चुनावों की घोषणा पर सुलगा नेपाल, फिर हिंसक आंदोलन की राह पर मधेशी
चुनाव की घोषणा के बाद नेपाल में में हालात बदतर होने लगे हैं। मधेशी फिर से हिंसक आंदोलन की राह पर चल पड़े हैं। विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू हो चुका है।
सुपौल [मिथिलेश कुमार]। माओवादी से लेकर मधेशी आंदोलन तक का उतार-चढ़ाव देख चुके नेपाल में बड़ी मुश्किल से शांति बहाल हुई थी। लेकिन, इधर कुछ दिनों से हालात फिर बदतर हो रहे हैं। स्थानीय निकाय चुनाव कार्यक्रम का विरोध समेत अन्य मामलों को लेकर यहां एक बार फिर मधेशी आंदोलन की राह पर हैं। विरोध-प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया है।
फिर शुरू हुआ मधेशी आंदोलन
चुनावों की घोषणा के बाद नेपाल फिर सुलग उठा है। मधेशी संसद में संविधान के संशोधित विधेयक पर चर्चा के अलावा स्थानीय चुनाव कार्यक्रम वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत कर चुके हैं।
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क्यों आक्रोशित हैं मधेशी
संविधान में संशोधन किए बिना स्थानीय चुनाव कार्यक्रम की घोषणा मधेशियों को रास नहीं आई। नतीजतन मधेशियों ने जगह-जगह आंदोलन शुरू कर दिया। छह मार्च को सप्तरी जिले के कंचनपुर में मधेशियों व पुलिस के बीच झड़प हो गई। इस दौरान पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में सात मधेशियों की मौत हो गई और 10 घायल हो गए।
होली में कुछ सुधरी स्थिति
पुलिसिया कार्रवाई के विरोध में मधेशियों ने आंदोलन तेज करते हुए सड़क यातायात बाधित कर दिया। इसके बाद अधिकांश बाजार वीरान हो गए और सड़कें सुनसान नजर आने लगीं। मधेशी मोर्चा व सरकार के बीच हुई वार्ता के बाद होली के मौके पर नेपाल में यातायात बहाल हो सका।
सरकार से समर्थन खींचा
खबर है कि मधेशी मोर्चा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। सरकार स्थानीय चुनाव के बाद संविधान में संशोधन की बात कह रही है, तो मधेशी स्थानीय चुनाव कार्यक्रम रद करने की मांग कर रहे हैं।
1996 में माओवादियों ने उठाया था हथियार
नेपाल में राजशाही के खात्मे को लेकर फरवरी, 1996 में माओवादियों ने हथियार उठाया था। वे नेपाल में समानांतर सरकार चलाने लगे थे। इस दौरान नेपाल में भय और अशांति का माहौल बन गया था। अपनी बात मनवाने के लिए माओवादियों ने कई थानों को फूंक दिया था। बाद में सत्ता में भागीदारी देने की बात पर माओवादी आंदोलन ठंडा पड़ा।
नये संविधान का मधेशियों ने किया विरोध
माओवादी आंदोलन खत्म होने के बाद नेपाल में नया संविधान लागू किया गया। तब इसमें संशोधन की मांग को लेकर मधेशियों ने छह महीने तक जबरदस्त विरोध जताया था। मधेशियों का कहना था कि नेपाल में उनके लोग 125 लाख की संख्या में हैं। बावजूद, उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। 56 लाख लोगों को अब तक नागरिकता भी नहीं मिल पाई है। राजनीतिक स्तर पर भी उनके साथ भेदभाव की नीति अपनाई जा रही है।
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