विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा-अर्चना आज
वैशाली। विद्या व ज्ञान की देवी माता सरस्वती की पूजा-अर्चना शनिवार को है। माघ शुक्ल वसंत पंचमी क
वैशाली। विद्या व ज्ञान की देवी माता सरस्वती की पूजा-अर्चना शनिवार को है। माघ शुक्ल वसंत पंचमी को होने वाले पूजनोत्सव की तैयारी पूरी कर ली गयी है। शहर के सभी शिक्षण संस्थानों में पूजा की विशेष तैयारी की गयी है। जगह-जगह भव्य पंडाल बनाया गया है। शहर के मूर्तिकारों के निकट उपासकों की टोली रिक्शा, ठेला तथा अन्य वाहनों को लेकर अपनी बारी के इंतजार में मां सरस्वती के जयकारे से शहर के माहौल को भक्तिमय बना दिया। भक्तों ने मां का जयकारे लगाते हुए अपनी सवारी से मां की भव्य प्रतिमा को अपने-अपने पूजा स्थल के लिए प्रस्थान करना शुरू कर दिया है।
वसंत पंचमी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए हाजीपुर संस्कृत महाविद्यालय के व्याख्याता आचार्य अखिलेश कुमार ओझा एवं पातेपुर संस्कृत विद्यालय के पूर्व प्राचार्य पंडित देवेंद्र झा आदि कई पंडितों ने बताया कि वसंत पंचमी का दिन केवल विद्या की देवी सरस्वती की पूजा तक ही सीमित नहीं है। बल्कि अनेक परंपराओं व ऐतिहासिक घटनाओं का भी साक्षी रहा है। यह दिन भगवान विष्णु, शिव व कामदेव की पूजा से भी जुड़ा हुआ है। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवे दिन विष्णु और कामदेव की पूजा की भी परंपरा रही है।
पंडितों ने कहा कि शास्त्रों में वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी नाम से भी जाना जाता है। माता शारदा के पूजन के लिए तो वसंत पंचमी का दिन विशेष शुभ माना गया है। इस दिन पीले फूलों से शिव¨लग की पूजा करना भी विशेष शुभ माना जाता है। पंडितों ने कहा कि वसंत ऋतु और कामदेव का अटूट संबंध है। कामदेव का धनुष भी फूलों का है। उनका एक नाम अनंग है। अर्थात वे बिना देह के है। वे सभी प्राणियों की देह में अवस्थित हो जाते है। हमारी बुद्धि और विवेक पर काम आच्छादित न हो जाए, इसलिए हमें ज्ञान की देवी सरस्वती की आवश्यकता होती है।
ज्ञान, विवेक और कला-साहित्य के द्वारा हम काम रूपी ऊर्जा का सदुपयोग सार्थक सृजन में करते है। इसीलिए वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना का विधान है। माघ माह के शुक्ल पक्ष के पंचमी के दिन प्राय: सभी छात्र-छात्राएं, कवि, लेखक, गायक, वादक, संगीतज्ञ, नर्तक, कलाकार और रंगकर्मी आदि पूरी आस्था व श्रद्धा के साथ मां सरस्वती का पूजा-अर्चना करते है। पंडितों ने कहा कि मां सरस्वती की कृपा होने पर महामूर्ख भी महाज्ञानी बन सकते है। जिस डाल पर बैठे उसी को काटने वाले जड़ बुद्धि कालिदास कैसे एक दिन महाकवि बन गए, भारतीय सनातन संस्कृति में सरस्वती के जिस स्वरूप की पकिल्पना हुई है। देवी का एक मुस्कानयुक्त मुख और चार हाथ है। एक हाथ में माला, दूसरे हाथ में वेद है। शेष दो हाथों से वे वीणावादन कर रही है। हंस उनका वाहन है। देवी के मुखार¨वद पर मुस्कान से आंतरिक उल्लास प्रकट होता है। उनकी वीणा भाव-संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। स्फटिक की माला से अध्यात्म और वेद पुस्तक से ज्ञान का बोध होता है। उनका वाहन हंस है, जो नीर-क्षीर विवेक संपन्न होता है। अत: माता सरस्वती चित्त में सात्विक भाव और कलात्मकता की सहज अनुभूति जगाने को प्रेरणा देती है। माता सरस्वती ज्ञान, विवेक, कला और साहित्य की देवी है। जिनकी आराधना का उद्देश्य सद्गुणों को बढ़ाना और सार्थक सृजन है।
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