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    रूस-अमेरिका तनाव से कच्चे तेल की आपूर्ति पर मंडराया संकट, 80 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकता है भाव

    Updated: Sat, 02 Aug 2025 06:46 PM (IST)

    अमेरिका और रूस के बीच तनाव बढ़ने से वैश्विक तेल आपूर्ति में बाधा आ सकती है। विश्लेषकों का अनुमान है कि 2025 तक कच्चे तेल की कीमतें 80-82 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने रूस को यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए समय सीमा दी है जिसके विफल होने पर रूस पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं जिससे तेल की कीमतें और बढ़ सकती हैं।

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    रूस- अमेरिका तनाव से कच्चे तेल की कीमतों पर मंडराया संकट

    नई दिल्ली। अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव के कारण वैश्विक तेल आपूर्ति श्रृंखला में बाधा उत्पन्न होने की आशंका जताई जा रही है। इस बीच विश्लेषकों का मानना है कि कच्चे तेल (ब्रेंट क्रूड) की कीमत 2025 के अंत तक 80-82 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।

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    इस समय ब्रेंट क्रूड की कीमत 72.07 डॉलर प्रति बैरल है। अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में रूस को यूक्रेन के साथ युद्ध समाप्त करने के लिए 10-12 दिन की समय सीमा दी थी। यदि ऐसा नहीं होता है, तो रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर अतिरिक्त प्रतिबंध और टैरिफ लगाए जा सकते हैं। इससे तेल की कीमत और बढ़ सकती हैं।

    वेंचुरा सिक्योरिटीज के एनएस रामास्वामी का कहना है कि यह तेल बाजार में एक नाटकीय बदलाव ला सकता है। यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत के रूस से कच्चे तेल के आयात में वृद्धि हुई है, जो अब 35 से 40 प्रतिशत है। हालांकि, ट्रंप ने तेल की कीमतें कम करने की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन अमेरिका से आपूर्ति में वृद्धि में समय लगेगा।

    ऊर्जा विश्लेषक नरेंद्र तनेजा ने कहा कि यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के लिए एक बड़ा खतरा है, खासकर यह देखते हुए कि रूस प्रतिदिन लगभग 50 लाख बैरल तेल निर्यात करता है।

    उन्होंने कहा, "अगर रूसी तेल को बाहर निकाला गया, तो कीमतें 100-120 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं, संभवतः इससे भी ज्यादा।" उन्होंने भारत जैसे देशों पर इसके प्रभाव की चेतावनी दी, जो रूसी कच्चे तेल पर बहुत अधिक निर्भर हैं।

    40 से अधिक देशों से विविध आयातों के कारण, भारत को कच्चे तेल की तत्काल कमी का सामना नहीं करना पड़ेगा। लेकिन, खुदरा ईंधन की कीमतों को नियंत्रित करना और भी मुश्किल हो सकता है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के घटनाक्रम वैश्विक तेल बाजार में उथल-पुथल मचा सकते हैं। अतिरिक्त उत्पादन क्षमता में कमी के कारण आपूर्ति में झटका लग सकता है, जिससे 2026 तक तेल की कीमतें ऊँची बनी रहेंगी।