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    Sharda Sinha: 1974 में गाया पहला भोजपुरी गीत, छठ के साथ रहा गहरा रिश्ता; पढ़ें शारदा सिन्हा के बारे में खास बातें

    Updated: Tue, 05 Nov 2024 11:30 PM (IST)

    बिहार कोकिला शारदा सिन्हा के निधन से मिथिलांचल शोक में डूब गया। 1 अक्टूबर 1952 को सुपौल में जन्मीं शारदा सिन्हा ने 1974 में भोजपुरी गीत गाकर अपने करियर की शुरुआत की। 1978 में उनका छठ गीत उग हो सुरुज देव हिट हुआ और 1989 में उन्होंने बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई। मैथिली गीतों के लिए भी वे बेहद प्रसिद्ध थीं जिनमें मोहि लेलखिन सजनी... खास तौर पर मशहूर है।

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    बिहार कोकिला के निधन से सन्न रह गया मिथिलांचल। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, सुपौल। 'बिहार कोकिला' शारदा सिन्हा के निधन की खबर से मिथिलांचल सन्न रह गया। बीमार पड़ने के बाद से लोग उनके स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रहे थे कि मंगलवार की रात अचानक से आई मनहूस खबर ने पूरे क्षेत्र को शोक में डूबो दिया।

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    शारदा सिन्हा का सुपौल से गहरा नाता रहा है। यहीं पर एक अक्टूबर 1952 को उनका जन्म हुआ था। उनके पिता सुखदेव ठाकुर सुपौल विलियम्स हाई स्कूल के प्राचार्य रहे और बाद में शिक्षा विभाग के अधिकारी से सेवानिवृत्त हुए। शारदा सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राघोपुर प्रखंड के हुलास गांव में ही पूरी की।

    1974 में गाया पहले भोजपुरी गीत

    1974 में उन्होंने पहली बार भोजपुरी गीत गाया, लेकिन उनके जीवन में संघर्ष जारी रहा। 1978 में उनका छठ गीत "उग हो सुरुज देव" रिकॉर्ड किया गया, जिसके बाद शारदा सिन्हा का नाम घर-घर में प्रसिद्ध हो गया। 1989 में उन्होंने बालीवुड में भी कदम रखा और "कहे तोसे सजना तोहरे सजनिया" गीत गाकर खूब सराहना बटोरी।

    उन्होंने मैथिली में भी कई गीत गए, जिन्हें काफी लोकप्रियता मिली। मिथिलांचल में विवाह के अवसर पर "मोहि लेलखिन सजनी मोर मनवा..." गाना तो अब परंपरा का हिस्सा बन चुका है।

    गांववालों ने क्या कहा?

    शारदा सिन्हा का पैतृक निवास हुलास गांव में स्थित है। खपरैल का उनका घर अब टूट चुका है, लेकिन उनके मायके की स्मृतियां आज भी वहां जीवंत हैं। वर्तमान में नया मकान बना है, जहां उनका एक भाई रहता है, जबकि अन्य भाई गांव से बाहर रहते हैं। गांववालों का कहना है कि शारदा सिन्हा का अपने मायके से गहरा और भावनात्मक जुड़ाव रहा। हुलास गांव के प्रति उनका स्नेह अंतिम समय तक बना रहा।

    नवोदित कलाकारों को हमेशा प्रोत्साहित करती रहीं शारदा सिन्हा: राजीव नयन

    भोजपुरी लोक गायिका शारदा सिन्हा जी ने संगीत के क्षेत्र में जो मुकाम हासिल की वह सदियों तक याद रखा जाएगा। साल 1980 का वह छठ महापर्व का ही दिन था जब नवादा के गीतकार (कलाकार) राजीव नयन शारदा सिन्हा जी के उस सांस्कृतिक कार्यक्रम में मंच पर मिले थे। पटना के अंटा घाट (पुरानी सिविल कोर्ट) के पास वह कार्यक्रम हो रहा था। हाथ जोड़कर अभिवादन किया था।

    राजीव आज से करीब 44 वर्ष पूर्व के उस दिन को याद करते हुए कहते हैं कि उन दिनों वह भी भजन गीत लिखा और गाया करते थे। शारदा सिन्हा जी के उस कार्यक्रम में वह एक नवोदित कलाकार के रूप में भाग लेने पहुंचे थे। शारदा सिन्हा सभी नवोदित कलाकारों को बराबर प्रोत्साहित करती थीं। सब के प्रति सम्मान और स्नेह का भाव रखती थीं।

    उनके निधन की खबर सुनकर राजीव नयन ने कहा कि आज बिहार और भारतवर्ष ने एक महान लोग गायिका को खो दिया है। उनकी कमी बराबर खलेगी। उनके गाए छठ गीत हों या शादी विवाह के पारंपरिक गीत सदैव लोक गायकों को प्रेरित करते रहेंगे।

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