जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी
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चौतरवा (पच) संवाद सूत्र : पतिलार पंचायत अंतर्गत मां बहुरहिया स्थान परिसर में आयोजित श्री रमा कथामृत नवाह परायण यज्ञ का शविार को वेदमंत्रोच्चारण के बीच हवन के साथ संपन्न हो गया। यज्ञ समाप्ति के बाद श्रद्धालु भक्तों के बीच प्रसाद का वितरण गया गया। वहीं शुक्रवार की रात प्रवचन करते हुये डा. मानस आश्रित ने रामवन गमन का बड़ा ही रोचक प्रसंग का वर्णन किया। श्री राम जी ने लक्ष्मण को समझाते हुये कहा कि जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवीस नरक अधिकारी
जिस राजा के राज्य की प्रजा दुखी होती है उसको नरक जाना पड़ता है। वर्तमान में सतासीन शासकों को इसके शिक्षा लेनी चाहिए। प्रजा के दुख सुख में राजा को सतत जागरुक होना चाहिए। यही राज धर्म है। श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि पहले मां से अनुमति ले लो तब मेरे साथ चलो। लक्ष्मण जी शरीर से मां के पास चले गये परंतु मन प्रभु के चरणें में ही रहा। जाई जननी पग नायऊ माथा। मन रघुनंदन जानकी साथ । अर्थात जीव का धर्म है कि तन से संसार के सारे संबंधों का निर्वाह करे परंतु मन प्रभु के चरणों में ही रखे। वहीं प्रवचन मंच से कुमारी नारायणी ने जनकपुर में आयोजित धनुष यज्ञ का बड़ा ही अद्भूत प्रसंग सुनाया। कहा कि भगवान शंकर का धनुष बहुत ही कठोर है जिसे भंग करना सामान्य पुरुष स्वरूप है। धनुष श्री राम द्वारा भंग किया जाता है और सीता का विवाह विधि पूर्वक संपन्न होता है। वहीं परमपूज्य श्री परमानंद जी महाराज ने श्रद्धालु भक्तों को अपने आर्शीवचन में कहा कि जो नित्य सत्कर्म में जुड़े रहते हैं वे ही सच्चे संत है। अपने दिनचर्या को सात्विक रखकर भी संत के समान व्यक्ति बन जाता है। वहीं चचरिक आदित्य कुमार ने श्रद्धालु भक्तों को अपना भजन सुनाकर मंत्र मुग्ध कर दिया।
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