हर घर पक्का शौचालय का दावा खोखला, बांस-टाट की ओट में मर्यादा बचा रहा मंगल का परिवार
सुपौल जिले में 'हर घर पक्का शौचालय' का दावा खोखला साबित हो रहा है। मंगल का परिवार बांस-टाट की ओट में अपनी मर्यादा बचाने को मजबूर है। सरकारी दावों के ब ...और पढ़ें

अस्थायी टॉयलेट के साथ मंगल का परिवार। फाइल फोटो
संवाद सूत्र, जदिया (सुपौल)। स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित हर घर शौचालय योजना को देश की प्रमुख योजनाओं में शामिल किया गया है। इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक परिवार को शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराना और खुले में शौच से मुक्ति दिलाना है।
हालांकि, सरकारी अभिलेखों में अधिकांश पंचायतों को शत-प्रतिशत शौचालय निर्माण वाला घोषित किया गया है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल भिन्न है।
जिले के त्रिवेणीगंज प्रखंड अंतर्गत जदिया पंचायत में कई गरीब और जरूरतमंद परिवार हैं, जिन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिल सका है। इनमें से एक हैं, वार्ड संख्या 2 के निवासी 60 वर्षीय अरुण राउत उर्फ मंगल। उनका परिवार पिछले 70 वर्षों से इस पंचायत में रह रहा है, लेकिन आज तक उनके घर में सरकारी योजना के तहत शौचालय का निर्माण नहीं हो सका।
वे ठेला चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते रहे हैं, लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर ठेला चलाना भी उनके लिए कठिन हो गया है। अरुण ने बताया कि करीब 30-40 वर्ष पूर्व उन्हें इंदिरा आवास योजना के तहत मात्र 14 हजार रुपये की सरकारी सहायता मिली थी। उस राशि से उन्होंने किसी तरह घर की दीवारें खड़ी कीं, लेकिन आज भी उनका घर पक्का नहीं है और मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है।
सबसे दुखद यह है कि इतने वर्षों बाद भी उनके घर में शौचालय नहीं है। मजबूरी में उन्होंने बांस के सहारे फटे-चिथड़े प्लास्टिक से एक अस्थायी शौचालय बना रखा है, जो न तो सुरक्षित है और न ही स्वच्छ।
अरुण ने पंचायत स्तर पर हर घर शौचालय योजना के तहत कई बार आवेदन दिया और संबंधित अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन हर बार केवल आश्वासन ही मिला। आज भी उन्हें और उनके परिवार को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है।
यह स्थिति न केवल उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाती है, बल्कि स्वच्छ भारत मिशन के उद्देश्यों पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है। उन्होंने कहा, जब शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा ही हमें नहीं मिली, तो बाकी सरकारी योजनाओं से क्या उम्मीद की जाए?
उनके शब्द उस व्यवस्था की सच्चाई को उजागर करते हैं, जिसमें योजनाएं कागजों पर सफल दिखाई जाती हैं, लेकिन वास्तविक लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता।
स्थानीय ग्रामीणों का भी कहना है कि जदिया पंचायत में कागजों पर शत-प्रतिशत शौचालय निर्माण दिखा दिया गया है, जबकि वास्तविकता यह है कि कई गरीब परिवार आज भी इस सुविधा से वंचित हैं। यह स्थिति सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता पर गंभीर प्रश्न उठाती है।

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