90 Years of RBI: 90 साल का हुआ भारतीय रिजर्व बैंक, स्थापना से लेकर अब तक ऐसा रहा है सफर
90 Years of RBI 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के बाद से RBI ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने बैंकों के बीच तरलता बनाए रखने और सरकार को आर्थिक नीति बनाने में सहायता की। 1950 के दशक में रिजर्व बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया शुरू की।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। भारत का केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) 90 साल का हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आरबीआई की तारीफ में कसीदे पढ़े। प्रधानमंत्री ने कहा, ''आज आरबीआई एक ऐतिहासिक मुकाम पर पहुंच गया है। इसने अपने 90 साल पूरे कर लिए हैं। एक संस्था के रूप में, आरबीआई ने आजादी के पहले और बाद के, दोनों समय देखे हैं। आज आरबीआई अपनी व्यावसायिकता और प्रतिबद्धता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।'' पीएम ने साथ ही यह भी कहा कि आरबीआई को तेज ग्रोथ संग भरोसा कायम रखना होगा।
रिजर्व बैंक के कामों से आप काफी हद तक परिचित होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आरबीआई की स्थापना कब और किन परिस्थितियों में हुई थी। आइए हम आपको बताते हैं रिजर्व बैंक का अब तक का सफरनामा।
इतिहास के पन्नों से
दुनिया के कई अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की स्थापना भी बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने 1 अप्रैल 1935 को परिचालन शुरू किया था और इसकी स्थापना हिल्टन यंग कमीशन की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। सर ओसबोर्न स्मिथ को इसका पहला गवर्नर नियुक्त किया गया। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (II of 1934) बैंक के कामकाज का वैधानिक आधार प्रदान करता है। बैंक की स्थापना करेंसी नोटों के मुद्दे को विनियमित करने, मौद्रिक स्थिरता सुनिश्चित करने की दृष्टि से मुद्रा भंडार बनाए रखने और देश की ऋण एवं मुद्रा प्रणाली को लाभ के लिए संचालित करने के लिए की गई थी।
बैंक ने सरकार से अब तक मुद्रा नियंत्रक द्वारा किए जाने वाले कार्यों और इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया से सरकारी खातों और सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन को अपने हाथ में लेकर अपना परिचालन शुरू किया। कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास, रंगून, कराची, लाहौर और कानपुर में मौजूदा मुद्रा कार्यालय निर्गम विभाग की शाखाएं बन गए। बैंकिंग विभाग के कार्यालय कलकत्ता(कोलकाता), बंबई(मुंबई), मद्रास(चेन्नई), दिल्ली और रंगून में स्थापित किए गए। हालांकि, बर्मा 1937 में भारत से अलग हो गया था लेकन भारतीय रिजर्व बैंक अप्रैल 1947 तक वहां के केंद्रीय बैंक के रूप में काम करता रहा। आजादी के बाद जून 1948 तक आरबीआई पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के रूप में भी तब तक कार्यरत रहा, जब तक कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने काम करना शुरू नहीं कर दिया। भारत की आजादी के बाद 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
स्वतंत्रता के बाद की भूमिका
15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के बाद से RBI ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, बैंकों के बीच तरलता बनाए रखने और सरकार को आर्थिक नीति बनाने में सहायता की। 1950 के दशक में रिजर्व बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया शुरू की। इसका उद्देश्य बैंकिंग प्रणाली को विनियमित करना और ग्रामीण क्षेत्रों तक बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार करना था। 1991 में भारत के आर्थिक उदारीकरण के बाद, केंद्रीय बैंक की भूमिका और अधिक जटिल हो गई। इसने विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन संभाला, ब्याज दरों को नियंत्रित किया और वित्तीय बाजारों को भी विनियमित किया।
भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुख कार्य
- रिजर्व बैंक मुद्रा जारी करने, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और ब्याज दरों को निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार है। यह रुपये के मूल्य को बनाए रखने और अर्थव्यवस्था में स्थिरता सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
- RBI बैंकों, वित्तीय संस्थानों और भुगतान प्रणालियों को विनियमित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि ये संस्थान वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करते हुए काम करें।
- RBI वित्तीय बाजारों के विकास को बढ़ावा देता है। यह नए वित्तीय उत्पादों को शुरू करने, बाजार के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
- रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करता है और विदेशी मुद्रा बाजार को विनियमित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि विदेशी मुद्रा का प्रवाह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद हो।
रिजर्व बैंक के सामने प्रमुख चुनौतियां
- भारत में मुद्रास्फीति अक्सर वैश्विक कारकों और घरेलू आपूर्ति श्रृंखला की अड़चनों से प्रभावित होती है। आरबीआई को महंगाई को लक्ष्य के दायरे में रखने के लिए मौद्रिक नीति का कुशलतापूर्वक उपयोग करना होगा।
- वैश्विक वित्तीय संकटों का भारत पर भी असर पड़ता है। RBI को वित्तीय संस्थानों को मजबूत बनाने और वित्तीय प्रणाली में किसी भी तरह के संकट को रोकने के लिए उपाय करने होंगे।
- डिजिटल भुगतान और वित्तीय लेन-देन में वृद्धि के साथ, साइबर सुरक्षा खतरे भी बढ़ रहे हैं। रिजर्व बैंक को वित्तीय प्रणाली को साइबर हमलों से बचाने के लिए मजबूत सुरक्षा उपायों को लागू करना होगा।
- बैंकिंग सुविधाओं तक अभी भी ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की पहुंच वैसी नहीं हो सकी है जैसा शहरों में है। आरबीआई को वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने और सभी के लिए बैंकिंग सेवाएं सुलभ कराने के लिए रणनीति तैयार करनी होगी।