स्वच्छता अभियान: शहर में असर, गांव की स्थिति यथावत
सुपौल। स्वच्छता को ले देश में कई आंदोलन चले। किन्तु समय बीतने के साथ-साथ ऐसे आंदोलनों की धार कुंद पड़
सुपौल। स्वच्छता को ले देश में कई आंदोलन चले। किन्तु समय बीतने के साथ-साथ ऐसे आंदोलनों की धार कुंद पड़ी गई। लोहिया स्वच्छता अभियान, निर्मल भारत अभियान, हाथ धुलाई आदि कई अभियान का बहुत अधिक उत्साहवर्द्धक परिणाम सामने नहीं आया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत अभियान की शुरूआत की गई तो पूरा देश ही आंदोलित हो उठा। ऐसा लग रहा था कि भारत अब कचरा मुक्त हो जायेगा और खुले में शौच सपने में भी नहीं सोचेंगे लोग। शुरूआती चरण में तो लोगों में अभियान को ले खासा उत्साह दिखा, पर धीरे-धीरे इस अभियान की भी हवा सी निकल गई। वर्तमान में स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत का असर तो शहरी इलाके में दिख रहा है। पर ग्रामीण इलाके की स्थिति अब भी यथावत है। ग्रामीण इलाके में आज भी कूड़ा-कचरा सड़क पर फेंकने व खुले में शौच की आदत पर लगाम नहीं लग पाया है। स्वच्छता को ले चलाये गये तमाम जागरूकता अभियान भी अब तक लोगों की आदत में बदलाव नहीं ला सके हैं।
नप को और करना पड़ेगा प्रयास
चलिये रूख करते हैं अपने शहर का। अपने शहर में साफ-सफाई दिख रही है। मुख्य सड़क पर नप के झाडूदार झाड़ू लगाते दिख रहे हैं तो वार्डो में सिटी बजाकर घरों से कूड़ा-कचरा लिया जा रहा है। स्वच्छता अभियान को अमलीजामा पहनाने के लिए नगरपरिषद सुपौल भी बढ़ चढ़ कर भूमिका निभा रहा। शहर के मुख्य सड़कों के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूर पर कूड़ा-कचरा पेटी लगाये गये हैं और लोगों से आग्रह किया गया है कि शहर को स्वच्छ रखने में योगदान दे और कूड़ा-कचरा पेटी में ही डाले। कचरा पेटी से कचरा निकाल कर नप के ऑउटसोर्सिग वाले कर्मी कचरे का निपटान करते हैं। शहर में कई जगह बड़े-बड़े कूड़े दान भी लगाये गये हैं। इतने के बावजूद भी कई वार्डो की स्थिति साफ-सफाई के मामले में अब भी उतनी अच्छी नहीं। शहर में नप की भूमिका साफ-सफाई को ले सराहनीय चल रही है। नप को इस दिशा में और अधिक प्रयास करने की जरूरत भी है।
ग्रामीण इलाके में रंग नहीं ला पायी जागरूकता
जहां तक ग्रामीण इलाकों की बात है तो स्वच्छता को ले जागरूकता फैलाने की दिशा में इन इलाकों में भी कई कार्यक्रम किये गये। गांव के मुख्य स्थलों पर बैठक, नुक्कड़ नाटक आदि के माध्यम से गांव के लोगों को स्वच्छता के फायदे व खुले में शौच से होने वाले कुप्रभाव से अवगत कराया गया। बावजूद ग्रामीण परिवेश की मानसिकता अब तक नहीं बदल पायी है। आज भी गांव की पचास फीसदी जनता खुले में शौच को जाती है और साफ-सफाई से उन्हें कोई खास मतलब नहीं रहता। नतीजा है कि गांव के लोग तरह-तरह के बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
अशिक्षा भी है राह में रूकावट
एक अनुमान के तहत बिहार में जितनी दवा की खपत होती है, उसमें कोसी के इलाके में पचास फीसदी से अधिक दवा की खपत होती है। यानि कोसी इलाके के लोग अधिक बीमार पड़ते हैं। इस सब के पीछे सबसे बड़ा कारण है स्वच्छता से अनजान रहना और स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं होना। इलाके में अशिक्षा का बोलबाला है। नतीजा है कि लोग स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं हो पा रहे। जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे, स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। देश को स्वच्छ और स्वस्थ बनाने में हर देशवासी की भूमिका होनी चाहिए। तब जाकर हमारा देश स्वच्छ और स्वस्थ भारत के मुकाम को हासिल कर पाएगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।