जब कंपनी दिवालिया होती है तो क्या होता है, जानिए
कंपनी के दिवालिया होने के बाद भी उसे एक बार रिवाइव करने की कोशिश की जाती है
नई दिल्ली (प्रवीण द्विवेदी)। नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) की इलाहाबाद बेंच ने आईडीबीआई बैंक की याचिका को स्वीकार करते हुए जेपी इन्फ्राटेक को दिवालिया कंपनियों की श्रेणी में डाल दिया है। दिवालिया कानून के मुताबिक, किसी कंपनी को इस श्रेणी में डालते ही बोर्ड के डायरेक्टर्स सस्पेंड हो जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब कोई कंपनी दिवालिया होती है तो क्या होता है।
हमने इस बारे में टैक्स एक्सपर्ट और eSachiv. com के सीईओ मयंक वशिष्ठ से बात की है जिन्होंने इस विषय पर हमें विस्तार से बताया। जानिए उन्होंने क्या जानकारी दी...
कंपनी के दिवालिया होने पर क्या होता है: मान लीजिए अगर कोई कंपनी रियल एस्टेट/ प्रॉपर्टी के बिजनेस से जुड़ी है और उसके दिवालिया होने की नौबत आती है, तो उस सूरत में निवेशक क्रेडिटर बन जाते हैं, क्रेडिटर भी दो तरह के होते हैं एक सिक्योर्ड और दूसरे अनसिक्योर्ड।
कंपनी को रिवाइव करने की होती है कोशिश: कंपनी के दिवालिया होने पर मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के पास जाता है और इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल नियुक्त किया जाता है, जिसे यह जिम्मा सौंपा जाता है कि वो 180 दिनों के भीतर कंपनी को रिवाइव करने का प्रयास करे। अगर कंपनी 180 दिनों के भीतर कंपनी रिवाइव हो जाती है तो कंपनी फिर से सामान्य कामकाज करने लग जाती है, नहीं तो इसे दिवालिया मानकर आगे की कार्यवाही की जाती है।
क्या करती हैं दिवालिया हो चुकी कंपनियां: दिवालिया होने के बाद कंपनी Wind-up Petition दाखिल करती है। इसके बाद कंपनी अपनी कुल एसेट्स की बिक्री कर क्रेडिटर को पैसा चुका देती है, हालांकि इस सूरत में अक्सर निवेशकों को नुकसान ही होता है। आप एक उदाहरण से समझिए....
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मान लीजिए अगर किसी कंपनी में दो लोगों ने 100-100 रुपए का निवेश कर रखा है और दिवालिया होने के बाद कंपनी की कुल वैल्यु 20 रुपए रह गई है तो इन दोनों निवेशकों को 10-10 रुपए की राशि बराबर-बराबर बांट दी जाएगी। ऐसे में इन दोनों को 90 रुपए का नुकसान होगा।
क्या है निवेशकों के पास आखिरी रास्ता: ऐसी स्थिति में निवेशकों के पास आखिरी रास्ता यह होता है कि निवेशक कोर्ट डॉक्टराइन ऑफ कॉर्पोरेट वेल यानी यह साबित कर दें कि शुरुआत से ही कंपनी की मंशा निवेशकों का पैसा लेकर भागने की थी, तो ही आप कंपनी के प्रमोटर्स को लायबल (जवाबदेह) बना सकते हैं और इस सूरत में उनको आपका पैसा लौटाना होगा। फ्रीडम मोबाइल वाले मामले में कुछ ऐसा ही हुआ था।