वाहन कंपनियों को भी नई सरकार का इंतजार
ग्रेटर नोएडा [जयप्रकाश रंजन]। सालाना 4.20 लाख करोड़ रुपये का कारोबार करने वाले और सीधे व परोक्ष तौर पर डेढ़ करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला ऑटोमोबाइल उद्योग संप्रग सरकार की नीतिगत जड़ता से बेहद खफा है। भारी उद्योग व सार्वजनिक उपक्रम मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने शुल्क में राहत के लिए वित्त मंत्री को जो पत्र लिखे हैं, उसको लेकर अ
ग्रेटर नोएडा [जयप्रकाश रंजन]। सालाना 4.20 लाख करोड़ रुपये का कारोबार करने वाले और सीधे व परोक्ष तौर पर डेढ़ करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला ऑटोमोबाइल उद्योग संप्रग सरकार की नीतिगत जड़ता से बेहद खफा है। भारी उद्योग व सार्वजनिक उपक्रम मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने शुल्क में राहत के लिए वित्त मंत्री को जो पत्र लिखे हैं, उसको लेकर ऑटो कंपनियों में कोई उत्साह नहीं है। पिछले दो दशक की सबसे बड़ी मंदी झेल रहा भारतीय ऑटो उद्योग किसी विपक्षी पार्टी की तरह सरकार बदलने का इंतजार कर रहा है। कार कंपनियों को भरोसा है कि सरकार बदलने के बाद ही अब कुछ अच्छा होगा और ऑटो बाजार में रौनक लौटेगी।
कार बाजार में भारतीय ब्रांड की साख जमाने में खास योगदान देने वाली महिंद्रा एंड महिंद्रा के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर व प्रेसिटेंड पवन गोयनका तल्खी भरे अंदाज में कहते हैं, पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल वाहनों को एक लाख रुपये की सब्सिडी दी जा रही थी। इसे यह कहते हुए वापस ले लिया गया कि सरकार जल्द नई नीति लाएगी। हम दो वषरें से इंतजार ही कर रहे हैं। अब तो इस सरकार के पास दिन ही कितने बचे हैं।
पढ़ें : इंतजार खत्म, शानदार कीमत में आ गई देश की पहली गियरलेस कार
कुछ ऐसा ही अंदाज फिएट इंडिया के प्रेसिडेंट नागेश बासावनहल्ली का है। उन्होंने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा, अन्य वाहन कंपनियों की तरह हम भी चुनाव बाद के माहौल पर उम्मीद लगाए हुए हैं। सरकार के कान पर जूं न रेंगते देख ऑटो कंपनियों के शीर्ष संगठन सियाम ने दो-चार महीने राहत की मांग करने के बाद अब चुप्पी साध ली है। मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरएस भार्गव ने कुछ दिन पहले दैनिक जागरण से कहा था कि केंद्र में नई सरकार के गठन के बाद ही ऑटो क्षेत्र को लेकर नीतियों में बदलाव की संभावना है।
सरकार की उदासीनता का आलम यह है कि वर्ष 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद एलान किया था कि वर्ष 2020 तक देश में 60 लाख कारें बिजली से चलाने के लिए नई नीति लाई जाएगी। नई नीति की उम्मीद में तब बैटरी चालित कारों को दी जाने वाली एक लाख रुपये की सब्सिडी भी वापस ले ली गई। लेकिन आज तक नई नीति नहीं आ पाई है। ऑटो कंपनियों के प्रति संप्रग की इस उदासीनता के कई उदाहरण हैं। इससे पहले वर्ष 2008 में जब अमेरिकी मंदी आई थी, तब उससे बचने के लिए ऑटो कंपनियों को संप्रग-एक ने उत्पाद शुल्क में भारी रियायत देकर उन्हें राहत दी थी। इस बार की मंदी उस समय से ज्यादा बड़ी है। सियाम का कहना है कि मंदी की वजह से कारों व बाइकों के लिए कल-पुर्जे बनाने वाली कंपनियों ने भारी मात्रा में कर्मचारियों की छंटनी की है।
टाटा मोटर्स, मारुति, महिंद्रा जैसी कंपनियों को भी उत्पादन घटाना पड़ा है। आज की तारीख में 90 फीसद कार बनाने वाली कंपनियां क्षमता से कम उत्पादन कर रही हैं।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।