मजदूरी की मजबूरी... दिल में टीस, फिर वोट डालने के बाद वापसी का प्रोग्राम
बस में भेड़-बकरियों की तरह ठूंस कर यात्रा कर रहे अधेड़ और बुजुर्ग मतदाताओं में पार्टियों की ओर से उम्मीदवार चयन को लेकर मतभेद स्पष्ट रूप से दिखता है।
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सुनील आनंद, बेतिया। हर ओर चुनावी शोर है, प्रत्याशियों का जोर है, माहौल चुनाव में सराबोर है। विभिन्न दलों के उम्मीदवार अपने कार्यकर्ताओं संग लोगों से मिल रहे। इंटरनेट मीडिया नारों और वादों से लबालब है।
इन सबके बीच आम मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग अभी भी यह तय करने में लगा है कि कौन से दल की सरकार उसके लिए बेहतर हो सकती है। किस उम्मीदवार का चयन करे। चूंकि जिले की बड़ी आबादी लोकल ट्रेनों का बेहतर परिचालन नहीं होने के कारण बसों में यात्रा करती है।
चुनाव के कारण प्रशासन की ओर से बसों को पकड़ लिए जाने के कारण जिले के विभिन्न रूटों में बसों की संख्या कम हो गई है। ऐसे में भेड़-बकरियों की तरह बस में ठूंसकर यात्रा करने की मजबूरी है।
शनिवार को दैनिक जागरण की टीम बस में सवार हुई तो कई बातें बाहर आ गईं और मुद्दों का सिलसिला चल पड़ा। आने वाली सरकार या अपने विधायक से उनकी क्या उम्मीदें हैं।
मौजूदा सरकार में हुए विकास से वे कितने संतुष्ट हैं। बुजुर्ग और अधेड़ यात्री सरकार की कार्यशैली से संतुष्ट तो नजर आ रहे, लेकिन पार्टियों की ओर से उम्मीदवारों के चयन पर नाराजगी दिख रही है। युवाओं में प्रवासन को लेकर नाराजगी है।
सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार की पीड़ा
नौतन के संदीप कुमार कहते हैं, लोकतंत्र में वोट का अधिकार महत्वपूर्ण है लेकिन बिहार की हालत रोजी-रोजगार को लेकर बदतर है। सड़कें बन गईं, बिजली-पानी फ्री है, मोदीजी की वजह से फ्री का राशन भी मिलता है, फिर भी मजदूरी की मजबूरी में अन्य प्रदेशों में जाना पड़ता है।
पर्व-त्योहारों पर घर आने के लिए टिकट की मारामारी होती है। इस पर किसी का ध्यान नहीं है। दिल में टीस है, फिर भी 11 तारीख को मतदान करने के बाद वापसी का प्रोग्राम बनाए हैं।
चनपटिया के छात्र रौशन कुमार तर्क दे रहे, सरकार तो रोजगार के लिए लोन भी दे रही है, लोन लीजिए और रोजगार कीजिए। फिर क्या था दोनों में बहस छिड़ गई।
सरकार की नवप्रवर्तन योजना के तहत लोन लेने के लिए बैंक और अधिकारियों के भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुए संदीप कहने लगे, रहने दीजिए भाई साहब, मैं शिक्षित बेरोजगार हूं। मैंने लोन के लिए भी कई दरवाजे खटखटाए हैं। वहां कितना भ्रष्टाचार है, जाइएगा तब पता चलेगा।
उम्मीदवारों के चयन को लेकर मतभेद
बस में भेड़-बकरियों की तरह ठूंस कर यात्रा कर रहे अधेड़ और बुजुर्ग मतदाताओं में पार्टियों की ओर से उम्मीदवार चयन को लेकर मतभेद स्पष्ट रूप से दिखता है। 85 वर्षीय रामानंद प्रसाद कहते हैं, मैं तो पुराना कांग्रेसी हूं लेकिन इस जिले में कांग्रेस की लुटिया उसके नेता ही डुबा रहे हैं।
उम्मीदवारों का चयन ऐसा होता है कि कार्यकर्ता और समर्थकों का मनोबल टूट जाता है। ऐसे- ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनको विधानसभा क्षेत्र के इतिहास-भूगोल तक की जानकारी नहीं है।
एक सप्ताह का चुनावी जनसंपर्क है, इसमें वे कई गांवों में भी नहीं जा सकेंगे। नरकटियागंज के मोहम्मद शमशाद की सुन लीजिए, मेरे यहां तो कांग्रेस और राजद दोनों के उम्मीदवार मैदान में हैं। दोनों पैराशूट वाले हैं। महागठबंधन के समर्थक मतदाता कंफ्यूज हैं, कि क्या करें?
सब ठीक-ठाक बा बबुआ, लेकिन घूसखोरी रोआ देलेबा
70 वर्षीय रामचंद्र साह कहते हैं, हम त पुरान जनसंघी बानी। आ, कहू से बतावे में डर भी नइखे। सब ठीकठाक बा। आपन बिहार बदल गईल बा। नवका लइका लोग उ दिन नईखे देखले एही से ई लोग के पता नईखे।
गांव के गरीब से भी लेवी वसूलात रहे। अब आधा रात के भी कहीं आवे जाए में डर नईखे लागत। लेकिन, घूसखोरी रोआ देलेबा। दलालन के मारे बड़ी दिक्कत बा। बिना नगद- नारायण के हाकिमो लोग कुछो नईखन सुनत। ई रोकल जाव, तब सही में रामराज आ जाई। हालांकि रामचंद्र साह की इस बात का कई अन्य लोगों ने समर्थन किया।

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