नेपाल में सोशल मीडिया पर पाबंदी का भारतीयों पर असर, रिश्तेदारों और कारोबारियों से टूटा संपर्क
नेपाल में इंटरनेट मीडिया पर प्रतिबंध लगने से भारत-नेपाल के रिश्तों में दिक्कतें आ रही हैं। मैनाटांड़ के कई मजदूर नेपाल में काम करते हैं जिनसे संपर्क टूट गया है। इंटरनेट यूजर्स परेशान हैं क्योंकि कारोबार और निजी जीवन प्रभावित हो रहा है। कॉल करना महंगा होने से लोग विकल्प तलाश रहे हैं।

संवाद सूत्र, मैनाटांड़। नेपाल में इंटरनेट मीडिया और 26 प्रकार के एप बंद होने से भारत- नेपाल के बीच बेटी- रोटी के रिश्ते में खलल पड़ गया है। मैनाटांड़ के दो दर्जन से अधिक मजदूर नेपाल में रोजगार करने के लिए गए हैं, जिनका उनके परिजनों से संपर्क नहीं हो रहा है।
नेपाल के चंरगाहा के इंटरनेट यूजर्स महेंद्र साह कलवार, ,पहलाद साह ,राघव साह का कहना है कि नेपाल सरकार ने बिना ठोस कारण बताए यह कदम उठाया है, जिससे उनका निजी और व्यावसायिक जीवन प्रभावित हो रहा है। खासकर विदेशों में काम करने वाले नेपाली प्रवासी और भारत से जुड़े लोग अधिक परेशान हैं।
मजबूरी में वाइबर, टेलीग्राम, वीटाक जैसे वैकल्पिक एप हैं, जिससे रिश्तेदारों और परिचितों को डाउनलोड करने के लिए कह रहे हैं। व्यापार-रोजगार नेपाल से जुड़ा है। पहले आसानी से इंटरनेट मीडिया एप के जरिए संपर्क बनाए रखते थे, लेकिन अब केवल मोबाइल कॉल पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
भारत से नेपाल फोन करने पर एक मिनट का खर्च 12 रुपये आता है। ऐसे में लगातार बात करना महंगा साबित हो रहा है। नेपाल के होटलों, टूर एंड ट्रेवल्स और अन्य व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि भारतीय ग्राहकों तक पहुंच बनाने और संपर्क बनाए रखने में उन्हें दिक्कत हो रही है।
काठमांडू के व्यवसायी अजरूद्दीन मियां ने कहा वाट्सएप से ग्राहक बुकिंग करते थे। अब ग्राहकों से संपर्क टूट रहा है। कारोबार पर सीधा असर पड़ रहा है।
नेपाल में इंटरनेट मीडिया और 26 प्रकार के एप बंद होने से भारत- नेपाल के बीच बेटी- रोटी के रिश्ते में खलल पड़ गया है। नेपाल और भारतीय लोगों में शादी - संबंध भी होता है। रिश्तेदारों से संपर्क करना मुश्किल हो गया है। भारत के सैकड़ों मजदूर नेपाल में काम करने के लिए जाते हैं। उनके परिवार से संपर्क भंग हो गया है। -मनोज ठाकुर , बभनौली
मेरे मामाजी का घर नेपाल में हैं। प्रतिदिन इंटरनेट मीडिया के माध्यम से बात होती थी, लेकिन अब पाबंदी लग जाने के बाद संपर्क करना मुश्किल हो गया है। अब हर दिन मोबाइल कॉल पर 15-20 मिनट बात करने में ही सैकड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं। लोग मजबूरी में विकल्प तलाश रहे हैं, लेकिन वे इसे स्थायी हल नहीं मानते।
- संजीव कुमार, अध्यक्ष, जागरण पंचायत क्लब, मैनाटांड़
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