करवा चौथ 2025: शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय से लेकर पूजन सामग्री तक... एक क्लिक में सबकुछ जानिए
इस वर्ष करवा चौथ का व्रत शुक्रवार को है। इस दिन शिव पार्वती कार्तिकेय गणेश और चंद्र देव की पूजा होती है। करवा चौथ की कथा सुनने से अखंड सौभाग्य और सुख-शांति मिलती है। माता पार्वती और सीता ने भी यह व्रत किया था। इस दिन निर्जला व्रत रखकर चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोला जाता है जिससे पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम बढ़ता है।

संवाद सूत्र, बगहा। करवा चौथ व्रत इस बार शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश व चंद्र देव की पूजा का विधान है। व्रत के दौरान कथा श्रवण अत्यंत आवश्यक माना गया है। मान्यता है कि करवा चौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग अखंड रहता है साथ ही उनके घर में सुख, शांति व समृद्धि आती है। दंपति को संतान सुख भी मिलता है।
आनंदनगर निवासी सुबोध कुमार मिश्र ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत पहली बार माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। लोकाचार में कहा जाता है कि माता सीता ने भी भगवान श्रीराम के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। तब से सुहागिनें अखंड सौभाग्य हेतु इस व्रत का पालन करती हैं।
व्रत का महात्मय
करवा चौथ का व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास व प्रेम भी गहराई प्रदान करता है। यह व्रत भारतीय विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। खासकर उत्तर भारत में यह व्रत पति की लंबी आयु व समृद्धि के लिए रखा जाता है।
इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्र दर्शन के बाद व्रत का उपवास समाप्त करती हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम व समर्पण भी प्रकट करता है।
व्रत की विधि व संकल्प
नित्य दिन की भांति सुबह थोड़ा जल्दी उठकर अपना सारा काम जल्दी निपटा लेने के बाद स्नान कर पूजा की तैयारी की जाती है। व्रती भगवान शिव, माता पार्वती व करवा माता का ध्यान करती हैं। इसमें पूरे दिन निर्जला व्रत रखने का प्रण लिया जाता है। इस दौरान शुद्ध मन व शुद्ध शरीर से पूजा की जाती है।
पूजन सामग्री
पूजा की थाली में करवा (मिट्टी या धातु का छोटा घड़ा), धूप, दीप, रोली, चावल, मिठाई व फल सजाए जाते हैं। साथ ही चंद्र देव की पूजा के लिए छलनी, दीपक व जल का करवा तैयार किया जाता है। वही व्रत व पूजन में कथा सुनना अत्यंत आवश्यक माना गया है।
व्रत की मुख्य कथा में एक रानी वीरवती की कहानी सुनाई जाती है। जिसने अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखा था। कथा सुनने के बाद व्रती महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करते हुए करवा माता से आशीर्वाद मांगती हैं।
चंद्र देव का इंतजार
पूरे दिन उपवास करने के बाद महिलाएं चंद्रमा के उदय का बेसब्री से इंतजार करती हैं। रात 07:58 में उनका दर्शन कर अर्घ्य प्रदान किया जाएगा। आचार्य ने बताया कि चंद्रमा को अर्घ्य देने से पहले छलनी में पति का चेहरा देखकर पुनः चंद्र दर्शन करना शुभ माना जाता है।
अर्घ्य और व्रत का समापन
शाम में चंद्रोदय के तुरंत बाद महिलाएं जल से चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद पति के हाथों पत्नी को जल पीकर व्रत का समापन होता है। इसी विधि से करवा चौथ का व्रत पूर्ण होता है। कई क्षेत्रों में इसका समापन परिवार के साथ भोजन करके और उपहारों का आदान प्रदान करके किया जाता है।
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