West Champaran : लौरिया नंदनगढ़ में गूंजा शांति का संदेश, 13 देशों के 100 बौद्ध भिक्षु पहुंचे
West Champaran News : 13 देशों के 100 बौद्ध धर्मावलंबी भिक्षुओं का दल भगवान बुद्ध की अस्थि धातु के साथ लौरिया के ऐतिहासिक बौद्ध स्तूप नंदनगढ़ पहुंचा. ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, बेतिया। भगवान बुद्ध की अस्थि धातु के साथ 13 देशों के बौद्ध धर्मावलंबी भिक्षुओं का 100 सदसीय दल रविवार को लौरिया के ऐतिहासिक बौद्ध स्तूप नंदनगढ़ पहुंचा। सभी महिलाएं थीं।
इसमें जापान, चीन, अमेरिका, मलेशिया, श्रीलंका, तिब्बत, कनाडा, ताइवान, इंडोनेशिया,भूटान , आस्ट्रेलिया वियतनाम, भारत देश आदि सहित देशों की बौद्ध भिक्षुणी शामिल थीं। सबसे पहले सभी ने नंदनगढ़ की परिक्रमा की। उसके बाद करीब तीन घंटे तक भगवान बुद्ध की प्रतिमा और अस्थि धातु को रखकर उनकी पूजा अर्चना की।
इस टीम में एक भी पुरुष बौद्ध भिक्षु शामिल नहीं थे।ये नेपाल के शाक्य से चलकर वाल्मीकिनगर के दारुआवारी होते हुए नंदनगढ़ पहुंचे थे। अमेरिका के लाइट ऑफ बुद्ध धम फाउंडेशन की अगुआ धमा दिना ने बताया कि बुद्ध की विमाता (मौसी) महाप्रजापति गौतमी के नेतृत्व में 500 महिलाओं का दल शाक्य गणराज्य से होते हुए वैशाली तक गई हुई थीं।
ये महिलाएं भगवान बुद्ध से मिलकर बुद्ध संघ में शामिल होना चाहती थी, लेकिन बुद्ध ने उनसे मिलने से इंकार कर दिया था। बुद्ध वैशाली के कूटानगर में निवास कर रहे थे।
इसके बाद बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद के कहने पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इन सभी महिलाओं को भिक्षुणी बनने के लिए स्वीकृति दे दी। इसके पूर्व बीकेजी की छात्राओं ने उनका अभिनंदन किया। बौद्ध भिक्षुणी के उपर फूल बरसाते हुए स्वागत गान कर उनकी आरती उतारी।
सभी ने आशीर्वाद दिया। इसके बाद वे पूजा पाठ करने के केसरिया के लिए प्रस्थान कर गए। मौके पर बौद्ध भिक्षुणी में अमेरिका देश की पौला जीन शो, सुप्तना चो छुवेक,ऑस्ट्रेलिया की मलानी लुसी फेडम, थाईलैंड की लाम हा थी, मिस ओनाउंग होवाथ सैक, वियतनाम की फाम थी कीम येन, थी डीयू लिनह आदि शामिल रहीं।
भगवान बुद्ध् से जुड़े स्थलों का कर रही हैं भ्रमण
इस बाबत सूची फाउंडेशन ताइवान की नेतृत्व कर रही भिक्षुणी वंदना ने बताया कि जहां जहां भगवान बुद्ध ने अपना कदम रखा , वहां वहां जाकर हमसब अपने इष्ट देव की पूजा कर रहे हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने का काम करते हैं और दूसरों को भी प्रेरित करते हैं।
ली इयान जिन ने द्विभाषीय के माध्यम से बताया कि यह बौद्ध स्तूप विश्व का सबसे बड़ा स्तूप है। यहां पहुंचकर हमें असीम शांति मिल रही है। हमसब भगवान बुद्ध के दिए गए संदेश का प्रचार प्रसार करते हुए सभी बौद्ध स्थल पर जा रहे हैं। यहां के बाद हमसब केसरिया होते हुए वैशाली पहुंचकर वहां पूजा अर्चना करेंगे।

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