Updated: Tue, 23 Sep 2025 05:43 PM (IST)
सुपौल जिले में कोसी नदी के कटाव से किसान परेशान हैं। नदी के कारण उनकी उपजाऊ जमीनें तो नष्ट हो ही रही हैं साथ ही भूमि सर्वेक्षण में उनकी पुश्तैनी जमीन को सरकारी संपत्ति घोषित किया जा रहा है। किसान जमीन का किराया दे रहे हैं पर रिकॉर्ड में जमीन सरकार की है। ग्रामीण स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी आजीविका सुरक्षित रहे।
विमल भारती, सरायगढ़ (सुपौल)। कोसी नदी की उफनती धारा न केवल खेतों को लील रही है, बल्कि किसानों के हाथ से उनकी पुश्तैनी जमीन भी खिसकती जा रही है। नदी जिस भूखंड से होकर गुजरती है, उसे प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया जाता है, चाहे वह जमीन वर्षों से रैयत किसान की ही क्यों न रही हो।
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वर्तमान में चल रहे भूमि सर्वेक्षण में भी ऐसी जमीनें सरकारी खाते में चढ़ाई जा रही हैं। इससे प्रभावित किसानों की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है। कोसी की धारा बार-बार अपना रास्ता बदलती है। कभी उपजाऊ खेत रहे भूभाग अब नदी की लहरों में समा गए हैं।
किसानों का कहना है कि जमीन तो उनकी है, लेकिन सरकार इसे सरकारी घोषित कर रही है। धीरे-धीरे यह स्थिति उन्हें भूमिहीन बना रही है। ग्रामीणों की मांग है कि इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान राज्य या केंद्र स्तर पर निकाला जाए ताकि उनकी आजीविका सुरक्षित रह सके।
जमीन का रेंट देते किसान, लेकिन दर्ज सरकार का नाम
कोसी प्रभावित गांवों में अजीब स्थिति देखने को मिल रही है। जिन जमीनों में पानी बह रहा है, उसके रसीद (किराया) तो किसानों से वसूले जा रहे हैं, मगर सरकारी रिकार्ड में वही जमीन सरकार की मान ली जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि किसी जमीन पर तीन फीट से अधिक गहराई तक नदी की धारा बहती है, तो उसे स्वतः सरकारी मान लिया जाता है।
1901 से चली आ रही परेशानी
ग्रामीण बताते हैं कि 1901 के सर्वे में बड़ी संख्या में किसानों की जमीन सरकारी घोषित कर दी गई थी। इसके बाद 1970 के दशक में हुए सर्वे में भी इन जमीनों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया गया, उल्टे जिन खेतों में पानी बहने लगा, उन्हें भी सरकारी खातों में डाल दिया गया।
अब जब पुनः सर्वे शुरू हुआ है, तब किसानों की चिंता दोगुनी हो गई है। इससे सरायगढ़ भपटियाही अंचल में दर्जनभर से अधिक गांव प्रभावित हैं। इसके अलावा किशनपुर, निर्मली, मरौना और सुपौल के भी किसान इस दिक्कत से गुजर रहे हैं ।
किसानों की व्यथा
बलथरवा गांव के रामसेवक साह बताते हैं कि एक तो कोसी नदी ने हमारी जमीन काट दी, ऊपर से सरकार ने उसे सरकारी घोषित कर दिया। अब रसीद कटना भी बंद हो गया है। मुशहरु सरदार का कहना है कि जमीन रहते हुए भी उसका कोई फायदा नहीं मिल रहा। दो-दो सर्वे में हमारी जमीन सरकारी घोषित हो गई। वापस करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
परमेश्वर साह कहते हैं कि सरकार ने वादा किया था कि प्रभावितों को आर्थिक पुनर्वास मिलेगा, लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला। जमीन को सरकारी घोषित करना गलत है।
रामप्रसाद सरदार का कहना है कि कोसी ने जमीन को बंजर बना दिया है। न उपज हो रही है, न जमीन हमारे पास रह गई। इस बार के सर्वे में क्या होगा, कहना मुश्किल है। अरुण सरदार की मांग है कि पहले से सरकारी घोषित की गई जमीन को वापस किसानों को दी जाए। कोसी क्षेत्र के लोगों का जीवन पूरी तरह इस समस्या से प्रभावित है और सरकार को इस पर गंभीरता से कदम उठाना चाहिए।
स्थाई समाधान की दरकार
ग्रामीणों का कहना है कि जब तक सरकार ठोस नीति नहीं बनाएगी, तब तक कोसी के किनारे बसे किसानों की जमीनें एक-एक कर उनके हाथ से निकलती रहेंगी। ऐसे में उन्हें भूमिहीन होने से बचाना बड़ी चुनौती बन गई है।
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