गरीबी शिक्षा में बाधक, बढ़ रहा बालश्रम
बेतिया। भारत सरकार ने भले ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सबको शिक्षा लेना जरूरी बना दिया है। इस
बेतिया। भारत सरकार ने भले ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सबको शिक्षा लेना जरूरी बना दिया है। इसके लिए कड़े कानून भी बने। इन सबके बावजूद बच्चे स्कूल से बाहर मजदूरी करते दिख जाएंगे। गरीबी व आर्थिक अभाव में जिंदगी बिताने वाले ऐसे अनेक बच्चे होटलों, गैरेजों, ठेलों, बस, ट्रक पर खलासी, घरों में घरेलू नौकर के रूप में काम करते देखे जा सकते है। वहीं, कुछ बच्चे कचरे के ढ़ेर से प्लास्टिक, पॉलीथिन, खाली डिब्बे चुनकर अपना पेट भर रहे है। सर्व शिक्षा अभियान समेत बच्चों के लिए चलायी जा रही कई योजनाएं इनके लिए शायद बेमानी है। भाजपा के धीरेंद्र कुमार चौधरी, अनिल पटेल, जदयू के राजेश प्रसाद पटेल, नेहानेसार सैफी ने बताया कि बालश्रम रोकने के लिए जन जागरुकता जरूरी है। सरकारी स्तर पर इमानदारी से प्रयास कर बाल मजदूरी रोका जा सकता है। यह हमारे देश व समाज हित में है।
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इनसेट
सरकारी प्रयास बेअसर
चाहे बच्चों को विद्यालय से जोड़ने की बात हो या बाल मजदूरी रोकने की। इनको काम से मुक्त करने की। इसमे सारी सरकारी योजनाएं अभी तक बेअसर साबित हो रही है। आज भी बाल मजदूरी जैसी समस्याओं का उन्मूलन नहीं हो पाया है। घरों में घरेलू नौकर, होटलों, बस, ट्रक पर खलासी आदि स्थानों पर बाल मजदूर मिल जाएंगे। सरकार ने विद्यालय के शिक्षकों, टोला सेवक, तालमी मरकज विद्यालय के बाहर के बच्चों को चिन्हित कर उन्हें विद्यालय से जोड़ने का प्रयास किया गया है। श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी को बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने के लिए लगाया गया है। फिर कई तरह की स्वयं सेवी संस्था भी इनके लिए कार्य कर रही है। लाखों रुपया पानी की तरह बहाया जाता लेकिन उपलब्धि शून्य हैं।
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इनसेट
गरीबी की वजह से मजदूरी को विवश
गरीबी की मार झेल रहे अभिभावक अपने फूल सरीखे बच्चों को मजदूरी पर भेजने को विवश होते है। बच्चों की पढ़ाई रुकवाकर मजदूरी करने भेजना गरीब अभिभावकों की मजबूरी है। बड़ा परिवार कम कमाने वाले आखिर पेट भरे तो भरे कैसे।
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इनसेट बयान
'बाल मजदूरी घृणित कार्य है। इसको रोकने में समाज के सभी लोगों का सहयोग चाहिए। इस तरह का मामला सामने आने पर कार्ययोजना बनाकर कार्रवाई की जाएगी।'
संजय कुमार पांडेय
बीडीओ
मैनाटांड़
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