कस्तूरबा पाठशाला के संस्थापक छात्र रहे मुकुटधारी
बगहा। चंपारण के भितिहरवा में महात्मा गांधी की ओर से स्थापित पाठशाला के प्रथम विद्यार्थियों में से एक रहे मुकुटधारी चौहान।
बगहा। चंपारण के भितिहरवा में महात्मा गांधी की ओर से स्थापित पाठशाला के प्रथम विद्यार्थियों में से एक रहे मुकुटधारी चौहान। उन्हें गांधीजी के सम्मुख बैठने व कस्तूरबा की गोद मे खेलने का मौका मिला। कस्तूरबा उन्हें बहुत मानती थीं। गांधीजी के निर्देश पर गुजरात से भितिहरवा पहुंचे शिक्षक पुंडलिक ने अपनी पुस्तक 'चंपारण के अनुभव' में भी इस बात का उल्लेख किया है। बाद में डॉ. राजेंद्र बाबू ने उन्हें पढ़ने के वास्ते पटना बुला लिया।
मुकुटधारी चौहान के परिजनों का कहना है कि उन्होंने जब होश संभाला तो देश गांधीजी के 'करो या मरो' आंदोलन को परवान चढ़ रहा था। मुकुटधारी प्रसाद चौहान जन-जन में गांधीवादी विचारों के लिए हमेशा समर्पित रहे। भितिहरवा निवासी स्वतंत्रता सेनानी मुकुटधारी चौहान के पुत्र शिवशंकर प्रसाद चौहान ने बताया कि पिता पर गांधीजी व उनके समर्पित कार्यकर्ताओं के प्रभाव का नतीजा था कि उनमें देश प्रेम की भावना कूट-कूट भरी थी। 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के समय कुमारबाग से भितिहरवा तक रेल व तार व्यवस्था ठप करने में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। आजादी के बाद सरकार को अपनी जमीन देकर भितिहरवा में अस्पताल और बुनियादी विद्यालय की स्थापना कराई। जमींदार परिवार में जन्मे मुकुटधारी को पैसे की दिक्कत नहीं थी। पूरे गांव के लोग उन्हें दुधू कहकर बुलाते थे। सिर से पिता का साया बचपन में ही उठ गया। कर्तव्य व धर्म परायण मां जागो देवी ने इसकी कमी का एहसास नहीं होने दिया। गुजराती पुंडलिक सतगड़े भी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि मुकुटधारी की मां उन्हें भी पुत्रवत व्यवहार करती थीं। जितना दूध मुकुट को पीने के लिए देतीं उतना ही पुंडलिक के लिए पाठशाला भेजतीं।
मुकुटधारी के दो पुत्र अरविद व अरुण चौहान भी समाज व देश की सेवा में अग्रणी रहे। गांधी आश्रम भितिहरवा के संचालन व इसे सरकार द्वारा अधिग्रहित करने तक अरविद की भूमिका महत्वपूर्ण रही। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के भारत यात्रा ट्रस्ट द्वारा जयप्रकाश आश्रम बनाने के लिए एक एकड़ जमीन दान में दी थी। मुकुटधारी के छोटे पुत्र स्व अरुण चौहान के पुत्र चंदन चौहान पीड़ा व्यक्त करते हुए कहते है कि चंपारण आंदोलन में उनके परदादा व परिवार के योगदान को सरकार के द्वारा भुला दिया गया। बताते हैं कि सरकार द्वारा गांधी आश्रम में मुकुटधारी चौहान की एक आदमकद मूर्ति तक स्थापित नहीं की जा सकी।