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    मन, बुद्धि व ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं महासरस्वती : आचार्य

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 28 Jan 2020 06:34 PM (IST)

    शांति व्यवस्था को भंग करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। साथ ही लाइसेंस लेना अनिवार्य किया गया है। उन्होंने बताया कि पूजा कमेटी अपने 10 स्वयंसेवक की सूची के साथ थाना आएंगे। डीजे संचालक के साथ भी बैठक कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जाएंगे। समिति सदस्यों ने प्रशासन को अपने स्तर से सहयोग करने का भरोसा दिलाया। साथ ही शांतिपूर्ण ढंग से पूजा करने व प्रतिमा विसर्जन करने का भरोसा दिया।

    मन, बुद्धि व ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं महासरस्वती : आचार्य

    सुपौल। विद्या की देवी मां सरस्वती मन, बुद्धि व ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। माता सरस्वती हंसवाहनी, श्वेतवस्त्रा, चारभुजाधारी और वीणावादनी है। इसी कारण संगीत और अन्य ललितकलाओं की भी अधिष्ठात्री देवी यह कहलाती हैं। शुद्धता, पवित्रता, मनोयोग पूर्वक एवं निर्मल मन से साधना करने पर मां सरस्वती उपासना का पूर्ण फल प्रदान करती है। सच्चे मन से माता सरस्वती की आराधना करनेवाले विद्या, बुद्धि और नाना प्रकार की कलाओं में सफल होता है तथा उनकी सभी अभिलाषाएं पूर्ण होती है। माता सरस्वती का महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ ने कहा कि मां सरस्वती का विशेष उत्सव माघ मास के शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि को होता है। इस तिथि को बसंत पंचमी भी कहा जाता है। इस बार बसंत पंचमी 30 जनवरी यानि गुरुवार को है। बसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना की जाती है। मां सरस्वती ज्ञान की देवी भी है। इसलिए ज्ञान-विज्ञान, सारी विद्याएं, समस्त विद्धता मां सरस्वती की शक्तियों में ही निहित है। आचार्य ने कहा कि जब-जब आवश्यकता होती है तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश, महाकाली, महालक्ष्मी आदि देवी-देवाताएं महासरस्वती रूप में अवतरित होती हैं। शक्ति प्रधान महाकाली दुष्टों का संहार करती है। सत्य प्रधान महालक्ष्मी सृष्टि का पालन करती है और महासरस्वती जगत की उत्पति व ज्ञान प्रदान करने का कार्य करती है। मां सरस्वती की कृपा से ही महामूर्ख भी कालिदास बन जाता है। पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए आचार्यश्री ने कहा की देवर्षि नारद को श्री नारायण ने सरस्वती पूजा के आरंभ के बारे में बताते हुए कहा कि सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती की पूजा की थी। पूजा उपरांत भगवान श्रीकृष्ण ने मां सरस्वती से कहा कि प्रत्येक ब्रहमांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्यारम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी भव्य पूजा होगी। मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलय पर्यंत प्रत्येक कल्प में मनुष्य, देवता, मुनिगण, योगी, नाग, गंधर्व, राक्षस सहित सभी प्राणी बड़ी भक्ति के साथ सोलह प्रकार उपचारों से तुम्हारी पूजा करेंगे। घड़े एवं पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे। यह कह कर भगवान श्रीकृष्ण ने भी सर्वपूजित माता सरस्वती की पूजा की। तत्पश्चायत ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अनंत, धर्म, मुनिगण, सनकगण, देवता, राजा, मनुगण ये सभी भगवती सरस्वती की उपासना करने लगे। तभी से सरस्वती माता सम्पूर्ण प्राणियों में सदा सुपूजित होने लगी। आचार्य ने कहा कि बसंत पंचमी आनंद और उल्लास का पर्व तो है ही संपन्नता एवं समृद्धि का भी पर्व भी है। अत: इसे पूरी श्रद्धा से मनानी चाहिए।

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    शुभ मुहूर्त में पूजन फलदायी

    आचार्य पंडित धर्मेन्द्रनाथ मिश्र ने बताया कि उदयव्यापनी सूर्योदय में पंचमी तिथि होने के कारण 30 जनवरी यानि गुरुवार को ही सरस्वती पूजन तथा आह्वान करना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस दिन सूर्योदय से अपराह्न के तीन बजे तक पूजन, प्राण-प्रतिष्ठा व आह्वान का शुभ मुहुर्त है। सातवां एवं आठवां अर्धप्रहरा वर्जित रहेगा इसका ख्याल रखें।