स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर संस्कृत की पुनस्र्थापना के संकल्प का आह्वान
जागरण संवाददाता सुपौल प्राचीन काल से श्रावणी पूर्णिमा का वैदिक पर्व के रूप में महत्वपूर्ण स्थान

जागरण संवाददाता, सुपौल: प्राचीन काल से श्रावणी पूर्णिमा का वैदिक पर्व के रूप में महत्वपूर्ण स्थान है। इस दिवस का इसलिए भी महत्व है कि प्राचीन गुरूकुलों में इसी दिन से ही वेद की सभी शाखाओं में वैदिक परायण पाठ का शुभारंभ किया जाता था, जिसे वैदिक उपाकर्म उत्सव रूप में मनाया जाता था। इसलिए भारतीय प्राचीन विद्या और ज्ञान परंपरा को अक्षुण्ण रखने के लिए संस्कृत के संरक्षण और संवर्धन की आज नितांत आवश्यकता है। संस्कृत विद्या के बिना भारत में शिक्षा का मानवीयकरण असंभव है । सार्वभौम व अखंड समाज व्यवस्था के लिए संस्कृत विद्या की सही समझ और उसके आधार पर जीना आवश्यक है । श्रावणी पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस के अवसर पर सुपौल जिला मुख्यालय स्थित ग्राम्यशील परिसर में शिक्षा के मानवीयकरण के लिए संस्कृत के महत्व पर आयोजित संवाद गोष्ठी में यह भाव रखा गया। संस्कृत की स्नातक छात्रा दिव्यम द्वारा ईशावास्योपनिषद् की प्रार्थना और चतुर्वेद पर पुष्पांजलि के उपरांत बाल योग मिशन के अध्यक्ष सेवानिवृत प्राध्यापक प्रो. कृपानंद झा की अध्यक्षता में कार्यक्रम आरंभ हुआ।
उपस्थित वक्ताओं ने कहा कि संस्कृत भाषा में सर्वप्रथम भारत में ही विद्या परंपरा और शिक्षण-शास्त्र का आरंभ हुआ। विश्व में प्रथम शिक्षण-शास्त्र का शिरोमणि ग्रंथ संस्कृत भाषा में पतंजलि योगसूत्र को आज मान लिया गया है। वर्तमान में भारतीय समाज अपने मौलिक संस्कार और संस्कृति से दूर होता जा रहा है, जिसका मुख्य कारण संस्कृत की उपेक्षा है, जबकि जर्मनी के कई विद्वान संस्कृत को आधार बनाकर अपने प्रतिभा का परिचय दिया है। संस्कृत में ब्रह्मविद्या भारतीय ज्ञान-परंपरा की संसार को सर्वश्रेष्ठ देन है, जो भारत की आजादी से लेकर वर्षों तक भारत की शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मानित स्थान से वंचित रहा । संयोग से भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में संस्कृत को यथोचित स्थान दिया गया है । इस भारतीय ज्ञान को आरंभ करने का कार्य बाल्यावस्था से आरंभ होना चाहिए। संस्कृत के बिना शिक्षा संस्कार, मानवीय समाज और मानवीय संस्कृति की स्थापना संभव नहीं है।
इसलिये संस्कृत की इस बहुआयामी भाषा को भारतीय आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर पुनस्र्थापित करने की आवश्यकता है। संवाद गोष्ठी को प्रो. कृपानंद झा, गजाधर ठाकुर, प्रकाश प्राण, अंजु मिश्रा, जगदीश मंडल , डा. विश्व मोहन कुमार हरेंद्र, राणा शिवशंकर सिंह, चंद्रशेखर आदि ने संबोधित किया । गोष्ठी का समापन असतो मा सद् गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतम गमय। के साथ किया गया।
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