गजेंद्र मोक्ष दिव्य धाम पर श्रद्धालुओं की उमड़ने लगी भीड़
बगहा । इंडो-नेपाल बार्डर वाल्मीकिनगर से तीन किलोमीटर की दूरी पर नेपाल के सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शामिल गजेन्द्र मोक्ष दिव्य धाम त्रिवेणी में अवस्थित है।

बगहा । इंडो-नेपाल बार्डर वाल्मीकिनगर से तीन किलोमीटर की दूरी पर नेपाल के सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शामिल गजेन्द्र मोक्ष दिव्य धाम त्रिवेणी में अवस्थित है। कोरोना संक्रमण के बाद बार्डर खुलने के साथ ही सैलानियों व भक्तों की भीड़ एक बार फिर उमड़ने लगी है। इस मंदिर की चर्चा श्रीमद् भागवत महापुराण व वाराहपुराण में भी वर्णित है। स्वामी कमलनयनाचार्य महाराज द्वारा दक्षिण भारत के मंदिरों की तरह बहुत ही खूबसूरत बनाया गया है। जिसमें मंदिर के अंदर बहुत ही सुंदर कलाकृति के साथ देवी देवता के मूर्ति का निर्माण किया गया है। मंदिर परिसर में शीशमहल के साथ-साथ विवाह शादी व धार्मिक अनुष्ठान के लिए यज्ञशाला का भी निर्माण कराया गया है। यहां पर संस्कृत गुरुकुल भी है। जिसमें करीब 100 बच्चे संस्कृत शिक्षाओं के साथ ही आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ठहरने के लिए अतिथि सदन व धर्मशाला का भी निर्माण किया जा रहा है।
मंदिर का इतिहास :-
यहां के बारे में स्वामी श्रीकृष्ण प्रपन्नाचार्य जी महराज बताते हैं कि त्रिकुट पर्वत पर हाथियों का राजा गजेन्द्र रहता था। उसके अंदर एक हजार हाथियों का बल था। एक बार वह गंडकी नदी के सरोवर में जल क्रीडा के लिए गया। वहां पर पानी के अंदर उसके पाव को एक ग्राह (गोह) ने अपने जबड़े में जकड़ लिया। लाख कोशिश के बाद भी जब वो अपने पैर को ग्राह के जबड़े से नहीं छुड़ा पाया तो वो चीत्कार कर अपने परिवार और अन्य हाथियों को बुलाया। लेकिन, फिर भी उसे ग्राह के जबड़े से सभी हाथियों के समूह द्वारा छुड़ाने में सफलता नहीं मिली। जब उसका सारा शरीर ग्राह ने पानी के अंदर खींच लिया और सूंड मात्र पानी के ऊपर रह गया। तब उसे पिछले जन्मों में किए गए भगवद भक्ति की स्मृति द्वारा भगवान नारायण की याद आई। उसने भगवान विष्णु की स्तुति की। तब जाकर भगवान नारायण गरुड पर सवार होकर प्रकट हुए और अपने सुदर्शन चक्र से उस ग्राह का सिर धड़ से अलग कर गजेंद्र की रक्षा की। यहीं वह जगह है जहां पर सालों तक गजेन्द्र हाथी और ग्राह के बीच लड़ाई हुई थी। भगवान की स्तुति से यहां गजेंद्र को मोक्ष की प्राप्ति हुई, इसलिए इस जगह का नाम गजेन्द्र मोक्ष दिव्य धाम पड़ा। यहां पर गंडकी नदी में भगवान नारायण के अवतरण के रूप में आज भी शालीग्राम पत्थर पाए जाते हैं। जो की इसकी वास्तविकता का प्रतीक है। यहां पर नेपाल ही नही बल्कि भारत के अनेकों प्रांतों से श्रद्धालु भगवान नारायण की स्तुति करने के लिए सालों भर आते-जाते रहते हैं।
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