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    आरबीआई ने चेताया: कई केंद्रीय योजनाओं से कमजोर हो रहा सहकारी संघवाद, राज्यों पर भी होता है असर

    Updated: Sat, 21 Dec 2024 03:00 AM (IST)

    केंद्र सरकार की बड़ी-बड़ी वित्तीय योजनाएं सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ है क्योंकि इससे राज्यों की खर्च करने की आजादी पर असर पड़ता है। आरबीआई ने सीधे तौर पर यह भी कहा है कि केंद्र पोषित योजनाओं के समायोजन करने से सिर्फ राज्यों पर ही नहीं बल्कि केंद्र पर भी वित्तीय बोझ कम करने में मदद मिलेगी। इससे पहले कई राज्य भी सवाल उठा चुके हैं।

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    केंद्रीय बैंक ने राज्यों की वित्तीय स्थिति में सुधार की बात कही है (

     जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। केंद्र सरकार की बड़ी-बड़ी वित्तीय योजनाएं सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ है क्योंकि इससे राज्यों की खर्च करने की आजादी पर असर पड़ता है। यह बात आरबीआई ने राज्यों के बजट पर जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट में कही है। केंद्रीय बैंक ने राज्यों की वित्तीय स्थिति में सुधार की बात कही है लेकिन उसने पहली बार केंद्र पोषित आर्थिक योजनाओं के दूरगामी वित्तीय दुष्परिणामों पर बात की है।

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    कई राज्यों ने पहले भी उठाए हैं सवाल

    आरबीआई ने सीधे तौर पर यह भी कहा है कि केंद्र पोषित योजनाओं के समायोजन करने से सिर्फ राज्यों पर ही नहीं बल्कि केंद्र पर भी वित्तीय बोझ कम करने में मदद मिलेगी। आरबीआई की इस रिपोर्ट ने एक ऐसे मुद्दे को छेड़ दिया है जिसे महसूस तो कई राज्य करते हैं लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट तौर पर बोलता नहीं है।

    इस समय केंद्र पोषित स्कीमों (सीएसएस) की संख्या 75 है जबकि वर्ष 2016 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक उप-समूह की सिफारिशों के आधार पर 28 स्कीमों की मंजूरी दी थी। तब उप-समूह ने सीसीएस की संख्या किसी भी सूरत में 30 से ज्यादा नहीं होने की बात कही थी।

    केंद्र सरकार की बहुत सारी स्कीमों राज्य सरकारों को होती है समस्या

    आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, “केंद्र सरकार की बहुत सारी स्कीमों से राज्य सरकारों की खर्च करने का लचीलापन प्रभावित होता है और सहकारी संघवाद की भावना का क्षरण होता है। अगर केंद्र पोषित स्कीमों (सीएसएस) का ठीक तरीक से समायोजन किया जाए तो राज्यों को बजट में खर्च करने की ज्यादा आजादी होगी जिसका इस्तेमाल वह अपने राज्यों की विशेष जरुरतों के हिसाब से कर सकते हैं। इससे राज्यों और केंद्र दोनों पर वित्तीय बोझ कम करने में मदद मिलेगी।''

    केंद्रीय बैंक ने उक्त बात राज्यों के वित्तीय स्वास्थय को बेहतर करने और उनके कर्ज लेने की आवश्यकताओं के आकलन को ज्यादा पारदर्शी बनाने के संदर्भ में कही है। आरबीआइ की तरफ से इस तरह की परोक्ष चेतावनी देने को अप्रत्याशित माना जा रहा है। इस टिप्पणी के बाद अब 16वें वेतन आयोग की सिफारिशों का इंतजार करना होगा। अरविंद पानागढ़िया की अध्यक्षता वाले 16वें वेतन आयोग की रिपोर्ट अक्टूबर, 2025 तक आएगी।

    बजट प्रपत्रों में केंद्र पोषित स्कीमों की संख्या 75 दिखाई गई

    वर्ष 2024-25 के बजट प्रपत्रों में केंद्र पोषित स्कीमों की संख्या 75 दिखाई गई है। इनका बजटीय आकार 5,06,978.07 करोड़ रुपये रखा गया है। जबकि वर्ष 2022-23 मे इन स्कीमों का आकार 4,35,556.32 करोड़ रुपये का रहा था।

    कुल बजटीय आकार का 10 फीसद से ज्यादा का राशि सरकार इन स्कीमों के मदद के जरिए ही कर रही है। यह एक बड़ा कारण है कि आरबीआई को इन पर सवाल उठाने की जरूरत पड़ी है। उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों के उप समूह का गठन किया था कि सीएसएस में किस तरह से ज्यादा उपयोगी बनाया जाए। इस रिपोर्ट को सरकार ने मंजूरी भी दी थी।