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    आईपीसी की धारा 353 को निरस्त करना जरूरी

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    Updated: Sat, 09 Aug 2014 01:05 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, हाजीपुर

    लोकधारा संस्था के तत्वावधान में शुक्रवार को विधिक संघ पुस्तकालय भवन में भारतीय दंड विधान की धारा 353 के दुरूपयोग और इसकी प्रासंगिकता पर आयोजित गोष्ठी में उक्त धारा को निरस्त करने की आवश्यकता जतायी गयी। गोष्ठी की अध्यक्षता अधिवक्ता उमाशंकर प्रसाद सिंह ने की। जबकि संचालन विनय चंद्र झा ने किया। गोष्ठी का विषय प्रवेश कराते हुए श्री झा ने कहाकि धारा 353 को सरकार ने हाल के दिनों में गैर जमानती बना दिया गया है। जिसे कारण इसका दुरूपयोग बढ़ता जा रहा है। इस पर चर्चा करते हुए उन्होंने इसकी प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाया। इस धारा को ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय जन आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित किया था। सरकार इस धारा को निरस्त करे। उच्च न्यायालय के अधिवक्ता और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी भूदेव तिवारी ने अपने संबोधन में भादवि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए इस औपनिवेशिक करार दिया। उन्होंने इस धारा को निरस्त करने की आवश्यकता जताई। जब भादवि की धारा 186 अस्तित्व में है फिर इस धारा को बनाए रखने की आवश्यकता नहीं है। संगोष्ठी को मुकेश रंजन, राजीव कुमार शर्मा, कुमार राकेश, रामाधार पासवा, संजीव कुमार, राज किशोर ठाकुर, रंजन वर्मा, विष्णुदेव भगत, कामेश्वर दास, प्रीति सिंह, वीरेश शर्मा, सुरेंद्र कुमार गुप्ता, अरूण कुमार, चंद्रदीप नारायण सिंह आदि ने संबोधित किया।

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