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    संतपुर में नया कॉटेज: थारू संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम

    By Amit Kumar Shukla Edited By: Ajit kumar
    Updated: Sat, 06 Dec 2025 06:23 PM (IST)

    वाल्मीकि नगर के पास संतपुर गांव में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक कॉटेज बनाया गया है। यहाँ पर्यटकों को थारू संस्कृति, स्थानीय भोजन और प्राकृतिक सौंद ...और पढ़ें

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    तीन कमरों के भवन में सैलानियों को मिलेंगी सभी जरूरी सुविधाएं। जागरण

    जागरण संवाददाता,बगहा (पश्चिम चंपारण)। वाल्मीकि नगर से लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित थारू बहुल गांव संतपुर में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से तीन कमरों वाला आधुनिक कॉटेज भवन तैयार कर लिया गया है।

    टूरिज्म विभाग, पटना से इसकी औपचारिक अनुमति भी मिल चुकी है। कॉटेज के प्रोपराइटर संतोष काजी के अनुसार यह क्षेत्रीय संस्कृति, स्थानीय भोजन और प्राकृतिक सौंदर्य से पर्यटकों को रूबरू कराने का एक अनूठा प्रयास है।

    कॉटेज में आने वाले पर्यटकों के लिए देसी भोजन, घर जैसा नाश्ता, शुद्ध दूध से बना मीठा दही, देसी चाय और चाहें तो देसी मुर्गी का स्वाद भी उपलब्ध रहेगा। सभी व्यंजन ऑर्डर के एक घंटे के भीतर परोस दिए जाएंगे।

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    प्रति रूम 1525 रुपये में एयर कंडीशन आवास की सुविधा दी जाएगी तथा ऑनलाइन बुकिंग की भी व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही वीटीआर (वाल्मीकि टाइगर रिजर्व) द्वारा भी कॉटेज के प्रचार-प्रसार और बुकिंग में सहयोग किया जाएगा।

    परिसर में सेव, आधुनिक नींबू, आम, संतरा सहित कई फलों के पौधों से सजी आकर्षक बागवानी भी देखने को मिलेगी। ठंड के मौसम में खुली धूप का आनंद लेने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है।

    पूरे भवन को सुरक्षा के दृष्टिकोण से गेट लगाकर सुरक्षित बनाया गया है। पक्की सड़क और बेहतर मार्ग होने के कारण चारपहिया वाहन आसानी से कॉटेज तक पहुंच सकते हैं।

    नए साल पर होगा उदघाटन

    संतोष काजी बताते हैं कि कॉटेज के निर्माण और स्वीकृति में वाल्मीकि नगर के पूर्व विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रिंकू सिंह का विशेष सहयोग रहा है। पूरा कॉटेज सज-धजकर तैयार है और बहुत जल्द इसका औपचारिक उद्घाटन किया जाएगा।

    थरूहट की अनोखी संस्कृति का अनुभव

    कॉटेज में ठहरने वाले सैलानियों को थारू एवं थरुहट क्षेत्र की विशिष्ट जनजातीय संस्कृति को करीब से जानने और समझने का अवसर मिलेगा। यहां के पारंपरिक घरों, आदिवासी शैली में बने आवासों, स्थानीय खानपान, वेशभूषा, रीति-रिवाज और रहन-सहन की झलक पर्यटकों को एक अलग अनुभव देगी।

    गांव में मौजूद आदिवासी हथकरघा, स्थानीय कला और अनोखे आकर्षण भी सैलानियों का ध्यान खींचेंगे, जिन्हें वे न सिर्फ देख सकेंगे बल्कि उनके बारे में जानकारी भी प्राप्त कर सकेंगे।