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    वैदिक ज्ञान का सार है गीता: आचार्य

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 17 Dec 2018 07:19 PM (IST)

    सुपौल। श्रीमद्भागवतगीता को गीतोपनिषद भी कहा जाता है। भारतवर्ष में पवित्र गीतोपनिषद को गीता जयं

    वैदिक ज्ञान का सार है गीता: आचार्य

    सुपौल। श्रीमद्भागवतगीता को गीतोपनिषद भी कहा जाता है। भारतवर्ष में पवित्र गीतोपनिषद को गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। गीता वैदिक ज्ञान का सार भी है और वैदिक साहित्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपनिषद भी है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि, हे अर्जुन भगवद्गीता की यह योग पद्धति सर्वप्रथम सूर्यदेव को बताई गई। सूर्य ने इसे मनु को बताया और मनु ने इसे इक्ष्वाकु को बताया था। इस प्रकार गुरु परंपरा से यह योग पद्धति एक वक्ता से दूसरे वक्ता तक पहुंचती रही। लेकिन कालांतर में यह छिन्न-भिन्न हो गई। फलस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण अपने सद शिष्य अर्जुन को इसका अधिकारी जान कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में इस उपनिषद का दिव्य ज्ञान प्रदान किया। गीता जयंती के अवसर पर श्रीमद्भागवत गीता का महत्व बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि भगवद गीता का उपदेश अर्जुन को विशेष रूप से दिया गया,क्योंकि अर्जुन भगवान कृष्ण का भक्त, प्रत्यक्ष शिष्य तथा घनिष्ठ मित्र भी था। आचार्य ने बताया कि जिस व्यक्ति में अर्जुन जैसे गुण पाए जाते हैं। वह गीता को सबसे अच्छी तरह समझ सकता है। अर्जुन ने भगवद्गीता को ग्रहण करते समय भगवान से कहा कि आप भगवान, परम धाम व परम सत्य है। आप शाश्वत, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं। हे कृष्ण आप ने जो कुछ कहा है उसे पूर्ण रूप से में सत्य मानता हूं। हे प्रभु न ही देवता और न ही असुर आपके व्यक्तित्व को समझ सकते हैं। भगवान कृष्ण से भगवद्गीता सुनने के बाद अर्जुन ने श्रीकृष्ण को परम ब्रह्मा स्वीकार कर लिया। धर्मेंद्रनाथ ने बताया कि प्रत्येक जीव ब्रह्मा हैं। लेकिन परम पुरुषोतम भगवान परम ब्रहम हैं। परम धाम का अर्थ है कि वो सबों के परम आश्रय या धाम है। पवित्र का अर्थ है कि वे शुद्ध है और भौतिक कल्यष अतिरंजित है। पुरुषम का अर्थ है कि वो परम भोक्ता हैं। आचार्य ने बताया कि जबतक कोई भगवद्गीता का पाठ विनम्र भाव से नहीं करता है तब तक उसे समझ पाना अत्यंत कठिन है। क्योंकि यह एक महान रहस्य है। आचार्य ने बताया की गीता समस्त उपनिषद का सार है और गाय के तुल्य है। ग्वाल बाल के रूप में विख्यात भगवान कृष्ण इस गाय को दूह रहे हैं। अर्जुन इसमें बछड़े के सामान है और सारे विद्वान तथा भक्त गीता के अमृतमय दूध का पान करने वाले हैं। इस आध्यात्मिक रहस्य को समझाना ही सच्ची गीता जयंती मनाना है।

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