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    हैकरों से लड़ने पर 30500 अरब रुपये खर्च करेंगी कंपनियां

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    Updated: Thu, 20 Mar 2014 10:02 AM (IST)

    साइबर अपराधियों ने दुनियाभर की कंपनियों को परेशान कर रखा है। हर साल हैकर अलग-अलग तरीकों से कंपनी के कंप्यूटरों में सेंधमारी कर उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहते हैं। एक शोध में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2014 में दुनियाभार की कंपनियां इनसे निपटने और अपने आंकड़ों को सुरक्षित रखने के लिए

    नई दिल्ली। साइबर अपराधियों ने दुनियाभर की कंपनियों को परेशान कर रखा है। हर साल हैकर अलग-अलग तरीकों से कंपनी के कंप्यूटरों में सेंधमारी कर उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहते हैं। एक शोध में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2014 में दुनियाभार की कंपनियां इनसे निपटने और अपने आंकड़ों को सुरक्षित रखने के लिए 500 अरब डॉलर (करीब 30,500 अरब रुपये) खर्च करेंगी।

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    आइडीसी और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (एनयूएस) के संयुक्त सर्वे के अनुसार, कंपनियां सुरक्षा मसलों पर 127 अरब डॉलर (करीब 7,750 अरब रुपये) और आंकड़ों में सेंधमारी रोकने के लिए 364 अरब डॉलर (करीब 22,210 अरब रुपये) खर्च करेंगी।

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    सर्वे में शामिल 60 फीसद उपभोक्ताओं ने बताया कि उन्हें सबसे ज्यादा डर आंकड़े, फाइलें और व्यक्तिगत सूचना गुम होने का है। करीब 51 फीसद लोग इंटरनेट के जरिये होने वाले लेन-देन से डरते हैं। करीब 50 फीसद को डर है कि उनका ई-मेल, सोशल नेटवर्किग या बैंक अकाउंट से जुड़ी जानकारियां चोरी हो सकती हैं।

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    माइक्रोसॉफ्ट साइबर क्राइम सेंटर के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर डेविड फिन ने बताया कि साइबर अपराधी लगातार आसानी से धन कमाने की चाहत में दूसरों के कंप्यूटर में घुस रहे हैं। पहचान और पासवर्ड चुराकर पैसों पर हाथ साफ कर रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट ने यह शोध 'प्ले इट सेफ' कैंपेन के तहत किया है। इस अभियान के तहत जागरूकता फैलाई जा रही है।

    शोध में पता चला कि करीब दो तिहाई कंपनियां इस तरह के संगठित अपराधियों के हाथों 315 अरब डॉलर का नुकसान डोल सकती हैं। इसका बड़ा कारण पायरेटेड सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल है। कई कर्मचारी खुद भी ऐसे सॉफ्टवेयर इंस्टाल करते हैं।

    फिन ने कहा कि ऐसे सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल का मतलब है कि आप अपने ही द्वारा बिछाई बारूदी सुरंग पर चल रहे हैं। इस ग्लोबल शोध में भारत, ब्राजील, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, जापान, मेक्सिको, पोलैंड, रूस, सिंगापुर, यूक्रेन, ब्रिटेन और अमेरिका के 1700 उपभोक्ताओं, आइटी कर्मचारी और सरकारी अधिकारियों से बातचीत की गई।