विदेशों में भी रही छठ की धूम, कनाडा में हरनाटांड़ की चंदा ने दिया अर्घ्य
बगहा । लोक आस्था का महापर्व छठ बिहार की पहचान है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाले इस त्योहार का बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश समेत नेपाल के तराई क्षेत्रों में विशेष महत्व है।

बगहा । लोक आस्था का महापर्व छठ बिहार की पहचान है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाले इस त्योहार का बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत नेपाल के तराई क्षेत्रों में विशेष महत्व है। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है। जहां जहां भारतीय मूल के लोग खासकर बिहारवासी रहते हैं, वहां छठ पूजा श्रद्धा व भक्ति के साथ की जाती है। कनाडा में भी बीते कई वर्षाें की तरह इस वर्ष भी लोक आस्था के महापर्व की धूम रही। हरनाटांड़ के डॉ. नर्मदेश्वर द्विवेदी के ज्येष्ठ पुत्र व सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजीव रंजन अपनी पत्नी चंदा द्विवेदी और दो बच्चों के साथ बीते कई वर्षों से कनाडा में रहते हैं। लेकिन कनाडा में रहते हुए भी इन्होंने अपनी संस्कृति और पर्व त्योहारों से उतना ही प्रेम है। कनाडा स्थित ओन्टारिओ स्टेट के मिसिसागा शहर में भारतीय मूल के लोगों के साथ मिलकर यहां हर त्योहार का आनंद उठाते हैं। चाहे वो होली, दिवाली हो या फिर लोक आस्था का महापर्व छठ। कनाडा के ओन्टारिओ में भी रही छठ की धूम : हरनाटांड़ की चंदा द्विवेदी पिछले कई साल से अपने पति इंजीनियर राजीव रंजन और बच्चों के साथ कनाडा स्थित ओन्टारिओ स्टेट के मिसिसागा शहर में रह रही हैं। उन्होंने पिछले सात साल पहले घर की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए छठ व्रत करना शुरू किया। दूरभाष पर चंदा ने बताया कि अपनी परंपरा से न तो वो खुद दूर हुईं, न ही स्वजनों को होने दिया। बताया कि जब उनकी सास ने असमर्थतता जताई तो मैंने उस परंपरा को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया। चंदा बताती हैं कि वे अपने परिवार के साथ मिलकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड कम्युनिटी के लोगों के साथ मिलकर छठ व्रत करती हैं। सभी लोग प्रसाद बनाने में भी एक दूसरे की मदद करते हैं। पूजा सामग्री मिलने में होने वाली परेशानी से भी कम नहीं होती आस्था : ई. राजीव रंजन ने बताया कि कनाडा में उन्हें पूजन सामग्री खरीदने में थोड़ी परेशानी तो जरूर होती है, लेकिन व्यवस्था बन ही जाती है। यहां इंडिया पूजा और सजावट सेंटर के नाम की दुकान है, जहां तकरीबन कई पूजन सामग्री मिल जाती हैं। सूप नहीं मिलता तो उसके विकल्प से ही पूजा की जाती है। साथ ही सूप में लगने वाले आलता को खुद रुई के माध्यम से बनाते हैं। वहीं गागल नहीं मिलता तो बड़े नींबू से काम चलाया जाता है। जबकि केले का पत्ता आसानी से उपलब्ध हो जाता है। राजीव रंजन बताते हैं कि पूजा की सामग्री मिलने में होने वाली परेशानी से आस्था कम नहीं हो सकती। श्रीमति द्विवेदी बताती हैं कि घर के पास ही एक मंदिर है, जहां वैकल्पिक स्विमिग (बाथ तब) लगता है। जिसमें गर्म पानी डाला जाता है। उसी में छठ पूजा का अर्घ्य दिया जाता हैं। वहीं पर करीब 10 प्रवासी भारतीय परिवार एक साथ मिलकर इस पर्व को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
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