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    दुर्गाबाग मंदिर, बेतिया

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 02 Oct 2019 06:29 AM (IST)

    बेतिया। नगर का ऐतिहासिक दुर्गाबाग मंदिर प्राचीन मंदिरों में सबसे प्रमुख है। माता के इस मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों लोग माता टेकने आते आते हैं। ...और पढ़ें

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    दुर्गाबाग मंदिर, बेतिया

    बेतिया। नगर का ऐतिहासिक दुर्गाबाग मंदिर प्राचीन मंदिरों में सबसे प्रमुख है। माता के इस मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों लोग माता टेकने आते आते हैं। शारदीय व वासंतीय नवरात्र में यहां मेला जैसा नजारा रहता है। हजारों श्रद्धालु माता के दरबार में माता टेकने आते हैं। सच्चे मन से जो भी श्रद्धालु यहां आते हैं वे यहां से कभी निराश होकर नहीं जाते हैं। माता अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है। इतिहास यूं तो कहा जाता है कि दुर्गाबाग मंदिर का निर्माण बेतिया महाराज द्वारा कराया गया है। लेकिन, कुछ श्रद्धालु इस स्थान का संबंध देवासुर संगाम से जोड़कर देखते हैं। नागरशैली की अनुपम कृति दुर्गाबाग मंदिर का संबंध ऋगवेद के देवीसुक्त से भी जोड़ा जाता है। शास्त्र मत के अनुसार माता करूणामयी और ममतामयी है। वे अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करती है। कालांतर में इस मंदिर की व्यवस्था व देखभाल सुगांव के राजाओं द्वारा की जाती है। इसके बाद इस मंदिर का देखभाल बेतिया महाराजों के हाथ में आ गया। विशेषता माता का यह मंदिर काफी जाग्रत है। वर्षों पुराना यह मंदिर शहर में आस्था का बहुत बड़ा केंद्र हैं। शादी विवाह तय करने के लिए भी मंदिर का यह स्थान काफी प्रसिद्ध है। यहां वर-वधु को देखने-दिखाने की रस्म भी पूरी की जाती है। ऐसा मानना है कि जिन जोड़ियों की वार्ता यहां होती है उनकी शादी नहीं टूटती है। मोतिहारी से अरेराज के रास्ते आने पर यह शहर प्रवेशस्थल भी है। यहां समस्त देवताओं तथा महर्षियों ने अपने तप से इस मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर की महता दूर-दूर तक विख्यात है। यह मंदिर बेतिया राज की अमूल्य धरोहर है।

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    तैयारी वैसे तो यहां सालोंभर लोग माता के दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, मगर शारदीय व वासंतिक नवरात्र में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है।यहां मंदिर को विशेष प्रकार से सजाया जाता है। नवरात्र पर यहां भव्य मेला का भी आयोजन भी होता है, जो इस वर्ष भी किया जा रहा है। बयान फोटो 01 बीईटी 08 दुर्गाबाग मंदिर देवासुर संग्राम से जुड़ते हैं। पराजित देवताओं ने दानवों से पुन: अपने राज्य व पद प्राप्ति के लिए वेत्रवती अरण्य में ऋषि बनकर तपस्या करने लगे। उन्हीं महर्षियों में अम्मृण ऋषि की पुत्री वाक ने भगवती के साथ अभिन्नता प्राप्तकर देवताओं को तथास्तु का वरदान दिया था। - बबलू झा

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    बयान फोटो 01 बीईटी 09 दुर्गाबाग मंदिर काफी जाग्रत है। यहां सच्चे मन से माता की आराधना करनेवालों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। माता के इस मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों लोग माता टेकने आते आते हैं। दुर्गाबाग का यह मंदिर भक्तों के लिए काफी कल्याणकारी है। आम दिनों में भी यहां भक्तों की आवाजाही व पूजा पाठ जमकर होता है। - पं. राकेश मिश्र, प्रसिद्ध आचार्य