बगहा अस्पताल में 70 लाख की बर्बादी, जर्जर कमरे में शवों के बीच पोस्टमार्टम और दुर्गंध का कहर
बगहा अनुमंडलीय अस्पताल में डॉक्टर जर्जर कमरे में शवों के बीच पोस्टमार्टम करने को मजबूर हैं। अज्ञात शवों को रखने के साथ ही पोस्टमार्टम भी किया जा रहा है, जिससे बदबू फैलती है। 70 लाख की लागत से बना आधुनिक पोस्टमार्टम कक्ष विभागीय जटिलताओं के कारण उपयोग में नहीं आ सका, जिससे वह जर्जर हो गया। अधिकारियों को जानकारी देने के बाद भी कोई समाधान नहीं हुआ है।

बगहा अस्पताल में 70 लाख की बर्बादी
अब्बु साबीर, बगहा। स्वास्थ्य विभाग के कारनामे अजब-गजब के हैं। बगहा अनुमंडलीय अस्पताल में एक छोटे से जर्जर कमरे में पहचान के लिए रखे गए शव के बीच ही डॉक्टर पोस्टमार्टम का काम करने को मजबूर हैं।
नियमानुसार अज्ञात शव को 72 घंटे तक पहचान के लिए रखा जाता है, लेकिन इसी कमरे में पोस्टमार्टम भी किया जा रहा है। इस दौरान वहां बदबू इतनी फैल जाती है कि डॉक्टरों को नाक पर रुमाल रखकर काम करना पड़ता है।
बीते गुरुवार को एक अज्ञात शव को पोस्टमार्टम के लिए अनुमंडलीय अस्पताल लाया गया और पहचान के लिए पुराने पोस्टमार्टम कक्ष में रखा गया। शुक्रवार को नगर थाना क्षेत्र के खोरा परसा गांव निवासी मधुसूदन प्रसाद श्रीवास्तव की ट्रेन से कटने से मृत्यु हो गई।
पोस्टमार्टम के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं
वहीं धनहा के सीतादियारा निवासी 45 वर्षीय रामचंद्र यादव की मृत्यु के बाद भी उनका शव पोस्टमार्टम के लिए लाया गया। दोनों शवों का पोस्टमार्टम डॉ. एस. पी. अग्रवाल ने उसी पुराने कमरे में किया, जो अब पूरी तरह जर्जर हो चुका है।
यह कोई पहली घटना नहीं है। अस्पताल में शवों को रखने और पोस्टमार्टम के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है। मजबूरी में शवों को कमरे में ही रख दिया जाता है, जिससे दुर्गंध फैलने लगती है। फिलहाल मौसम ठंडा होने के कारण स्थिति थोड़ी संभली हुई है, लेकिन गर्मी में हालात और खराब हो सकते हैं।
70 लाख खर्च के बाद भी नहीं हुआ आधुनिक पोस्टमार्टम कक्ष का उपयोग
स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2017 में करीब 70 लाख रुपये की लागत से आधुनिक पोस्टमार्टम कक्ष का निर्माण कराया था, लेकिन विभागीय जटिलताओं के कारण यह भवन अस्पताल को हस्तांतरित नहीं हो सका। परिणामस्वरूप यह भवन बिना उपयोग के ही जर्जर हो गया।
इस मुद्दे को लेकर एमएलसी भीष्म सहनी ने सदन में प्रश्न भी उठाया था। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने मरम्मत का आश्वासन दिया था, परंतु सरकार बदलने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री के कार्यकाल में भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। पुराने भवन को जर्जरता के कारण तोड़ दिया गया, जबकि नए निर्माण की निविदा रद्द कर दी गई। इस तरह विभाग द्वारा खर्च किए गए 70 लाख रुपये व्यर्थ चले गए।
पोस्टमार्टम कक्ष की दयनीय स्थिति की जानकारी वरीय अधिकारियों को कई बार दी जा चुकी है, लेकिन अब तक कोई आदेश नहीं मिला है। मजबूरीवश पुराने और जर्जर कमरे में ही शव की शिनाख्त और पोस्टमार्टम दोनों का कार्य किया जा रहा है।- डॉ. ए. के. तिवारी,प्रभारी उपाधीक्षक

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