Jitiya 2025: पुत्र की मंगलकामना का पर्व है जितिया, जानिए डाली भरने का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
सुपौल के करजाईन बाजार से जितिया व्रत संतान की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए किया जाता है। आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र के अनुसार यह व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक चलता है। पहले दिन नहाय खाय दूसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण होता है।

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल)। जितिया व्रत स्त्रियां अपनी संतान की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए करती हैं। जितिया पर्व का महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि हिन्दू पंचांग के अनुसार जितिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। छठ की तरह ही यह व्रत भी तीन दिनों तक चलता है।
इसमें पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन व्रत का पारण होता है। सप्तमी को नहाय खाय एवं रात्रि अंत (भिनसरवा) में ओटघन, अष्टमी को व्रत तथा नवमी को स्नानादि पूजन उपरांत व्रत की पूर्णता हेतु पारण एवं ब्राह्मण भोजन कराकर व्रत पूर्ण किया जाता है।
शनिवार रात्रि अंत के बाद ओटघन का योग
आचार्य ने बताया कि इस बार जितिया व्रती महिलाओं के लिए योग ही योग है। 13 सितंबर यानि शनिवार को नहाय-खाय एवं रात्रि के अंत समय में अर्थात सूर्योदय से पहले स्त्रियों के लिए विशेष भोजन ओटघन होगा।
14 सितंबर यानि रविवार को सिद्ध योग में जीमूतवाहन (जितिया) पर्व व्रत आरंभ होगा तथा 15 सितंबर यानि सोमवार को सुबह 6 बजकर 36 मिनट के उपरांत स्वार्थ सिद्ध योग में जितिया व्रत का पारण होगा।
विशेष परिस्थिति में ग्रहण कर सकते हैं दूध व शर्बत
आचार्य ने बताया कि विद्यापति पंचांग एवं गंगा पुलकित पंचाग के अनुसार जितिया व्रत लंबा होने से स्त्रियों को विशेष कठिनाई होने की स्थिति उत्पन्न होने पर शर्बत, देसी गाय का दूध आदि ग्रहण कर व्रत पूर्ण कर सकती हैं।
इस बार खरजीतिया का भी दुर्लभ संयोग
खरजितिया लगने पर ही स्त्रियां पहली बार व्रत करती हैं। जिसके लिए बहुत दिनों तक इंतजार में महिलाएं रहती हैं कि कब खरजीतिया लगेगा। खरजीतिया लगने पर पहली बार महिलाएं जितिया व्रत उठाती हैं। खरजीतिया लगने पर व्रत उठाने वाली महिलाओं के संतान की अकाल मृत्यु नहीं होती है।
डाली भरने का शुभ मुहूर्त
आचार्य ने बताया कि रविवार को अर्द्धप्रहरा वर्जित कर यानि चौथा और पंचम अर्द्धप्रहरा रहने से दोपहर के 1 बजकर 34 मिनट के बाद डाली भरी जाएगी।
इस प्रकार करें पूजा
आंगन में पोखर बना कर पाकड़ (पाखैर) वृक्ष स्थापित कर के गौ का गोबर माटी युक्त डाली पर तथा पुनः गोबर माटी से युक्त वृक्ष के नीचे धोधर में रखें। मध्य में जल से भरा हुआ कलश रखें। उस कलश पर कुश से निर्मित जीमूतवाहन भगवान की मूर्ति स्थापित कर अनेक रंगों की पताखा लगानी चाहिए।
तत्पश्चात कुश, तिल, पान, सुपारी एवं जल लेकर संकल्प आदि कर अनेक पदार्थ द्रव्यों से विधिवत पूजन करें एवं जीमूतवाहन भगवान की पूजा कर कथा श्रवण करनी चाहिए।
जीमूतवाहन भगवान के व्रत रहस्य पर भगवान ने अपने भक्तों को वरदान देते हुए कहा कि इस व्रत को करने वाली सभी महिलाओं को चिरंजीवी पुत्रों की प्राप्ति होगी एवं सभी संतानें आयु, विद्या, बुद्धि प्राप्त कर समस्त मनोवांछित फलों को भी प्राप्त करेंगे।
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