कोसी के विस्थापित और पुनर्वास की अपनी है कहानी
सुपौल। कोसी और विस्थापन का अजीब नाता है। पूर्व में कोसी और विस्थापन का अजीब नाता है। पूर्व में जब कोसी नदी को तटबंधों के बीच बांधा गया तो सैकड़ों गांव की आबादी विस्थापित हुई। सरकार ने पुनर्वास का सब्जबाग दिखाया। काफी संख्या में लोग पुनर्वासित भी किए गए। बावजूद एक बड़ी आबादी पुनर्वास से वंचित रह गई।
सुपौल। कोसी और विस्थापन का अजीब नाता है। पूर्व में जब कोसी नदी को तटबंधों के बीच बांधा गया तो सैकड़ों गांव की आबादी विस्थापित हुई। सरकार ने पुनर्वास का सब्जबाग दिखाया। काफी संख्या में लोग पुनर्वासित भी किए गए। बावजूद एक बड़ी आबादी पुनर्वास से वंचित रह गई। वहीं हर साल कोसी में बाढ़ आती है और किसी न किसी गांव की आबादी विस्थापित होती है। बाढ़ के बाद पुन: वे लोग अपने गांव लौटते हैं और अपना नया बसेरा बनाते हैं।
------------------- आज भी झेलते विस्थापन का दंश
कोसी की विभीषिका से त्रस्त आबादी आज भी विस्थापन का दंश झेल रही है। नतीजा है कि एक ही टोले में कई गांव की आबादी बसती है। यह टोला किसी खास गांव अथवा पंचायत का नहीं। बल्कि तटबंध के किनारे बसा विस्थापितों का टोला है। वहीं अलग-अलग स्परों पर अलग-अलग गांव बसा है। ऐसा नहीं कि इन बातों से प्रशासन अथवा सरकारी तंत्र अनजान है। यहां तो वजाप्ता आंगनबाड़ी केंद्र व विस्थापित विद्यालय का भी संचालन हो रहा है। जन वितरण की अपने-अपने पंचायत की दुकानें भी हैं। यहां तक कि मतदान की भी व्यवस्था प्रशासनिक स्तर से यहीं कराई जाती है। बावजूद सरकारी अमला शायद इसे अपनी जवाबदेही नहीं मान रहा, तभी न आज तक इनके घाव पर कभी मरहम नहीं लगाया जा सका।
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गाईड बांध व एनएच-57 के बीच बसी है आबादी
कोसी के प्रकोप से विस्थापन और पुनर्वास की कहानी तो काफी पुरानी है, लेकिन ये तो उन विस्थापितों की टोली है। जो 2010 में गाईड बांध निर्माण के बाद बेघर हो गए। इनके गांव कोसी के उदर में समा गए। अपने वजूद को बरकरार रखने के ख्याल से वहीं तटबंध के किनारे ही अपनी दुनिया बसा ली। कमलदाहा, बेंगा, छपकी, इटहरी, सनपतहा, बनैनियां और बलथरवा के लोग यहां बसते हैं। जो सामर्थ्यवान थे अथवा जिन्हें कहीं गुंजाइश बनी तो अन्यत्र जा बसे, लेकिन बांकी लोगों ने यहीं आसपास बसेरा डाल लिया। लेकिन धन्य हैं ये जो आज भी अपने-अपने गांव के ही नाम से जाने जाते हैं।
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कई स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र भी हैं यहीं
सरकारी व्यवस्था भी इनके पीछे लगी रही। मध्य विद्यालय इटहरी, उत्क्रमित मध्य विद्यालय सनपतहा डीह, प्राथमिक विद्यालय छपकी और प्राथमिक विद्यालय खाप सदानंदपुर भी इसी टोले में चलता है। विद्यालयों की स्थिति भी बिल्कुल विस्थापित वाली। कई आंगनबाड़ी केंद्र इसी बीच संचालित हो रहे हैं। लेकिन यहां भी ये पूरी तरह सुरक्षित कहां। बरसात के मौसम में जब उपर वाले की कृपा होती है तो यहां भी जलजमाव में इनका जीना मुश्किल हो जाता है।
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