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    11 दिवसीय विष्णु महायज्ञ का विधिवत शुभारंभ

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 16 Feb 2022 11:45 PM (IST)

    संवाद सूत्र सहदेई बुजुर्ग (वैशाली) प्रखंड के मजरोही उर्फ सहरिया पंचायत के सहरिया गां

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    11 दिवसीय विष्णु महायज्ञ का विधिवत शुभारंभ

    संवाद सूत्र, सहदेई बुजुर्ग (वैशाली):

    प्रखंड के मजरोही उर्फ सहरिया पंचायत के सहरिया गांव में बुधवार को अग्नि प्रज्वलित किए जाने के साथ ही 11 दिवसीय विष्णु महायज्ञ विधिवत प्रारंभ हो गया। यज्ञ मंडप में बने हवन कुंड में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अग्नि देव का आह्वान करते हुए अग्नि प्रज्वलित किया गया। साथ ही यज्ञ पर बैठे सभी श्रद्धालुओं को संकल्प कराने के साथ-साथ 108 देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने के साथ प्राण प्रतिष्ठा किया गया।

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    मंत्रोंच्चारण से पूरा क्षेत्र भक्तिमय हो गया है। महायज्ञ शुरु होने के बाद यज्ञ में आए हुए श्रद्धालुओं ने यज्ञ मंडप की परिक्रमा कर स्थापित विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की।महायज्ञ के दौरान अयोध्या के आचार्य रंजीत शास्त्री ने कहा कि भगवान विष्णु की पूजा करने से कई जन्मों के पाप का अंत होता है। जीवन की सारी विपत्तियों का नाश होता है साथ ही घर की दरिद्रता समाप्त होती है। धन संबंधी समस्याएं खत्म होती है।

    उन्होंने यज्ञ का महत्व बताते हुए कहा कि यज्ञ प्रकृति के निकट रहने का साधन है। रोग-नाशक औषधियों से किया यज्ञ रोग निवारण वातावरण को प्रदूषण से मुक्त करके स्वस्थ रहने में सहायक होता है। यज्ञ शब्द यज एवं धातु से सिद्ध होता है। इसका अर्थ है देव पूजा, संगति करण और दान। संसार के सभी श्रेष्ठ कर्म यज्ञ कहे जाते है। यज्ञ को अग्निहोत्र, देवयज्ञ, होम, हवन, अध्वर भी कहते है। जहां होम होता है वहां से दूर देश में स्थित पुरुष की नासिका से सुगंध का ग्रहण होता है। परोपकार की सर्वोत्तम विधि हमें यज्ञ से सीखनी चाहिए। जो हवन सामग्री की आहूति दी जाती है उसकी सुगंध वायु के माध्यम से अनेक प्राणियों तक पहुंचती है। उसकी सुगंध से आनंद अनुभव करते है। सुगंध प्राप्त करनेवाले व्यक्ति याज्ञिक को नहीं जानते और न ही याज्ञिक उन्हें जानता है फिर भी परोपकार हो रहा है। वह भी निष्काम रूप से। यज्ञ में चार प्रकार के हव्य पदार्थ डाले जाते है।

    सुगंधित केसर, अगर, तगर, गुग्गल, कपूर, चंदन, इलायची, लौंग, जायफल, जावित्री आदि इसमें शामिल है। मलमूत्र के विसर्जन, पदार्थों के गलने-सड़ने, श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया, धूम्रपान, कल-कारखानों, वाहनों, भट्ठों से निकलने वाला धुआं, संयंत्रों के प्रदूषित जल, रसायन तत्व एवं अपशिष्ट पदार्थो आदि से फैलनेवाले प्रदूषण के लिए मानव स्वयं ही उत्तरदायी है। अत: उसका निवारण करना भी उसी का कर्तव्य है। पर्यावरण को शुद्ध बनाने का एकमात्र उपाय यज्ञ है। यज्ञ में प्रतिदिन संध्या में रासलीला का भी आयोजन किया जा रहा है।

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