज्यादा क्रूड की आपूर्ति होगी और कीमतों में ज्यादा गिरावट आने के संकेत है।

    अंतरराष्ट्रीय क्रूड बाजार की यह स्थिति भारत की इकोनॉमी के लिए एक शुभ संकेत है क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 86 फीसद क्रूड बाहर से आयात करता है और इसकी कीमतों में तेजी का असर आम जनता से लेकर अर्थव्यवस्था के हर पहलू को भुगतना पड़ता है।

    क्रूड महंगा होने से भारत का व्यापार घाटा बढ़ जाता है, खाने पीने की चीजें महंगी हो जाती हैं, आवागमन महंगा हो जाता है। ऐसे में सवाल यह है कि क्रूड की कीमतों में नरमी से देश की जनता को फायदा मिलेगा भी या नहीं। पेट्रोलियम मंत्रालय के ही आंकड़े बताते हैं कि नवंबर के माह में भारतीय तेल कंपनियों ने 73.41 डालर प्रति बैरल की दर से कच्चे तेल की खरीद की है।

    इससे सस्ते क्रूड की किसी एक महीने में भारतीय कंपनियों ने 31 महीने पहले दिसंबर, 2021 में 73.30 डॉलर प्रति बैरल की दर से खरीद की थी। इस वर्ष सिर्फ एक बार 15 मार्च, 2024 को तेल कंपनियों ने पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमतों में दो-दो रुपये प्रति लीटर की कमी की थी।

    इसके पहले 21 मई, 2022 को पेट्रोल व डीजल पर केंद्र सरकार ने उत्पाद शुल्क में कटौती करके 10-10 रुपये की राहत आम जनता को दी थी। लेकिन तब यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड 130 डालर प्रति बैरल तक चला गया था। उसी दौरान तेल कंपनियों ने रोजाना खुदरा कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को भी बंद कर दिया जो अभी तक बंद ही है।

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