फंगस के कारण लगातार सूख रहे शीशम के पेड़ व पौधे
कृषि वैज्ञानिकों के काफी प्रयास के बाद भी शीशम के पेड़ों में फंगस का कहर नहीं रुक पा रहा है। इससे किसान बेहाल हैं।
बेतिया । कृषि वैज्ञानिकों के काफी प्रयास के बाद भी शीशम के पेड़ों में फंगस का कहर नहीं रुक पा रहा है। इससे किसान बेहाल हैं। एक दशक पूर्व शीशम के पेड़ में यह बीमारी महामारी के रूप में आरंभ हुई। उस समय किसानों के 75 फीसद शीशम के छोटे से लेकर बड़े पेड़ सूख गए। इससे किसानों की कमर ही टूट गई। इसके बाद विवश किसान पुन: शीशम लगाने लगे। पेड़ तो समय गुजरने के साथ बड़े होने लगे पर इधर कुछ दिनों से पुन: यही बीमारी शीशम के पेड़ में लगने लगी है, जिससे निरंतर शीशम के पेड़ सूखते जा रहे हैं। भले ही सरकार व विभिन्न विभाग पेड़ लगाने पर जोर दे रहे हैं पर शीशम के पेड़ों को सूखने से बचाने के लिए सार्थक पहल की जरूरत है।
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क्या है फंगस
फंगस शीशम के पेड़ में ज्यादा पकड़ता है। इसमें पेड़ पहले उपरी भाग से सूखना आरंभ होता है। पत्ते लाल होकर झड़ते चले जाते हैं। पेड़ की जड़ व धड़ में पपरी छोड़ने लगता है। फिर पौधा कुछ माह के बाद पूर्ण रूप से सूख जाता है। इसके बाद इसका उपयोग भले ही किसान जबरन फर्नीचर बनाने में करते हैं पर यह ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाता है।
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कहते हैं किसान
किसान उमाकांत सिंह, मंकेश्वर साह, पप्पू राय, अशोक प्रसाद आदि कहते हैं कि पहले सखुआ, सागवान व सतशाल की लकड़ी आम लोगों को नहीं मिल पाती थी। शीशम का ही फर्नीचर ज्यादा तैयार होता था। चाहे अपने उपयोग के लिए हो या फिर शादी में उपहार के लिए पूर्व में पलंग, कुर्सी, टेबल, घर का दरवाजा, चौखट, खिड़की तथा घर में उपयोग होने वाले पीढ़ा से लेकर अनेक प्रकार के सामान शीशम से ही बनते थे। आज भी शीशम का क्रेज है। फिर भी किसानों की तरफ कृषि विभाग व सरकार का ध्यान देना जरूरी है। शीशम के पेड़ सूखते चले जा रहे हैं। दवा देने के बाद भी बीमारी रुकने का नाम नहीं ले पा रही है। किसान चौतरफा मार झेलने को विवश हैं। अनाज उगाओ, तो उसकी बिक्री करने में पैक्स का चक्कर, पेड़ लगाओ तो सूख रहे- ऐसे में किसान करें तो क्या करें।
इनसेट बयान
शीशम का सूखना फंगस के कारण है। किसान इस बीमारी के लिए हीनोसान पांच एमएल दवा एक लीटर पानी में, टीपौल आधा एमएल एक लीटर पानी में या फिर तीसी का तेल मिला कर पेड़ों में दें। इससे इस बीमारी पर रोकथाम की जा सकती है।
डॉ. अजीत कुमार
मुख्य वैज्ञानिक
क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, माधोपुर
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