Bihar Flood: गंडक नदी की तेज धार में बहा चचरी पुल, कई गांवों का मुख्यालय से टूटा संपर्क
नेपाल में भारी बारिश के कारण गंडक नदी में जलस्तर बढ़ने से योगापट्टी प्रखंड में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। हरहा नदी पर बना चचरी पुल बह गया जिससे कई गांवों का संपर्क टूट गया है। प्रशासन नाव की व्यवस्था कर रहा है लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी नाव कभी नहीं चलाई जाती।

संवाद सूत्र, योगापट्टी। नेपाल में दो दिन पूर्व हुई वर्षा के कारण अचानक गंडक नदी के जलस्तर में वृद्धि हो गई। गंडक नदी का पानी हरहा नदी में प्रवेश कर गया है।
मंगलवार की रात में योगापट्टी प्रखंड के सिसवा मंगलपुर पंचायत के सिसवा गांव के समीप हरहा नदी पर बना चचरी पुल बह गया।
इस वजह से करीब आधा दर्जन गांवों का प्रखंड मुख्यालय से संपर्क भंग हो गया है। हालांकि, कुछ लोग प्राइवेट नाव के सहारे आवाजाही कर रहे हैं।
पूर्व मुखिया प्रतिनिधि पप्पू पांडेय ने बताया कि चचरी पुल के बह जाने से पंचायत के मंधातापुर, श्रीनगर, गोडटोली, भसहवा, बैसिया और मस्जिद टोला के लोगों की आवाजाही बंद हो गई। चूंकि, ये सभी गांव गंडक नदी और हरहानदी के बीच में बसे हैं।
उधर, चचरी पुल के बह जाने की सूचना पर गुरुवार की दोपहर में बीडीओ आनंद मोहन सिंह और सीओ नगमा तबस्सुम मौके पर पहुंचीं। करीब 200 मीटर में जनसहयोग से चचरी पुल का निर्माण हुआ था, जिससे लोग आवाजाही कर रहे थे। बाढ़ की वजह से चचरी पुल बह गया है।
सीओ नगमा तबस्सुम ने बताया कि नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण चचरी पुल बह गया है। उस पार गांव के लोगों के आवागमन के लिए नाव की व्यवस्था की जा रही है। पंचायत में बने आपदा भवन की साफ सफाई भी कराई जा रही है। ताकी बाढ़ की स्थिति में लोग शरण ले सकें।
हर वर्ष ग्रामीण करते हैं चचरी पुल का निर्माण
ग्रामीण नरेंद्र साह ने बताया कि करीब दस वर्ष पूर्व गंडक नदी के कटाव के कारण गांव एक दर्जन से अधिक गांव उजड़ गए थे। हालांकि, बाद में गंडक नदी करीब दो किमी दूर चली गई। छाड़न नदी (हरहा) में हर वर्ष जनसहयोग से चचरी पुल का निर्माण होता है।
इस वर्ष करीब 30 हजार रुपये चचरी पुल के निर्माण में लगे थे। जिससे गांव के लोग आवाजाही कर रहे थे। दियारे में खेती- बारी के लिए किसान भी आते जाते थे।
अचानक बाढ़ की वजह से पुल बह गया है। चचरी पुल हर वर्ष मानसून आने के साथ ही नदी का जलस्तर बढ़ने पर बह जाता है। फिर यहां के लोगों के लिए नाव ही सहारा रहता है।
दस वर्षों में कभी नहीं चला सरकारी नाव
ग्रामीण सुदामा मांझी ने बताया कि हर वर्ष प्रशासन की ओर से सरकारी नाव चलाने की घोषणा होती है। लेकिन अब तक कभी सरकारी नाव चला नहीं। क्योंकि प्रशासन की ओर से प्राइवेट नावों की हीं सूची बनाई जाती है और उन्हें चलाने की अनुमति दी जाती है।
प्राइवेट नाव के मालिक धुरन चौधरी ने बताया कि अब तक किसी भी प्राइवेट नाव के चालकों को सरकार की ओर से पारिश्रमिक नहीं दिया गया है। इस वजह से कोई भी नाविक नाव नहीं चलाना चाहता है। सभी प्राइवेट रुप में ही चलाते हैं और हरहा नदी पार कराने के लिए 50 रुपये किराया भी लेते हैं।

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