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    संस्कारित भाषा का प्रचार-प्रसार है यशश्री का जुनून

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 23 Sep 2017 01:00 AM (IST)

    सुपौल। यशश्री को आरंभ से ही गांव या शहर का विद्यालय कभी नहीं भाया। जीवन के आरंभ से ही प्रकृति और सर्

    संस्कारित भाषा का प्रचार-प्रसार है यशश्री का जुनून

    सुपौल। यशश्री को आरंभ से ही गांव या शहर का विद्यालय कभी नहीं भाया। जीवन के आरंभ से ही प्रकृति और सर्वधर्म प्रार्थना गाने लगी, फिर इस कड़ी में यजुर्वेद में वर्णित ईशावास्योपनिषद और गीता के द्वितीय अध्याय में उद्धृत स्थितप्रज्ञ दर्शन को संस्कृत में और उनके अर्थ को जानने के लिये हिन्दी में गाने लगी। विनोबा के नाममाला, वैदिक राष्ट्रीय प्रार्थना जो मिथिला में उपनयन, मुंडन, शादी आदि अवसरों पर दुर्वाक्षत के मंत्र के रूप में गाया जाता है तथा वैदिक शांति मंत्र, दैनिक प्रार्थना में शामिल होने के कारण कंठस्थ हो गया। घरेलू अनुकूल वातावरण और कई सद्संगतियों से श्रीमद् शंकराचार्य के गाये'भजगोविन्द में उद्धृत'गेयं गीता नाम सहस्त्रं को अर्थात विष्णु के एक हजार नामों को और गीता को तानपूरा पर गाने लगी। उन्हें जब यह मालूम हुआ कि सबसे बड़ा महादान स्थलीय, जलीय और आकाशीय पशु-पक्षियों एवं अन्य प्राणियों को अन्नदान करना है जिसे वेद में'वलिवैश्य का नाम दिया गया है को जानकर प्रतिदिन प्रार्थना के उपरांत अपने घर के छत पर जाकर पक्षियों को अनाज, फल और पानी देती है।

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    खासकर सीमावर्ती इलाकों में बाल ¨हसा, बाल व्यापार, मानव व्यापार के रोकथाम के लिये उनके द्वारा गाये गए गीत'मि¨सग चिल्ड्रन एलर्ट अनुकरणीय प्रस्तुति है। आठ वर्ष की उम्र से सूर्य नमस्कार करने वाले बच्चों के लिये योग का अभ्यास कर 8 से 12 वर्ष के बच्चों को योग शिक्षा दे रही है। 16 वर्षीय यशश्री कहती है कि विश्व की प्रथम संस्कारित भाषा संस्कृत, भारतीय संगीत, साहित्य, पतंजलि योगसूत्र को वह जीवन आधार बनाकर इसके प्रचार-प्रसार के लिये कार्य करेंगी।