परदेश में जिन्दगी तलाशती है गरीबी

जागरण प्रतिनिधि/सुपौल: रोजगार की तलाश में मजदूरों का पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। कुछ तो कोसी का कोप और कुछ रहनुमाओं की नीतियों के कारण यहां की गरीबी परदेश में जिदंगी तलाशती है। मनरेगा भी इसे रोक पाने में सफल नहीं दिख रहा है। फसल के मौसम में तो गांवों की स्थिति होती है कि गांव में मर्द नहीं मिलते। तमाम विकास की बातों के बीच भी आज की हकीकत यही है कि यहां की आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है।
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कोसी लिखती रही विनाश की कहानी
कोसी के इलाके में लोगों की तकदीर हमेशा से कोसी ही लिखा करती है। जो हर साल कोई न कोई विनाश की कहानी लिख देती है और लोग काफी पीछे छूट जाते हैं। एक तो कोसी बांध बनाये जाने के बाद एक बड़ी आबादी दोनों तटबंधों के बीच पड़ गई। भले ही सरकार ने पुनर्वास व अन्य सुविधायें मुहैया कराये बावजूद बड़ी आबादी इससे भी अछूती रह गई और वो बात नहीं रह गई जो पहले थी। रोजगार सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आई और इलाके से रोजगार की तलाश में या फिर सुरक्षित ठिकाने के लिये पलायन जारी हो गया। वर्ष 2008 में कोसी ने जब विनाश का मुहाना खोला तो जिले के 173 गांव के 6,96,816 लोग प्रभावित हुए। 1,30,207 कच्चे-पक्के मकान व झोपड़ियां पूर्ण या आशिंक रूप से प्रभावित हुए। 0.51312 लाख हेक्टेयर जमीन प्रभावित हुई। राहत का दौर चला लेकिन जो बर्बाद हुए उन्हें अब तक होश नहीं आया।
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आसान नहीं किसानी
जिले के लगभग 90 प्रतिशत लोग गांवों में रहते हैं और आजीविका का मुख्य साधन कृषि ही है। प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे किसानों के लिए खेती एक समस्या है। कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़। और कभी सभी किये कराये पर पानी फिर जाता है जब फसलों में दाना ही नहीं आता। सिंचाई के संसाधनों की जिले में प्रचुरता के बावजूद सिंचाई सामान्य किसानों के लिये महंगी है। नतीजा है कि फसल की तैयारी होते-होते उत्पादन पर महाजनी भारी हो जाता है।
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मनरेगा का हाल बेहाल
मजदूरों को सौ दिन रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार की ओर से चलाई जाने वाली महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पा रही है। प्रारंभिक काल से ही यह योजना लूट के पर्याय के रूप में जानी जाती रही है। लूट के पर्याय बन चुके इस योजना में सुधार के सरकार ने एक से एक नुस्खे अपनाये। लेकिन योजनाओं को धरातल पर उतारने वालो ने हमेशा अपनी व्यवस्था बना ली।
पिछले महीने के आंकड़ों पर गौर करते हैं तो जिले में 3,09,860 परिवारों को जाब कार्ड उपलब्ध कराया जा चुका है। चालू वित्तीय वर्ष में कुल 12,803 परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। लेकिन विडंबना कहिये कि अब तक जिले में सौ परिवार ऐसे नहीं जिन्हें साल में सौ दिनों का रोजगार उपलब्ध हो पाया हो। चालू वित्तीय वर्ष में तो यह आंकड़ा अभी जीरो पर ही है। जिले को 2793.772 लाख की उपलब्ध राशि में से 629.833 लाख की राशि खर्च की जा चुकी है। योजनाओं का हाल देखिये कि पिछले वित्तीय वर्ष की ही 1504 योजनाएं अपूर्ण चली आ रही है। ऐसे में कैसे दूर होगी बेरोजगारी और कहां से हो गरीबी उन्मूलन की बात।
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