Bihar News: खत्म होगा वनवास... सहरसा-फारबिसगंज के बीच 12 साल बाद चलेगी ट्रेन, PM मोदी दिखाएंगी हरी झंडी
बिहार के सुपौल में 2008 की कुसहा त्रासदी के बाद सहरसा-फारबिसगंज के बीच रेल विकास के व्यूह में ही उलझी रही। यहां रेल हमेशा सपनों का ही खेल बना रहा। हालांकि अब यह वनवास खत्म होने वाला है। विभागीय सूत्रों की मानें तो मार्च के पहले सप्ताह में ही राघोपुर-फाबिसगंज के बीच 49 किमी गेज परिवर्तन योजना प्रधानमंत्री राष्ट्र को समर्पित करेंगे।
भरत कुमार झा, सुपौल। आजादी के अमृत महोत्सव के बीच सुपौल में रेल परिचालन को सौ साल पूरे हो गए। बिहार के सुपौल जिले में 1924 में रेल परिचालन की शुरुआत हुई थी। तब से रेलवे ने कई उतार-चढ़ाव देखे। 2008 की कुसहा त्रासदी के बाद सहरसा-फारबिसगंज के बीच रेल विकास के व्यूह में ही उलझी रही। यहां रेल हमेशा सपनों का ही खेल बना रहा।
कभी बड़ी रेल लाइन का सपना तो कभी लंबी दूरी की गाड़ियों का सपना, कभी कोसी के दुर्गम इलाके में रेल के दौड़ने का सपना तो कभी प्रस्तावित नई परियोजनाओं के कार्यान्वयन का सपना। लेकिन इसमें से एक और सपना पूरा होने वाला है। 12 साल बाद गाड़ी फारबिसगंज तक चलने वाली है।
विभागीय सूत्रों की मानें तो, मार्च के पहले सप्ताह में ही राघोपुर-फाबिसगंज के बीच 49 किमी गेज परिवर्तन योजना प्रधानमंत्री राष्ट्र को समर्पित करेंगे। इसके अलावा ललितग्राम बाइपास रेल लाइन एवं सरायगढ़ बाइपास रेललाइन का शिलान्यास भी करेंगे। दानापुर-जोगबनी एक्सप्रेस वाया दरभंगा-सकरी एवं जोगबनी सहरसा एक्सप्रेस रेल सेवाओं की शुरुआत भी होगी।
20 जनवरी 2012 को राघोपुर-फारबिसगंज के बीच हुआ था मेगा ब्लॉक
20 जनवरी 2012 से रेलखंड के आधे हिस्से राघोपुर-फारबिसगंज के बीच मेगा ब्लॉक कर दिया था। हठात ऐसा लगा कि अब कोसी के इलाके के भी दिन बहुरेंगे और रेलवे के मामले में यह पिछड़ा इलाका जल्द ही देश के अन्य भागों से जुड़ जायेगा। लेकिन परिवर्तन की गति काफी धीमी रही। 1 दिसंबर 2015 को राघोपुर से थरबिटिया के बीच और 25 दिसंबर 2016 को थरबिटिया से सहरसा के बीच मेगा ब्लॉक लिया गया था।
2004 में पड़ी थी आमान परिवर्तन की नींव
बाजपेयी सरकार के रेलमंत्री नीतीश कुमार, रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीज, खाद्य आपूर्ति मंत्री शरद यादव फरवरी 2004 में सरायगढ़ आए थे और सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर आमान परिवर्तन की नींव रखी थी।
सरायगढ़ से सकरी और सहरसा से फारबिसगंज तक आमान परिवर्तन की इस परियोजना की लागत 335 करोड़ की थी। उस समय नेताओं ने सुरक्षा व सामरिक दृष्टिकोण से सीमावर्ती इलाके में रेलवे की महत्वपूर्ण भूमिका को बताया था।
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