बनारसी साड़ी उद्योग को टेक्सटाइल पार्क की दरकार, सालाना 10 हजार करोड़ रुपये का है कारोबार
श्रीकाशी विश्वनाथ का नव्य-भव्य धाम बनने के बाद बनारसी साडि़यों की खुदरा बिक्री बढ़ी हैं। बनारस के साड़ी दुपट्टा सूट उद्योग का सालाना कारोबार 10 हजार करोड़ रुपये है। इसके अलावा इस कारोबार से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से 8-10 लाख लोग जुड़े हैं। वहीं काशी में बनारसी वस्त्रों की 15 हजार से अधिक दुकानें हैं। आइए इस आर्टिकल में विस्तार से जानते हैं।

मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। अध्यात्म नगरी व देवाधिदेव की प्रिय काशी अब पूर्वांचल की सबसे बड़ी अर्थ नगरी भी बन गई है। बनारस की अर्थव्यवस्था बनारसी साड़ी व पर्यटन उद्योग पर आधारित है। अगर साड़ी का व्यापार मंदा होता है तो पूरा बनारस मंदी महसूस करने लगता है। अकेले बनारसी साड़ी के कारोबार से ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आठ से 10 लाख लोग जुड़े हुए हैं।
बीते कुछ वर्षों में बनारसी साड़ी की मांग देश ही नहीं पूरी दुनिया में बढ़ी है। विशेष रूप से श्रीकाशी विश्वनाथ का नव्य-भव्य धाम बनने के बाद बनारसी साड़ियों की दुकानें तीन गुना बढ़ी हैं। वार्षिक कारोबार 10 हजार करोड़ रुपये को पार कर गया है।
हैंडलूम, पावरलूम संचालकों और कारोबारियों का कहना है कि यहां पर लखनऊ की तर्ज पर टेक्सटाइल पार्क, अलग औद्योगिक क्षेत्र और भूमि व मशीन खरीद पर अनुदान मिले तो बनारसी साड़ी उद्योग को बहुत मदद मिलेगी। नव्य-भव्य बाबा धाम बनने के बाद यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में 10 गुना से अधिक की बढ़ोतरी हुई है।
यहां आने वाले देशी-विदेशी श्रद्धालु बनारसी साड़ी, सूट, दुपट्टा आदि की खरीदारी खूब कर रहे हैं। सबसे अधिक दक्षिण भारत के श्रद्धालु खरीदारी करते हैं। पहले होल सेल की बिक्री अधिक थी। पूरे देश के साथ-साथ विदेश तक आपूर्ति होती थी। अब घरेलू श्रद्धालु या पर्यटक यहां आ रहे हैं तो बनारसी वस्त्र खरीदने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं। इससे फुटकर बिक्री तो बहुत बढ़ी है, लेकिन थोक बाजार पर मामूली असर पड़ा है।
धागों व रेशम का हो प्रबंध
बनारसी साड़ी एक असंगठित उद्योग है, इसलिए बनारस में टेक्सटाइल पार्क की बहुत आवश्यकता है। सरकार को कोई ऐसा क्षेत्र डेवलप करना चाहिए, जहां इस उद्योग से जुड़ी मशीनें व हथकरघा आदि लगाए जा सकें। रेशम, जरी हो या पालिस्टर यार्न, बनारस के कारोबारी धागों के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर हैं।
सोना, चांदी और रेशम के धागे की कीमतों में वृद्धि के कारण बनारसी साड़ी की लागत काफी बढ़ गई है। जीआई टैगिंग के बावजूद दूसरे शहरों से बनकर आने वाली साडि़यों को यहां के दुकानदार बनारसी बताकर बेच रहे हैं। इससे भी यहां के उद्योग को आघात लग रहा है।
शैलेश प्रताप सिंह, मार्गदर्शक, हिंदू बुनकर कल्याण समिति
सरकार के सहयोग से बनारस में फिनिशिंग प्लांट की अत्यंत आवश्यकता है। पूर्वांचल का यह सबसे बड़ा उद्योग है, जहां रोजगार उपलब्ध है। धाम बनने के बाद निश्चय ही बनारस में खुदरा कारोबार बढ़ा है, परंतु होलसेल व्यापारियों को कोई विशेष मदद नहीं मिली।
देवेंद्र मोहन पाठक, महामंत्री, बनारसी वस्त्र उद्योग संघ
बुनकरों को कच्चा माल सहजता से उपलब्ध हो, इसके लिए यहीं पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो। एक हजार रुपये से अधिक मूल्य के वस्त्र पर 12 प्रतिशत जीएसटी है। स्कार्फ और दुपट्टा पर जीएसटी पांच प्रतिशत होना चाहिए। जो व्यापारी सिल्क व्यापार में बैंक ट्रांजेक्शन (क्रेडिट/डेबिट कार्ड) के जरिये विदेशी मुद्रा अर्जित करते है, उन्हें डीम्ड एक्सपोर्ट का दर्जा मिलना चाहिए। साथ ही प्रोत्साहन स्वरूप जीएसटी में भी छूट मिलनी चाहिए।
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