पकने के साथ अल्पान केले में आने लगती सुगंध
वैशाली जिले में अल्पान और मुठिया केले का खूब उत्पादन होता है। इन दोनों केले की अपनी विशेषता है। विशेष स्वाद और सुगंध के कारण ये केले लोगों को खूब पसंद आते हैं।
राजेश, बिदुपुर (वैशाली): वैशाली जिले में अल्पान और मुठिया केले का खूब उत्पादन होता है। इन दोनों केले की अपनी विशेषता है। विशेष स्वाद और सुगंध के कारण ये केले लोगों को खूब पसंद आते हैं।
अल्पान केला की प्रमुख विशेषता है कि पकने के बाद इसमें सुगंध आने लगता है। कई दिनों तक सुगंध बना रहता है। कमरे में यदि पके अल्पान केले का घौद रख दिया जाए तो पूरा कमरा सुवासित हो उठता है। यह खाने में काफी स्वादिष्ट एवं मीठा होता है। वहीं मुठिया केला स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक माना जाता है। यह सुपाच्य होने के साथ साथ मधुमेह से पीड़ित रोगियों के लिए फायदेमंद भी है। इसका इस्तेमाल सब्जी में खूब होता है। पूजा में भी मुठिया केले का उपयोग किया जाता है।
जिले में उत्पादित अल्पान एवं मुठिया प्रजाति के केले की आपूर्ति देश एवं प्रदेश के विभिन्न भागों में बड़े पैमाने पर की जाती है। यहां से केला नेपाल तक जाता है। सीतामढ़ी, उत्तरप्रदेश के बलिया, गोरखपुर, वाराणसी, झारखंड के देवघर, रांची, हजारीबाग, कोडरमा सहित बिहार के पटना, जहानाबाद, गया, छपरा, मुंगेर, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, दरभंगा, मधुबनी, मोतिहारी जिले के व्यापारी यहां से केला ले जाते हैं। बिहारशरीफ से कई व्यापारी यहां से केला खरीदते हैं। वहीं मुठिया केला की सबसे अधिक मांग पटना एवं बिहारशरीफ के बाजार में है।
केला का उत्पादन मौसम पर निर्भर करता है। अगर मौसम ने साथ दे दिया तो फिर केला उत्पादकों की बल्ले -बल्ले हो जाती है। लेकिन आंधी-तूफान आ गया तो फिर पूंजी भी डूब जाती है। क्योंकि केले की खेती बार-बार अब तक फसल बीमा के दायरे में नहीं आई है। बाढ़-सुखाड़ में अन्य फसलों के बर्बाद होने पर तो फसल क्षति मुआवजा मिल जाता है, लेकिन केला उत्पादकों को मुआवजा नहीं मिलता।
बिदुपुर के चेचर कुत्तुपुर निवासी व किसान श्री से सम्मानित चन्द्रभूषण सिंह का कहना है कि पनामा बिल्ट रोग के कारण भी केले के उत्पादन पर असर पड़ रहा है। अभी तक इस रोग का कोई कारगर इलाज सामने नहीं आ पाया है। केला आधारित उद्योगों के नहीं लगाए जाने से भी उत्पादकों में निराशा है। दो दशक पहले यहां केला अनुसंधान केन्द्र हरिहरपुर में केला का चिप्स तैयार करने, केले के रेशे से विभिन्न प्रकार की वस्तुए बनाने का प्रशिक्षण दिया गया लेकिन जिले में इसके लिए कोई उद्योग नहीं लगाया गया।
20 पौधे लगाए जाते हैं एक कट्ठा में
400 पौधे लगते हैं एक एकड़ में
20 से 25 हजार रुपये वार्षिक खर्च है प्रति एकड़ में
25 से 30 हजार रुपये आय होती है प्रति एकड़ में मौसम अनुकूल रहने पर
150 रुपये से लेकर 450 रुपये तक केले के घौद की होती है बिक्री
केले पर आधारित उद्योग नहीं लगाए जाने से उत्पादकों में निराशा
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।