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    परंपरा के दीप, आकाश दीप

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    Updated: Thu, 27 Oct 2016 01:00 AM (IST)

    सुपौल। भारतवर्ष में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों में दीपावली का आध्यात्मिक व सामाजिक दोनों दृष्टि स

    सुपौल। भारतवर्ष में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों में दीपावली का आध्यात्मिक व सामाजिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। इसका मूल मंत्र ही माना जाता है-'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों का मन पुलकित हो उठा और राजाराम के स्वागत में लोगों ने घी के दीये जलाये। कार्तिक मास की सघन अमावश्या की रात जगमगा उठी। और यह पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। दीपावली के मायने भले ही धर्म और परंपरा के अनुसार तरह-तरह के हों लेकिन लोक संस्कृति में इसका मतलब दीया और बाती से ही ज्यादा है।

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    स्टेटस सिंबल माना जाता था आकाश दीप

    मिथिलांचल में दीपोत्सव का अपना एक अलग महत्व है। घर में दीप जलाये जाने की मान्यताओं के साथ-साथ आकाश दीप जलाये जाने की भी पुरानी परंपरा रही है। कहते हैं कि दिवाली के मौके पर दीपों से जिस तरह धरती जगमग हो उठती है उसी तरह देवी देवताओं की दुनिया ंको आलोकित करने का यह एक प्रयास है। आकाश दीप को लेकर ऐसी भी मान्यता रही है कि लोग किसी मनौती को लेकर देवताओं को कबूलते हैं और इसकी अवधि पूरी होने पर यानी जितने वर्षो के लिये इसे जलाये जाने का संकल्प लिया जाता है उसके उपरान्त इसकी विधिवत पूर्णाहुति की जाती है। इसे तरह-तरह के आकार में सजाकर ऐसा रूप दिया जाता है जिसपर आसानी से दीप टिक जाये और बाहर रंगीन व सुंदर प्रकाश निकले। इस दीप को बांस के सहारे अधिक उंचाई तक पहुंचाया जाता है। पहले किसका कैंडल कितना सुंदर दिख रहा है इसके लिये गांवों में प्रतिस्पद्र्धा होती थी और यह एक तरह से स्टेटस सिंबल भी माना जाता था। अब बदलते समय में उंची इमारतों के कारण इसके प्रचलन में कमी आती जा रही है। हालांकि मिथिलांचल के गांवों में अभी भी लोगों ने इस परंपरा को जीवित रखा है।

    दीप जलाने की धार्मिक मान्यता

    दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग मान्यता है। एक मान्यता है कि भगवान राम रावण वध करने के बाद दिवाली के दिन ही अयोध्या लौटे थे। इसी खुशी में लोगों ने दीये जलाये और खुशियां मनाई। दूसरी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध इसी दिन किया था। जनता में खुशी की लहर दौड़ गई और लोगों ने घी के दीये जला उत्सव मनाया। वहीं पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।

    हालांकि मिथिलांचल में धनतेरस के दिन से ही दीये जलाये जाने की परंपरा है। दिवाली के एक दिन पूर्व छोटी दिवाली को लोग यम दिवाली भी कहा करते हैं। इस दिन यम पूजा हेतु घर के बाहर दीये जलाये जाते हैं।

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