माता नरदेवी की मंदिर का होगा नव निर्माण
बगहा। वाल्मीकि ब्याघ्र परियोजना के सघन वन क्षेत्र में ऐतिहासिक नर देवी का मंदिर का नव निर्माण कार्य
बगहा। वाल्मीकि ब्याघ्र परियोजना के सघन वन क्षेत्र में ऐतिहासिक नर देवी का मंदिर का नव निर्माण कार्य आरंभ हो गया है। इस ऐतिहासिक मंदिर का नव निर्माण समाजसेवी हरेंद्र किशोर ¨सह के द्वारा कराया जा रहा है। वर्षो से उपेक्षित इस मंदिर के निर्माण के संबंध में उन्होंने बताया कि इस ऐतिहासिक स्थल पर देश - विदेश से लोग पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। लेकिन मंदिर की स्थिति अत्यंत दयनीय है। पर्यटन स्थल के रूप में विकसित वाल्मीकि नगर के ऐतिहासिक धरोहर को बचाने का प्रयास मैंने किया है। सरकार के स्तर से इस मंदिर के कायाकल्प की कोई व्यवस्था नहीं हुई है। ऐसे में मंदिर के नव निर्माण की योजना की बनी है। इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि यहां से कोई खाली हाथ वापस नहीं गया है। यहां लोग रोते हुए आते हैं। और हंसते हुए जाते हैं। आल्हा रुदल के पिता राजा जासर के द्वारा निर्मित नर देवी माता का मंदिर प्राचीन काल में अत्यंत छोटा था। उस समय एक समय में एक ही व्यक्ति पूजा कर सकता था। अभी इस मंदिर के स्वरूप में भी विस्तार किया जा रहा है।
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मंदिर का इतिहास
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प्रतापी राजा जासर दो भाई थे। पहला जासर दूसरा झगड़ू कालांतर में राजासर के दो पुत्र क्रमश: आल्हा एवं रुदल हुए तो वही झगडू को एक पुत्र टोडर की प्राप्ति हुई। झगड़ालू स्वभाव होने के कारण झगड़ू अक्सर राजा जासर से झगड़ता रहता था। वह साजिश के तहत अपने पुत्र को समझाया कि जब राजासर माता की आराधना में लीन रहे तो तुम रो रोकर उनके पूजा में व्यवधान डालना। यह सिलसिला कुछ दिनों तक चलता रहा। एक दिन राजा जासर ने अपने भतीजे से पूछा कि तुम्हें किस चीज की कमी है। तुम क्यों रो रहे हो? तुम्हें जो चाहिए वह मिलेगा। इस पर टोडर ने राजा जासर का सिर मांग लिया। राजा जासर ने इस मांग को सहज स्वीकार कर लिया और अपना सिर माता के चरणों में झुका दिया। और मौके का फायदा उठाकर टोडर ने राजा की बलि दे दी। उस समय से इस मंदिर का नाम नर देवी पड़ गया।
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अवशेष
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वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना से सटे दरूआवारी के जंगल में राजा जासर के भवन का अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। माता नर देवी के मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर घनघोर जंगल के बीच आल्हा रुदल का अखाड़ा आज भी मौजूद है। जहां फिलहाल बगीचा है। इस बगीचे में आम केला जामुन आदि के वृक्ष है। राजा जासर के अधीनस्थ बावन राजा हुआ करते थे। जो बावन गढ़ी नामक स्थान पर बैठकर न्याय करते थे। इस का विशाल साम्राज्य राजस्थान तक फैला था। माता न देवी के मंदिर में सालों भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है। लेकिन साल में दो बार यूपी नेपाल से हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं।
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