बड़ी महिमामयी है बायसी की काली माता
सुपौल। सुपौल जिला के प्राचीन काली मंदिरों में शुमार राघोपुर प्रखंड के बायसी पंचायत स्थित काली मंदिर ...और पढ़ें

सुपौल। सुपौल जिला के प्राचीन काली मंदिरों में शुमार राघोपुर प्रखंड के बायसी पंचायत स्थित काली मंदिर की महिमा अपरंपार है। करीब 150 वर्षो से भी अधिक समय से यहा काली पूजा की परम्परा कायम है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार तत्कालीन गढ़बनैली स्टेट के राजा ने अपनी बहन सिंहेश्वरी दाय को बायसी मौजा दान में दिया था। उसी समय से यहा मा काली की पूजा होती आ रही है। मंदिर के स्थापना काल में बास की टट्टी एवं टीना का मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना प्रारंभ की गई थी। वर्ष 1967 में करजाईन बड़ियैत टोला निवासी बाबूजी बड़ियैत के सौजन्य से पक्का मंदिर बनाया गया। 1977 में मंदिर का सौन्द्रयीकरण व विस्तारकर भव्य भवन के रूप में परिवर्तित किया गया। क्षेत्र के बुजुर्ग अभिराम मिश्र, कैलाश कुंवर, विन्देश्वरी बड़ियैत, सुरेश चन्द्र मिश्र, प्रो. शिवनंदन यादव, कृष्णदेव मेहता, सुखदेव राम आदि ने बताया कि वर्ष 1930 से 1980 तक पंडित राजा मिश्र तथा कुलदीप कुंवर व अन्य गणमान्य लोग के देखरेख में पूजा-अर्चना जाती थी। इसके बाद वर्ष 1985 से पंडित तारानंद झा तथा पुरोहित भीम राज नायक नियमित रूप से अब तक मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे हैं। पहले यहा मिट्टी की प्रतिमा बनाकर मा काली की पूजा की जाती थी। वर्ष 1993 में बायसी निवासी कैलाश कुंवर की धर्मपत्नी सिंहेश्वरी देवी ने पूर्ण विधि-विधान से शखमरमर की प्रतिमा स्थापित की। बुजुर्गो ने बताया कि यह मंदिर बसंतपुर, राघोपुर, प्रतापगंज, छातापुर प्रखंड सहित पड़ोसी देश नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र के गावों के लोगों का श्रद्धा व आस्था का केंद्र है। श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास यहा स्थापित माता पर है। जो भी भक्त यहा सच्चे मन से मन्नतें मागता है। वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता। इन्होंने बताया कि यूं तो मन्नतें पूरी होने पर यहा सालोंभर छागर की बलि दी जाती है। लेकिन काली पूजा के अवसर पर छागर बलि की विशेष परंपरा कायम है। वर्तमान पूजा कमेटी के अध्यक्ष पूर्व पंसस तारानंद यादव, सचिव महानंद कुंवर, उपाध्यक्ष अशोक कुंवर व कोषाध्यक्ष चंदन मेहता ने बताया कि मा काली की पूजा-अर्चना विधिवत रूप से शुरू कर दी गई है। मिठाई, स्टेशनरी सहित अन्य सामग्री की दुकानें मेले में सज चुकी हैं। मा काली की पूजा-अर्चना करने तथा मेला देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ने लगी है। पूजा कमेटी ने बताया कि काली पूजा के अवसर पर सास्कृतिक कार्यक्रम सहित कुश्ती प्रतियोगिता की भी व्यवस्था की जा रही है। गौरतलब है कि क्षेत्र के जानेमाने समाजसेवी कामेश्वर गुरमैता तथा सुदुमलाल यादव के प्रयास से शुरू किया गया काली मेला में 1960-70 के दशक में भी कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था।

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