प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : नर देवी मंदिर में पहले थी बलि देने की प्रथा, अब मनोकामना पूरी होने पर कड़ाही चढ़ाने की परंपरा
Bihar Tourism बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में वीटीआर के जंगलों में प्राकृतिक सौंदर्य और आस्था का अनूठा संगम दिखाई देता है। यहां स्थापित माता का मंदिर करीब 850 साल के इतिहास को समेटे हुए है। इससे जुड़ी कई कथाएं भी स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित हैं। यहां अब पहले की तरह बलि नहीं दी जाती बल्कि कड़ाही चढ़ाई जाती है।
विनोद राव, बगहा (पश्चिम चंपारण)। चारों तरफ पेड़-पौधों की हरियाली। चंद कदमों की दूरी पर कलकल बहती गंडक की धारा। जंगल के बीच अठखेलिया करते हिरण और जंगली जीव। प्रकृति के इस मनोरम स्थल के बीच स्थापित है नर देवी मंदिर।
पश्चिम चंपारण जिला स्थित माता का यह ऐसा मंदिर है जहां सदियों पूर्व नर की बलि दी जाती थी। इसलिए इसका नाम नर देवी पड़ा।
अब मनोकामना पूरी होने पर कड़ाही चढ़ाने की परंपरा है। यहां बिहार के विभिन्न जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश और नेपाल से भी भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
बेतिया जिला मुख्यालय से 115 किलोमीटर दूर बगहा दो प्रखंड के वाल्मीकिनगर स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) के घने जंगल के बीच स्थापित है पर देवी मंदिर।
इसका इतिहास करीब 850 वर्ष पुराना बताया जाता है। आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ पर्यटन के लिहाज से भी यह मंदिर बेहद खास है।
माता के दर्शन के लिए पहुंचें श्रद्धालु यहां से कुछ दूर जाने पर हिमालय का मनमोहक दृश्य देख सकते हैं। शांत वातावरण में प्रकृति को करीब से महसूस कर सकते हैं।
मंदिर में स्थापित माता नर देवी की प्रतिमा।
माना जाता आल्हा और ऊदल के पिता ने कराया था मंदिर का निर्माण
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण आल्हा और ऊदल के पिता दसराज ने कराया था। वे देवी के महान भक्त थे। मंदिर से कुछ दूरी पर उनके भवन के अवशेष आज भी हैं।
मंदिर से दो किलोमीटर दूर घने जंगल में आल्हा, ऊदल का अखाड़ा भी है, जो अब बगीचे की रूप में है। बगहा निवासी नालंदा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर व इतिहासकार डा. प्रांशु समदर्शी बताते हैं कि मध्यकालीन भारत में आल्हा व ऊदल दो भाई थे। जिनकी वीरता की कहानी जगजाहिर है।
उनकी ननिहाल वाल्मीकिनगर के दरुआबारी में थी। ननिहाल आने के दौरान वे पूजा के लिए नर देवी मंदिर जाते थे। आल्हा-ऊदल के दरुआबारी के संबंधों की चर्चा चंपारण गजेटियर में भी है।
मंदिर के पुजारी विनोद महतो बताते हैं कि सच्चे मन से दरबार में आने वाले भक्तों की मनोकामना माता पूरी करती हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त यहां कड़ाही चढ़ाते हैं।
उसी कड़ाही में प्रसाद बनाकर माता को भोग लगाते हैं और स्वयं भी ग्रहण करते हैं। प्रतिवर्ष शारदीय व चैत्र नवरात्र में नौ दिवसीय अनुष्ठान होता है। माता को बकरे व मुर्गे की बलि दी जाती है। साथ ही कबूतर भी उड़ाए जाते हैं।
जनचर्चाओं के अनुसार हर रात यहां जंगल से निकलकर एक बाघ मंदिर के पास आता है, लेकिन आज तक किसी भक्त का नुकसान नहीं हुआ।
मंदिर में सालभर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन दोनों नवरात्र में उत्तर प्रदेश, नेपाल और बिहार के विभिन्न जिलों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
वाल्मीकिनगर आने वाले पर्यटक भी इस मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते। मंदिर के समीप एक कुआं है। श्रद्धालु कुआं से पानी निकाल हाथ-पैर धोकर मां के दर्शन को पहुंचते हैं। कुएं का पानी लोग अपने घर भी लेकर जाते हैं।
ऐसे पहुंचें
बगहा रेलवे स्टेशन से वाल्मीकिनगर की दूरी 45 किमी है। स्टेशन से बस और आटो से श्रद्धालु वाल्मीकिनगर पहुंचते हैं। वहां से एक किमी जंगल के भीतर है नर देवी मंदिर। भक्त वहां पैदल ही पहुंचते हैं। पटना से तीन प्राइवेट और दो सरकारी बसें भी चलती हैं।
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