पतंजलि विश्वविद्यालय में 'मृदा स्वास्थ्य परीक्षण एवं प्रबंधन द्वारा गुणवत्तापूर्ण जड़ी-बूटियों की सतत खेती' पर राष्ट्रीय सम्मेलन
पतंजलि विश्वविद्यालय में 'मृदा स्वास्थ्य परीक्षण एवं प्रबंधन द्वारा गुणवत्तापूर्ण जड़ी-बूटियों की सतत खेती' पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ। विशेषज्ञों ने मिट्टी के स्वास्थ्य और जड़ी-बूटियों की खेती में इसके महत्व पर बात की। किसानों और विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किए और गुणवत्तापूर्ण जड़ी-बूटियों के उत्पादन के लिए विभिन्न तकनीकों पर चर्चा की।

बालकृष्ण ने कहा कि सार्वभौमिक और निहित संपदा को पुनर्जीवित करना आवश्यक है
हरिद्वार। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय, पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टिट्यूट, आरसीएससीएनआर-1 के तत्वावधान में और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से भरुवा एग्री साइंस के संयुक्त प्रयास में 'स्वस्थ धरा' योजना के अंतर्गत 'मृदा स्वास्थ्य परीक्षण एवं प्रबंधन द्वारा गुणवत्तापूर्ण जड़ी-बूटियों की सतत खेती' पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला 27-28 अक्टूबर को पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन एवं पतंजलि विश्वविद्यालय के सहयोग से विश्वविद्यालय सभागार में आयोजित की गई। कार्यशाला ऑटोमेटिड मृदा परीक्षण मशीन 'धरती का डॉक्टर' (डीकेडी), के संदर्भ में स्वस्थ धरा और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा को प्रोत्साहित करने व वैश्विक स्तर पर मजबूत करने के उद्देश्य से आयोजित की गई।
पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने मुख्य अतिथियों का स्वागत पुष्प गुच्छ, अंग वस्त्र और स्मृति चिह्न भेंट करके किया। शुभारम्भ दीप प्रज्वलन, धन्वंतरि वंदना और डॉ. अर्चना तिवारी व उनकी टीम के समूहगान से हुआ। स्वागत उद्बोधन, निदेशक मृदा भरुवा एग्री साइंस, डॉ केएन शर्मा ने दिया। इसी क्रम में आचार्य और मुख्य अतिथियों द्वारा सार पुस्तिका 'स्वस्थ धरा' और 'मेडिसिनल प्लांट्सः इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फाइटोमेडिसिन्स एंड रिलेटेड इंडस्ट्रीज' पुस्तक का लोकार्पण हुआ।

नाबार्ड के अध्यक्ष शाजी केवी ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कहा कि नाबार्ड का प्रमुख उद्देश्य देश में स्थायी कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए कृषि, लघु उद्योग, कुटीर व हस्तशिल्प, ग्रामोद्योग और अन्य ग्रामीण शिल्प के लिए ऋण उपलब्ध कराना है। वर्तमान की आवश्यकता यह है कि ग्रामीण विकास में निवेश बढ़े और समावेशी तथा स्थायी कृषि को प्रोत्साहित किया जाए। नाबार्ड देशभर में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों का संचालन करते हुए कृषि प्रक्रियाओं में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अलावा, नाबार्ड ने अपने कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण भारत में 'विशिष्ट लक्ष्य-उन्मुख विभागों' के माध्यम से वित्तीय समावेशन को सशक्त बनाने पर ज़ोर दिया है। पतंजलि की भावी योजनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि कंपनी किसानों की आय में वृद्धि, जैविक खेती को बढ़ावा एवं प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
उन्होंने कहा कि विकसित भारत 2027 के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में यह वर्ष अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस वित्तीय वर्ष के अंत तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने की प्रबल संभावना है। उन्होंने मोनोकल्चर कृषि पर भी ध्यान आकर्षित किया, जिसका मुख्य उद्देश्य उत्पादन और लाभ बढ़ाना है, लेकिन इसके कारण मिट्टी की उर्वरता में कमी और जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री की योजनाएँ, जैसे पीएम किसान सम्मान और धन-धान्य मिशन, किसानों को वित्तीय सहायता और आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही हैं। साथ ही, मृदा स्वास्थ्य सुधार के लिए पतंजलि की 'धरती का डॉक्टर' मशीन प्रभावी साबित हो रही है, और नाबार्ड के साथ पतंजलि का सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है।

आचार्य ने कहा कि फसल की सुरक्षा से ही मानव स्वास्थ्य की रक्षा संभव है। अब समय आ गया है जब हमें अपने पूर्वजों से प्राप्त मिट्टी को उसके मूल स्वरूप में पुनः लौटाना चाहिए और 'मूल की भूल' को सुधारना चाहिए। पतंजलि की डीकेडी मशीन मृदा संबंधी चुनौतियों को दूर कर धरती को रोगमुक्त बनाने में सहायक सिद्ध हो रही है। इसकी किट से केवल आधे घंटे में मिट्टी के आवश्यक पोषक तत्व; नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, पीएच, ऑर्गेनिक कार्बन और इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी, का परीक्षण किया जा सकता है, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी या अधिकता का सटीक पता चलता है। प्राकृतिक संसाधन-संरक्षण और सेवा आधारित कृषि पद्धतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि मिट्टी तभी उपयोगी सिद्ध होती है जब उसे सुधारने वाली प्रबंधन तकनीकों को अपनाया जाए, जिससे वर्तमान और भविष्य में उत्पादकता तथा लाभप्रदता में वृद्धि हो सके। इससे स्वस्थ मिट्टी कम लागत में अधिक उत्पादन देने में सक्षम होती है।
मृदा सुधार का मूल आधार उसमें रहने वाले सूक्ष्म जीवों के लिए अनुकूल पर्यावरण बनाए रखना है जो विविध पौधों की खेती, मिट्टी को ढककर रखने और क्षति को न्यूनतम करने से संभव है। जैव विविधता कृषि प्रणाली की सफलता की आधारशिला है जो मृदा स्वास्थ्य, लागत नियंत्रण और लाभप्रदता में सुधार लाती है। साथ ही वर्तमान समय में संभावित औषधीय वनस्पतियों की कृषि-प्रौद्योगिकी के विकास को अत्यंत आवश्यक बताया।
अपने व्याख्यान में मृदा भरुवा एग्री साइंस के निदेशक डॉ केएन शर्मा ने बताया कि पतंजलि भरुवा एग्री साइंस ने जैविक खेती एक प्रणाली है जो रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के बजाय जैविक खाद, हरी खाद और फसल चक्र का उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता, पारिस्थितिक संतुलन और प्रदूषण मुक्त उत्पादन सुनिश्चित करती है। किसानों को उच्च गुणवत्ता वाली फसल उत्पादन की चुनौतियों का समाधान करने के लिए डीकेडी, ऑटोमेटेड मृदा परीक्षण मशीन बनाई है। इसके द्वारा मिट्टी से पोटैशियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, कैल्शियम जैसे महत्त्त्वपूर्ण तत्वों को रासायनिक तरीके से पृथक किया जाता है और उनके स्तर का मूल्यांकन किया जाता है।
मृदा विश्लेषण पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की सही मात्रा जानने का एक प्रभावी तरीका है जो मृदा प्रबंधन, उत्पादन, लागत में कमी, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उपज बढ़ाने में मदद करता है, जिससे कृषि स्थिरता में सुधार होता है। कार्यक्रम में बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन के डॉ. राजेश्वर सिंह चंदेल ने पर्वतीय क्षेत्रों में सीमित भूमि के बावजूद एकीकृत कृषि प्रणाली प्रभावी बताते हुए पारंपरिक ज्ञान, नवाचारी उपकरण और महिला प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके अलावा, अन्य विशेषज्ञों प्रो बी. आर. कांबोज, डॉ जेएन रैना, डॉ जीपी राव और डॉ प्रदीप शर्मा ने स्वस्थ मिट्टी, बेहतर फसल और प्रबंधन तकनीक से वैश्विक स्वास्थ्य के भविष्य से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी साझा की। कार्यक्रम के अंत में पोस्टर सत्र के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। अंत में सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।

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