Bihar Election 2025: सुपौल जिले की 5 सीटों पर सियासी माहौल गर्म, क्या एनडीए बचा पाएगा अपना गढ़?
सुपौल जिले में एनडीए का दो दशकों से वर्चस्व कायम है, जिसके पास पांचों विधानसभा सीटें हैं। 2005 से एनडीए का दबदबा रहा है, सिवाय 2015 में जब राजद ने एक सीट जीती थी। वर्तमान में चार सीटें जदयू और एक भाजपा के पास है। आगामी विधानसभा चुनाव में देखना होगा कि एनडीए इस गढ़ को बरकरार रख पाता है या नहीं।

भरत कुमार झा, सुपौल। सुपौल जिला की राजनीति पर पिछले दो दशकों से एनडीए का वर्चस्व कायम है। जिले की सभी पांच विधानसभा सीटें सुपौल, निर्मली, पिपरा, त्रिवेणीगंज और छातापुर फिलहाल एनडीए के कब्जे में है। इनमें चार सीटें जदयू के पास है, जबकि एक सीट भाजपा के खाते में है।
राजनीतिक समीकरणों और गठबंधन में उतार-चढ़ाव के बावजूद सुपौल जिला एनडीए के लिए एक मजबूत गढ़ के रूप में उभरकर सामने आया है। मूल रूप से 2005 के चुनाव से ही देखें तो सभी सीटों पर एनडीए का वर्चस्व कायम है।
2015 के चुनाव को देखते हैं जब जदयू का गठबंधन राजद के साथ था तो उस वक्त एक विधानसभा क्षेत्र पिपरा से राजद को जीत मिली थी। इसके अलावा तीन पर जदयू तो एक पर भाजपा के उम्मीदवार विजयी रहे थे। 2020 के चुनाव में फिर सभी सीटों पर एनडीए को ही जीत मिली और चार पर जदयू तो एक पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा।
क्षेत्रवार सीटों को देखें तो सुपौल विधानसभा क्षेत्र से जदयू के विजेंद्र प्रसाद यादव 1990 से ही लगातार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। 2005 में जब बिहार में बदलाव की बयार बही थी तो उस वक्त का विधानसभा चुनाव भी जदयू ने इन्हीं की अध्यक्षता में लड़ा था। निर्मली विधानसभा क्षेत्र से जदयू के अनिरुद्ध प्रसाद यादव लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। पूर्व में यह किसनपुर विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था।
छातापुर विधानसभा क्षेत्र से 2005 के चुनाव में जदयू के विश्वमोहन कुमार को जीत मिली थी। उस वक्त ये सीट आरक्षित हुआ करती थी। 2010 में यहां से जदयू के टिकट पर नीरज कुमार सिंह बबलू मैदान में उतारे गए और उन्हें जीत मिली।
2015 का चुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर लड़ा और विजयी रहे। 2020 में भी उन्होंने भाजपा से ही अपनी सीट को बरकरार रखा।
त्रिवेणीगंज की सीट पर 2005 के चुनाव में जदयू की टिकट पर विश्वमोहन कुमार विजयी रहे थे। 2009 के उपचुनाव में भी वहां से जदयू उम्मीदवार दिलेश्वर कामैत को जीत मिली थी। 2010 में जदयू की अमला सरदार ने जीत का परचम लहराया था।
2015 में जदयू ने अपना उम्मीदवार बदल दिया और वीणा भारती को मैदान में उतारा। नतीजा जदयू के खाते में ही रहा। 2020 का चुनाव भी वीणा भारती ही लड़ी और विजयी रही।
वहीं, पिपरा विधानसभा क्षेत्र जो 2010 में अस्तित्व में आया। 2010 का चुनाव जदयू के टिकट पर सुजाता देवी ने जीता। 2015 के चुनाव में जदयू-राजद गठबंधन की जीत हुई थी और राजद के यदुवंश कुमार यादव यहां से विजयी हुए थे।
2020 के चुनाव में एनडीए गठबंधन के तहत जदयू ने राम विलास कामत को मैदान में उतारा और उन्होंने अपनी जीत दर्ज कराई।
कुल मिलाकर ये कहने में कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं कि यह क्षेत्र एनडीए के अभेद्य किला के रूप में स्थापित हो चुका है। आगे विधानसभा चुनाव है इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए अपना किला बचाने में सफल होता है या फिर...।
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