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    लोकतंत्र के आंगन वैशाली में इस बार विरासत, परंपरा और बगावत; कौन मारेगा बाजी?

    Updated: Sun, 19 Oct 2025 07:28 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में वैशाली जिले की आठ सीटें महत्वपूर्ण हैं। हाजीपुर में भाजपा की साख दांव पर है, तो राघोपुर में लालू परिवार की विरासत की परीक्षा है। महुआ में तेज प्रताप यादव की बगावत है, जबकि लालगंज और वैशाली में गठबंधन की मजबूती का इम्तिहान है। राजापाकर और पातेपुर में भी मुकाबला दिलचस्प है, महनार में पार्टी की प्रतिष्ठा और बगावत का माहौल है।

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    वैशाली में कौन मारेगा बाजी। (फाइल फोटो जागरण)

    गंगेश गुंजन, हाजीपुर। बिहार विधानसभा चुनाव-2025 की सरगर्मी अब अपने चरम पर है और वैशाली जिला एक बार फिर राजनीतिक चर्चा के केंद्र में है। यहां हर सीट अपनी एक अलग कहानी कह रही है।

    कहीं राजनीतिक विरासत की लड़ाई है, कहीं परंपरा की परीक्षा, तो कहीं बगावत का बिगुल बज चुका है।। या यूं कहें कि वैशाली की आठों सीटें इस बार पूरे बिहार की सियासत का लिटमस टेस्ट बन गई हैं। हाजीपुर, लालगंज और पातेपुर में भाजपा की साख दांव पर है।

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    राघोपुर में लालू परिवार की प्रतिष्ठा, जबकि वैशाली, लालगंज और राजापाकर में गठबंधन की मजबूती और जनता के मूड की परीक्षा है। लोकतंत्र के इस आंगन में इस बार मुकाबला सिर्फ दलों का नहीं, बल्कि विरासत, परंपरा और बगावत तीनों ध्रुवों की सियासी जंग बन गई है।

    ढ़ाई दशक में विपक्ष नहीं भेद सका भाजपा का किला

    हाजीपुर विधानसभा सीट वर्ष 2000 से भाजपा के खाते में रही है। वर्ष 2000 से 2014 तक केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय यहां से जीत दर्ज करते रहे हैं। 2014 में उनके सांसद बनने के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा से अवधेश सिंह ने जीत दर्ज की थी।

    उसके बाद से वे लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। वे इस बार भी मैदान में हैं। उनके सामने एक बार फिर उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी देव कुमार चौरसिया ही हैं, जिन पर राजद ने लगातार दूसरी बार भरोसा जताया है। विपक्ष ने यहां हर चुनाव में दांव आजमाए पर 25 वर्षों से भाजपा के इस सुरक्षित किले को भेद पाने में कामयाबी नहीं मिली।

    राघोपुर: लालू परिवार की विरासत की परीक्षा

    राघोपुर पिछले तीन दशक से राजद की परंपरागत सीट रही है। इस बार भी लालू के लाल तेजस्वी प्रसाद यादव मैदान में है। वे वर्ष 2015 से यहां जीत दर्ज करते आ रहे हैं। महागठबंधन की सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। यह वही सीट, जिसका प्रतिनिधित्व पहले लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी कर चुके हैं। लालू-राबड़ी मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।

    इसलिए यह सीट केवल एक चुनाव क्षेत्र नहीं, बल्कि राजद की अस्मिता बन चुकी है। भाजपा ने इस बार भी पूर्व विधायक सतीश कुमार पर भरोसा जताया है। ये वही सतीश जिन्होंने 2010 में राबड़ी देवी को हराया था। यह मुकाबला राजनीतिक विरासत बनाम भाजपा की चुनौती में बदल चुका है।

    महुआ: लालू के बड़े लाल तेज प्रताप की बगावत

    महुआ का मैदान इस बार सबसे रोचक है। लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अब राजद में नहीं, बल्कि जनशक्ति जनता दल से चुनाव लड़ रहे हैं। 2015 में वे राजद से यहां विधायक बने थे। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में वे हसनपुर चले गए थे, जहां से विधायक बने थे। अब वे पार्टी और परिवार दोनों से हीं बेदखल हो चुके हैं।

    राजद ने मौजूदा विधायक डॉ. मुकेश रौशन को दोबारा टिकट दिया है, जबकि लोजपा (रामविलास) ने फिर से संजय सिंह पर दांव लगाया है। पूर्व जदयू प्रत्याशी आसमां परवीन टिकट कटने से नाराज होकर निर्दलीय मैदान में हैं। लालू के बड़े लाल की बगावत की चर्चा ने यहां के माहौल को खास रंग में रंग दिया है।

    लालगंज : भाजपा के सामने शुक्ला परिवार की अगली पीढ़ी

    लालगंज सीट पर काफी दिलचस्प मुकाबला है। भाजपा ने वर्तमान विधायक संजय कुमार सिंह पर दोबारा भरोसा जताया है। वहीं, राजद ने पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला व अन्नु शुक्ला की पुत्री शिवानी शुक्ला को टिकट देकर विरासत की राजनीति का कार्ड खेला है। वहीं कांग्रेस ने आदित्य कुमार को उम्मीदवार बनाया है।

    यहां महागठबंधन में दोस्ताना टकवराव का माहौल बन गया है। राजद और कांग्रेस ने अपने-अपने उम्मीदवारों को उतार कर मुकाबले को रोचक बना दिया है। यहां न सिर्फ महागठबंधन में दोस्ताना टकराव का माहौल में है बल्कि महागठबंधन की मजबूती भी दरकती दिख रही है।

    वैशाली : चाचा-भतीजा और महागठबंधन की आंतरिक जंग

    वैशाली विधानसभा सीट पर परिवार और गठबंधन दोनों की परीक्षा है। जदयू ने मौजूदा विधायक सिद्धार्थ पटेल को दोबारा भरोसा जताते हुए उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि उनके चाचा पूर्व मंत्री वृषिण पटेल, जो यहां से छह बार विधायक रह चुके हैं, इस बार निर्दलीय मैदान में हैं।

    वहीं, महागठबंधन के भीतर भी टकराव है। कांग्रेस ने संजीव सिंह को टिकट दिया है तो राजद ने अजय कुशवाहा को। वैशाली विधानसभा क्षेत्र का चुनावी परिणाम भले जो हो, वह ता जनता के मूड पर तय करेगा। लेकिन यहां का मुकाबला घर की जंग और गठबंधन की दरार दोनों का प्रतीक बन गया है।

    राजापाकर : महागठबंधन की अंदरूनी लड़ाई

    इस बार राजापाकर विधानसभा क्षेत्र में भी लड़ाई काफी रोचक है। वर्ष 2020 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट से जीत दर्ज करने वाली प्रतिमा कुमारी को कांग्रेस ने एक फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं, जदयू ने भी यहां से दोबारा महेंद्र राम को अपना उम्मीदवार बनाया है।

    पर असली पेच यह है कि महागठबंधन के ही घटक दल सीपीआई ने यहां से मोहित पासवान को चुनावी मैदान में उतार दिया है। वैशाली और लालगंज की तरह राजापाकर में भी न सिर्फ महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े हो गए हैं, बल्कि महागठबंधन की आपसी खींचतान और अंदरूनी लड़ाई को सतह पर ला दिया है।

    पातेपुर : इस सीट का इतिहास रहा है बड़ा दिलचस्प 

    पातेपुर सीट का इतिहास बड़ा दिलचस्प है। पिछले तीन दशक के दौरान जनता ने आजतक किसी विधायक को यहां से लगातार दोबारा मौका नहीं दिया। इस बार फिर भाजपा ने एक बार फिर से वर्तमान विधायक लखेंद्र पासवान भर भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा है, जबकि राजद ने पूर्व विधायक प्रेमा चौधरी को टिकट दिया है।

    प्रेमा चौधरी यहां से तीन टर्म विधायक भी रह चुकी हैं। दोनों ही ओर से चुनाव पर मोर्चाबंदी शुरू हो गई है। पर यह देखना दिलचस्प होगा कि पातेपुर की जनता अपनी पुरानी परंपरा को तोड़ती है या एक बार फिर बदलाव का झंडा उठाती है

    महनार : पार्टी की प्रतिष्ठा व बगावत

    महनार विधानसभा क्षेत्र की सियासत इस बार खासे दिलचस्प मोड़ पर है। यहां जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। वे वर्ष 2015 में इसी सीट से विधायक चुने गए थे। वहीं, वर्ष 2020 में लोजपा (रामविलास) की टिकट से लड़ने वाले ईं रविंद्र सिंह इस बार राजनीतिक पाला बदलते हुए राजद से ताल ठोक रहे हैं।

    इससे मुकाबले के समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। वहीं, टिकट नहीं मिलने से नाराज राजद के जिला प्रधान महासचिव संजय कुमार राय ने बगावत का बिगुल फूंकते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल किया है।