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    दुनिया में 12.5 करोड़ गरीब बढ़े, लेकिन भारत में एक दशक में 80 फीसदी कम हो गई चरम गरीबी

    Updated: Sat, 07 Jun 2025 07:34 PM (IST)

    विश्व बैंक ने वैश्विक गरीबी के आकलन में बदलाव करते हुए अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (IPL) को 2.15 डॉलर प्रति दिन से बढ़ाकर 3 डॉलर प्रति दिन कर दिया गया है। इस बदलाव के कारण दुनिया भर में चरम गरीबों की संख्या में 12.5 करोड़ की वृद्धि हो गई। लेकिन भारत इस मामले में एक सकारात्मक अपवाद साबित हुआ।

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    दुनिया में 12.5 करोड़ गरीब बढ़े, लेकिन भारत में एक दशक में 80 फीसदी कम हो गई चरम गरीबी

    नई दिल्ली। बीते एक दशक के दौरान भारत में चरम गरीबी की दर में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। विश्व बैंक की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश में चरम गरीबी दर 2011-12 के 27.1 फीसदी से गिरकर 2022-23 में 5.3 प्रतिशत पर पहुंच गई।

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    विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, 2011-12 में देश में 34.45 करोड़ लोग चरम गरीबी में जीवनयापन कर रहे थे, जो 2022-23 में घटकर 7.52 करोड़ रह गए। इस प्रकार पिछले 11 वर्षों में लगभग 26.9 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं।

    विश्व बैंक ने 3 डॉलर प्रतिदन (2021 कीमतों पर) की अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा के आधार पर यह आकलन किया है। 2.15 डॉलर प्रतिदिन (2017 कीमतों पर) की पुरानी गरीबी रेखा के मानक पर देखें तो भारत में चरम गरीबी दर 2011-12 के 16.2 प्रतिशत से गिरकर 2022-23 में 2.3 प्रतिशत रह गई है।

    रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में चरम गरीबी दर 18.4 प्रतिशत से घटकर 2.8 प्रतिशत हुई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 10.7 प्रतिशत से गिरकर 1.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है।

    बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के मामले में भी भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। 2005-06 में यह 53.8 फीसदी था, जो 2019-21 में घटकर 16.4 फीसदी और 2022-23 में 15.5 फीसदी रह गया।

    उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने गरीबी को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 2011-12 में इन राज्यों में देश की कुल गरीब आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा रहता था।

    वित्त मंत्रालय के मुताबिक, विश्व बैंक ने वैश्विक गरीबी के आकलन में बदलाव करते हुए अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (IPL) को 2.15 डॉलर प्रति दिन से बढ़ाकर 3 डॉलर प्रति दिन कर दिया गया है। इस बदलाव के कारण दुनिया भर में चरम गरीबों की संख्या में 12.5 करोड़ की वृद्धि हो गई। लेकिन, भारत इस मामले में एक सकारात्मक अपवाद साबित हुआ।

    केंद्र सरकार ने इस उपलब्धि को अपने सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों, बुनियादी ढांचे के विकास और समावेशी नीतियों का परिणाम बताया है।