एक करोड़ से ज्यादा के डिफॉल्टरों की सूचना अब रीयल टाइम पर देंगे बैंक
अब बैंक विजय माल्या जैसे रसूख वाले ग्राहकों के बारे में भी सूचना ज्यादा दिनों तक नहीं छिपा सकेंगे। अब सरकारी बैंकों को एक करोड़ रुपये से ज्यादा के फंसे कर्जे (एनपीए) वाले खाताधारकों के बारे में सूचना 'रीयल टाइम' पर ऊपर भेजनी होगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अब बैंक विजय माल्या जैसे रसूख वाले ग्राहकों के बारे में भी सूचना ज्यादा दिनों तक नहीं छिपा सकेंगे। अब सरकारी बैंकों को एक करोड़ रुपये से ज्यादा के फंसे कर्जे (एनपीए) वाले खाताधारकों के बारे में सूचना 'रीयल टाइम' पर ऊपर भेजनी होगी। अभी तक बैंक यह सूचना मासिक आधार पर उपलब्ध कराते हैं। पिछले हफ्ते वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ सरकारी बैंकों के प्रमुखों की बैठक में इस बारे में निर्देश दिये गये। कुछ समय पहले तक बैंकों की तरफ से यह सूचना तिमाही आधार पर उपलब्ध कराई जाती थी।
सूत्रों के मुताबिक विजय माल्या के किंगफिशर एयरलाइंस पर बकाये कर्जे के मामले में यह बात सामने आई है कि बैंकों ने काफी समय तक इस कर्जे की सही स्थिति सामने नहीं रखी। इस तरह का मामला अन्य कई एनपीए के मामले में देखने को मिली है।
इससे बैंक की असल एनपीए की स्थिति का आकलन करने में समस्या आती है। दिसंबर, 2015 को समाप्त तिमाही में देश के अधिकांश सरकारी बैंकों को भारी घाटा इसलिए भी हुआ है कि उन्होंने फंसे कर्जे के मामलों को काफी दिनों से छिपा कर रखा हुआ था। भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले वर्ष यह निर्देश दिया है कि हर बैंक को मार्च, 2017 तक अपने खाते में छिपाये गये एनपीए के बारे में समायोजन करना होगा, तब जा कर इन बैंकों ने एनपीए की सही तस्वीर दिखानी शुरु की है।
बहरहाल, अब सरकार ऐसी व्यवस्था करने जा रही है कि एक करोड़ रुपये से ज्यादा के एनपीए के बारे में अनिवार्य तौर पर 'रीयल टाइम' के तहत सूचना उपलब्ध करानी होगी। यानी जैसे ही यह खाता एनपीए की श्रेणी में आएगा, उसकी सूचना ऋण सूचना ब्यूरो को देनी होगी और उसके बारे में समायोजन अपने खाते में करना होगा।
वित्त मंत्रालय के ताजे आंकड़े बताते हैं कि कुल एनपीए में एक करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लेने वालों की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। यानी बड़े कर्ज लेने वाले ही इसकी वापसी में दिक्कत पैदा कर रहे हैं। मार्च, 2012 मे सरकारी बैंकों के सकल एनपीए में 58.21 फीसद एक करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज लेने वाले ग्राहकों के हैं। जो मार्च, 2014 में बढ़ कर 73.8 फीसद हो गया है। यही वजह है कि सरकार इनकी निगरानी पर सबसे ज्यादा जोर दे रही है।
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